Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-241


सन्तो के चार धर्म है -
(१) आपत्ति -दुःख में हरि  का स्मरण - गजेन्द्र की तरह।
(२) संपत्ति - में सर्वस्व का दान - बलि राजा की तरह।
(३) विपत्ति - स्ववचन का पालन -बलि राजा की तरह।
(४) -सर्व अवस्था में भगवत शरणागति- सत्यव्रत की तरह।
सन्तो के ये चार धर्म जीवन में उतारने से वासना का विनाश हो सकता है।

वासना को यदि प्रभु भक्ति की और जोड़ दिया जाये तो यह वासना भक्ति बन जाती है।
अब आगे आने वाली -रासलीला में हमे प्रभु से मिलना है
किन्तु वासना का आवरण जब तक बीच में है तब तक मिलनमें आनंद नहीं आ सकता।

अष्टम स्कंध में संतों के चार धर्म बताए,
फिर भी शुकदेवजी को लगा कि अभी भी परीक्षित के मन में सूक्ष्म वासना रह गई है।
यदि राजा उस सूक्ष्म  वासना को लेकर रासलीला में जाएगा तो वहाँ भी उसे काम ही दिखाई देगा।

जिसके मन में काम है उसे हर जगह काम ही दिखाई देता है। मानव की बुध्धि काम से भरी हुई है।
बुध्धि में काम होगा तो श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं होंगे।
राजा की बुध्धि शुध्ध करने के लिए नवें स्कंध में सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं की कथा कही गई।

वासना को यदि विवेकपूर्वक प्रभु के मार्ग में मोड़ दिया जाए तो
वह उपासना बन जाती है और मनुष्य को मुक्ति दिलाती है।
वासना के दो प्रकार है।  (१) स्थूल वासना (२) सूक्ष्म वासना।

(१) स्थूल वासना - इन्द्रियों में बसी हुई स्थूल वासना है। आठवे स्कंध में संतो के चरित्र बताये है।  
जिससे स्थूल वासना दूर होय तब नवें स्कंध में प्रवेश मिले।

(२) सूक्ष्म वासना - बुध्धि में है।
नवाँ अध्याय मन-बुध्धि में रही सूक्ष्म वासना दूर करने के लिए है।

मन के मालिक चन्द्रदेव है और बुध्धि के मालिक सूर्यदेव है।
इन दोनों (चन्द्र-सूर्य) की आराधना करने से बुद्धिगत वासना का विनाश होता है।
दोनों वासनाओं के सम्पूर्ण विनाश के बिना “मोह” का विनाश नहीं होता।
और जब तक मोह का विनाश नहीं होता तक तक मुक्ति नहीं मिलती।

ज्ञानी पुरुष संसार में सच्चा सुख नहीं है ऐसा बार-बार सोचते है। जब तक शरीर है तक सुख की अपेक्षा रहती है। परन्तु यह  सुख का अंत दुखमय है ऐसा सोचकर उसे विवेक से भुगतना चाहिए।

आत्मा तो नित्य मुक्त है,मुक्त तो मन को करना है।
जो विकार-वासना मन और बुध्धि में सूक्ष्म रूप से व्याप्त है उसका शीघ्र विनाश नहीं हो पाता है।

हमारा लक्ष्यबिन्दु है श्रीकृष्ण मिलन।
हमे ईश्वर के साथ एकत्व साधना है। भगवान के साथ एक होने के लिए ही यह भागवत कथा है।


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