Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-251


परम पवित्र समय आया। चैत्र मास शुक्ल पक्ष और नवमी तिथि।
मध्यान्ह के बारह बजे दशरथ राजा के यहाँ साक्षात परब्रह्म रघुनाथजी प्रकट हुए।
जो निर्गुण थे वही  भक्तो के प्रेम  के कारण आज सगुण बन गए।
आकाश में से देव और गन्धर्वो ने पुष्प-वृष्टि की।
आज बताया गया कि मै अपने भक्तों की चारों ओर रक्षा करता हूँ,सो चतुर्भुज रूप से प्राकट्य हुआ है ।

माताजी ने स्तुति की-प्रभु,मेरे लिए आप बालक बन जाइए। मुझे माता कहकर पुकारें।
तब,प्रभुका चतुर्भुज स्वरुप अदृश्य हो गया और छोटे-छोटे दो हाथों वाले बालक बन गए।

दासियों में भी यह शुभ समाचार फैल गए। कौशल्या ने दासी को नवलखा हार दिया।
दासी ने कहा -मुझे कुछ नहीं चाहिए। मै तो राम को खिलाना चाहती हूँ। दासी की गोद में राम को दिया गया।
आज उसका भी  ब्रह्म-सम्बन्ध हो गया।

दूसरी दासी दौड़ती हुई राजा के पास आई और बधाई दी। लाल भयो है। लगता है कि साक्षात नारायण आये है।
वृद्धावस्था में दशरथ के यहाँ पुत्र आया है। और पुत्र भी साधारण नहीं,साक्षात परमात्मा पुत्र का रूप लेकर आये है। दशरथ ने वस्त्रादि से श्रृंगार किया।
प्रथम गणेशजी की पूजा की गई। दान तो इतना दिया गया कि सारी अयोध्या में कोई दरिद्र न रहा।
वसिष्ठ ने वेदमंत्रों का उच्चारण करके मानसिक अभिषेक किया।

दशरथजी अन्तःपुर में आये। आज राम के दर्शन से सारी  दासियाँ इतनी हर्षविन्त हो गई थी कि वे देहभान भी भूल गयी थी। परमानन्द हो गया। देव-गन्धर्व आदि भी सूक्ष्म रूप से पुत्र राम के दर्शन कर रहे थे।

रामजन्म से सभी देवों को आनन्द हुआ,किन्तु एक चन्द्र को दुःख हुआ।
रामजी के दर्शन से सूर्यनारायण आनंद से स्तब्ध होकर स्थिर हो गए। आगे बढ़ते ही नहीं थे।
सूर्यास्त के बिना चन्द्र राम के दर्शन कैसे करे?तो चन्द्र ने राम से प्रार्थना की -इस सूर्य को कहिए कि वह आगे बढे। वह मुझे आपके दर्शन नहीं करने देता।
रामजी ने चन्द्र को आश्वासन देते हुए कहा -आज से मै तेरा नाम धारण (राम-चन्द्र) करूँगा।
फिर भी चन्द्र को सन्तोष नहीं हुआ।
रामचन्द्रजी ने उससे कहा -तू धीरज धर। इस बार मैंने सूर्य को  लाभान्वित किया है किन्तु भविष्य में कृष्णावतार में सबसे पहले तुझे दर्शन दूँगा। मै रात्रि के बारह बजे जन्मूँगा। सो तुझे ही लाभ मिलेगा।

कृष्ण जन्म के समय दो  जीव ही जाग रहे थे-वासुदेव,देवकी और तीसरे थे चन्द्र।
जो रात्रि के समय जागते है उन्हें ही कन्हैया मिलता है। जागने का अर्थ क्या है?
"जानिय तबहि जीव जग जागा -जब सब विषय विलास विरागा। " (तुलसीदास)

गीता में भी कहा गया है - उन सभी भूत -प्राणियों के लिए जो रात्रि है,उसी समय में योगी जाग कर प्रभु स्मरण करते है। प्राणी जिस सांसारिक नाशवान क्षणिक सुखो में जागते है,वह रात्रि के समान ही है।

दशरथ ने बालस्वरूप देखा तो उनका ह्रदय प्रेम से भर आया। पिता-पुत्र की दृष्टि  मिली।
दशरथ राम को मधु चटाने लगे। उन्होंने वसिष्ठजी से वेदमंत्रों का पाठ  करने को कहा।
वसिष्ठजी बोले- राम के दर्शन करने पर मै वेदमंत्र तो क्या,अपना नाम तक भूल गया हूँ। मै क्या मंत्र बोलू?
दर्शन में नामरूप भूलने पर दर्शन का आनन्द ज्यादा आता है। ब्रह्मदर्शन का आनन्द होता है।

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