कौशल्या धर्मपत्नी थी और सुमित्रा-कैकयी भोग-पत्नी।
तीन पत्नियाँ होने पर भी दशरथ निःसंतान थे सो -वे वसिष्ठ के पास गए।
वसिष्ठ ने कहा -पुत्रकाष्टि यज्ञ करो। इस यज्ञसे तुम्हारे चार पुत्र होंगे।
राजा ने यज्ञ किया। अग्निदेव खीर लेकर यज्ञकुण्ड से बहार आए और कहा कि यह प्रसाद तुम्हारी रानियों को खिलाना जिससे आपके यहाँ दिव्य संतानो का जन्म होगा।
वसिष्ठ मुनि ने आज्ञा की -धर्मपत्नी कौशल्या को इस प्रसाद का आधा भाग देना,
बाकी रहे प्रसाद को सुमित्रा और कैकयी को बाँट देना। दशरथ राजा ने वैसा ही किया।
कैकयी को प्रसाद अंत में देने से उसने दशरथ राजा का अपमान किया। उसने प्रसाद उठाकर फेंक दिया।
एक कथा ऐसी भी है कि -
उस प्रसाद को चिल उठा ले गई और पर्वत पर आई। वहाँ अंजनी देवी तपश्चर्या कर रही थी। चिल ने प्रसाद अंजनी देवी को दिया। प्रसाद खाने से उनके यहाँ हनुमानजी का प्राकटय हुआ। इसीलिए -हनुमानजी पहले आते है।
इस तरफ कैकयी दुःखी हुई इसलिए कौशल्या और सुमित्रा ने ने उनके हिस्से में से थोड़ा थोड़ा प्रसाद उसे दिया। तीनों रानी ने प्रसाद ग्रहण किया है।
अपने इन्द्रियरूपी अश्वो को नियंत्रित करके शरीररथ को योग्य मार्ग पर चलाओगे तो रामचन्द्रजी पधारेंगे।
अपनी इन्द्रिय को वशमें रखो,जितेन्द्रिय बनो।
दस इन्द्रियरूपी अश्वो को नियंत्रित करके शरीररथ को लेकर जो रामचन्द्रजीकी ओर जाता है,वो ही दशरथ है।
ऐसे दशरथ के घर भगवान पुत्ररूप से आते है।
दशानन रावण-विषयों के अमर्याद भोक्ता है-तो उसके घर भगवान कालरूप से आते है।
नव मास पूर्ण हुए है। रात्रि को दशरथ ने स्वप्न में देखा कि उनके आँगन में कुछ ऋषि-महात्मा आए है और उन्हें जगा रहे है। राजा ने स्वप्न में ही सरयू-स्नान किया है। श्रीनारायण का पंचामृत से अभिषेक किया है।
स्वप्न में ही लक्ष्मीनारायण की आरती और दर्शन कर रहे थे। उन्हें लगा कि -आज प्रभु अति-प्रसन्न है।
इस सुन्दर स्वप्न के बाद वे जाग गए। राजा ने सोचा कि इस स्वप्न के विषय में गुरूजीसे निवेदन करना चाहिए। वे वसिष्ठजी के पास आए और स्वप्न की बात की। वसिष्ठजी ने कहा -इस स्वप्न का फल उत्तम होगा। तुम्हारे घर भगवान नारायण के आगमन की इसमें सूचना है। मुझे विश्वास है कि इसका फल तुम्हे २४ घंटे में मिलेगा।
राजा आनन्द से झूमने लगे। उनके घर स्वयं भगवान जो आ रहे है।
उन्होंने सरयू में स्नान किया और भगवान की पूजा में लीन हो गए।
इधर कौशल्या भी प्रभु ध्यान में मग्न है। आज परम पवित्र रामनवमी का दिन है।
भगवान शंकर ज्योतिषी के वेश में अयोध्या की गलियों में घूम रहे है। उनके इष्टदेव रामजीकी प्रतीक्षा कर रहे है।प्रातःकाल से ही देव-गन्धर्व भी -श्रीरामजी की प्रतीक्षा कर रहे है।
वैष्णवजन जब तक अत्यन्त आतुर नहीं होते है,तब तक भगवान का जन्म नहीं होता।