Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-243



रामजी ने अपना ऐश्वर्य छिपाया है  और मनुष्य जैसा नाटक किया है।
साधक का वर्तन रामजी जैसा होना चाहिए। सिध्ध पुरुष का वर्तन श्रीकृष्ण जैसा हो सकता है।
रामजी जीव मात्र को बोध देते है। रामजी ने एक भी मर्यादा का भंग  नहीं किया है।

रामजी की लीला सरल है। जब की श्रीकृष्ण की सारी लीला गहन है।
रामजी की मर्यादा समझनी सरल है। पर उसका आचरण करना कठिन है।
श्रीकृष्ण की लीला का रहस्य समझना भी कठिन है।

रामजी कुटिल के साथ भी सरल व्यव्हार करते है। श्रीकृष्ण कुटिल के साथ कुटिल और सरल के साथ सरल व्यव्हार करते है। रामजी मर्यादा पुरुषोत्तम है और श्रीकृष्ण पुष्टि पुरुषोत्तम है।
श्रीकृष्ण माखनचोर है अर्थात मृदु मन के चोर है। वे सर्वस्व मांगते है।

रामजी का नाम सरल है वैसा ही उनका काम उनकी लीला भी सरल है। राम  के नाम में एक भी संयुक्त अक्षर नहीं है। श्रीकृष्ण के नाम में में एक भी अक्षर सरल नहीं है,सभी संयुक्ताक्षर है।

श्रीकृष्ण लीला अति मधुर है जबकि राम-नाम अति मधुर है।
रामजी दोपहर बारह बजे आये थे (जन्मे ) तो श्रीकृष्ण रात्रि के बारह बजे।
श्रीकृष्ण कहते है-मै तो माखनचोर हूँ इसलिए रात्रि के बारह बजे आता हूँ (जन्म लेता हूँ)
रामजी दशरथ के महल में आते है। श्रीकृष्ण कंस के कारागृह में।
संक्षिप्त में राम मर्यादा (विवेक) है और श्रीकृष्ण "प्रेम" है।

नरसिंह -अवतार की कथा में - "क्रोध" का नाश कैसे करना यह बताया है।
वामन-अवतार में "लोभ" का नाश कैसे करना यह बताया है।
रामचन्द्रजी की कथा में "काम" का नाश कैसे करना वह बताएँगे।

भागवत का लक्ष्य कृष्णलीला चरित्र कहना है पर पहले ही स्कंध से कृष्णलीला का वर्णन नहीं है।
इसका  कारण यह है कि क्रोध,लोभ  और काम आदि का नाश होने पर ही परमात्मा श्रीकृष्ण मिलते है।

अष्टम स्कंध की समाप्तिमें सत्यव्रत मनु महाराज की और मत्स्यावतार की कथा कही गई है।
इस अध्याय में वैवस्वत मनु की कथा है। उनकी शादी श्रध्धा नाम की स्त्री के साथ हुई थी। उनके यहाँ दश सन्तान  हुई थी। उनके नाम है -इश्वाकु,नृग,शर्याति,दिष्टि,करुष,नरिष्यन्त,पृषघ्न,नभग और कवि।

दिष्टि के वंश में मरुत नामक चक्रवती राजा हुए थे। मरुत के गुरु थे बृहस्पति। वे इन्द्र के भी गुरु थे।
मरुत राजा को यज्ञ करना था। पर बृहस्पति ने आने से इन्कार कर दिया।


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