Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-245



अंबरीष राजा महान भक्त और मर्यादा भक्ति के आचार्य थे। वे प्रत्येक इन्द्रिय से भक्ति करते है।
उनका मन भगवान के चरणों में,वाणी भगवद गुण -वर्णन में,हाथ हरि -मंदिर की सफाई में,
पाँव प्रभु के मंदिर-क्षेत्र में पदयात्रा के लिए,कान भगवान की उत्तम कथाओं के श्रवण में तथा
दोनों नेत्र मुकुंद भगवान की मूर्तियों के दर्शन में व्यस्त रहते थे।
मस्तक से वे श्रीकृष्ण को वंदन करते रहते थे।
भगवान की सेवा में जो व्यक्ति अपना शरीर लगा देता है,उसका देहाभिमान कम होता है।

भक्तिमार्ग में धन और तन मुख्य नहीं है पर मन मुख्य  है।
इसलिए अंबरीष महाराज प्रथम कहते है -मेरा मन सदा श्रीकृष्ण के चरण-कमल में रहे।
परमात्मा की सेवा में मन मुख्य है। सेवा का अर्थ है सेव्य-श्रीकृष्ण में मन को पिरोये रखना।
सेवा का सम्बन्ध मन से है। शरीरसे जो क्रिया की जाये,उन में यदि मन का सहकार नहीं होगा तो सेवा व्यर्थ होगी।

ऐसे -अंबरीष की सेवा का क्रम बताया है। सेवा का आरम्भ मन से होता है।
मन सूक्ष्म है। वह एक साथ जगत और ईश्वर के साथ सम्बन्ध नहीं रख सकता।
मन को मनाओगे तो ही वह मानेगा,किसी दूसरेके उपदेश से नहीं।
तुम स्वयं अपने मन को समझाओगे तो असर होगा। अपने मन को कोई और कैसे समझा सकता है?

राजा अंबरीष के इष्टदेव द्वारिकानाथ है। राजा होने पर भी स्वयं सेवा-पूजा करते है। घर में अनेक सेवक होने पर भी कहते है -मै तो ठाकुरजी का दास हूँ। उनकी सेवा स्वयं मुझे ही करनी चाहिए।
दास्य-भाव में सेवा मुख्य है।
पेट उसी का भरता है जो स्वयं भोजन करे। जो भोजन  और सेवा स्वयं करे उसे फल मिलता है।
चार काम स्वयं करने पड़ते है -भोजन,विवाह,ठाकुरजी की सेवा और मृत्यु।

भागवत में स्पष्ट लिखा है -
अंबरीश राजा स्वयं ठाकुरजी के मंदिर की सफाई करते थे। भगवान के दर्शन के लिए वे नंगे पाँव जाते थे।
अंबरीश राजा सदा भगवान की सेवा में लीन रहते थे इसलिए भगवान को उसके राज्य कि चिंता हुई।
उन्होंने सुदर्शन चक्र को राज्य की रक्षा के लिए भेजा।

एक बार अंबरीश राजा ने भगवान की आराधना के हेतु एक वर्ष तक निर्जल एकादशी करने का नियम लिया।
पुराणों में एकादशी के व्रत की बहुत प्रशंसा की गई है।
एकादशी का व्रत सर्व व्रतमें श्रेष्ठ है। भगवान की आराधना के लिए -मनुष्य भागवत व्रत करे -तो सुखी होता है।
वैसे भी वैज्ञानिक कारण से भी महीने में एक या दो बार उपवास करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

एकादशी का व्रत तीन दिन का बताया है।
दशमी के दिन एक बार भोजन करे। हो सके तो दूध और चावल का आहार करे। एकादशी के दिन के दिन हो सके तो निर्जला करो। ऐसा न हो सके तो दूध या फल का आहार करें। ऐसा करने से व्रत का फल मिलेगा।

व्रत करने का विचार दृढ होगा तो भगवान शक्ति देंगे और सहायता भी करेंगे। सत्यनारायण की कथा में लकड़हारे की बात आती है.जिसने अपने पास पैसे न होते हुए भी सत्यनारायण की पूजा का व्रतका संकल्प  लिया और परमात्मा ने उसका संकल्प पूरा किया।


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