ईश्वर के दर्शन होने के बाद वेद भी विस्मृत हो जाते है। फिर वेद मिथ्या है।
प्रभु के साक्षात्कार होने पर वेद,जगत के नाम-रूप और अपनापन सभी कुछ विस्मृत हो जाता है।
वसिष्ठजी ने बालकों का नामकरण किया है। यह कौशल्या का पुत्र है। वह सभी को आनंद देने वाला है।
वह सबको खिलाता है इसलिए उसका नाम राम रखता हूँ।
सुमित्रा का पुत्र सर्व गुण सम्पन्न है इसलिए उसका नाम लक्ष्मण रखता हूँ।
कैकयी का पुत्र जगत को प्रेम से भर देगा इसलिए उसका नाम भरत रखता हूँ।
और चौथा पुत्र शत्रु का नाश करेगा इसलिए उसका नाम शत्रुघ्न रखता हूँ।
राम के बिना आराम नहीं है।
जीव मात्र आराम चाहता है। जीव मात्र शान्ति का उपासक है,ऐसी शान्ति का जिसका कभी भंग हो न पाए।
राम की मर्यादा का पालन करोगे तो जीवन में सच्ची शान्ति मिलेगी।
मनुष्य राम की जीवन मर्यादा को जीवन में उतारता नहीं है,अतः उसे सच्ची शान्ति नहीं मिलती।
धर्म का फल है शान्ति। अधर्म का फल है अशान्ति।
धर्म की मर्यादा का पालन ने करने पर शान्ति मिलती है। स्त्री और पुरुष को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए।
मानव जब मर्यादा का उल्लंघन करता है,तब,अशान्ति आती है।
धर्म मर्यादा के बिना -ज्ञान,भक्ति या त्याग सफल नहीं हो सकते।
आजकल मंदिरो में कथा-आख्यानों में भीड़ बढ़ती जा रही है। लगता है कि आजकल ज्ञान और भक्ति बढ़ गए है। फिर भी किसी को शान्ति नहीं मिल रही है। इसका कारण यह है कि लोग धर्म-मर्यादा का पालन नहीं करते है। लोग धर्म को भूल गए है। धर्म पालन के बिना ज्ञान और भक्ति व्यर्थ है। चन्द्र,सूर्य,समुद्र कभी अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते है। जबकि लोग तो थोड़ा बहुत रुपया-पैसा,अधिकार या मान मिल जाने पर अपने आप को लाटसाहब मान लेते है। सोचते है कि-"मुझे पूछने-रोकने वाला कौन है?"
रघुनाथजी मर्यादा-पुरुषोत्तम और सभी गुणों के भंडार है। वे स्वयं परमात्मा होते हुए भी धर्म-मर्यादा का पूर्णतः पालन करते है। उनकी सेवा करना अच्छा है पर उनकी मर्यादा का पालन करना सर्वोत्तम सेवा है।
रामजी की सेवा से जीवन सफल होता है। रामजी की मर्यादा का पालन किये बिना भक्ति नहीं होती।
श्रीराम का जीवन ऐसा पवित्र है कि उनके स्मरणमात्र से हम पवित्र हो जाते है। वर्तन यदि रावण सा है और जप राम के नाम का है तो नाम जप का फल कभी नहीं मिलता। राम जैसा वर्तन होगा और रामनाम का जप होगा तभी जीवन सफल होगा। राम के एक-एक गुण को अपने जीवन में उतारना ही सर्वोत्तम सेवा है।
रामजी का अवतार राक्षसों के संहार के लिए नहीं,पर मनुष्य को उच्च आदर्श बताने के लिए हुआ था।
उनका अवतार जगत को मानव धर्म उपदेश के लिए हुआ था।
वाल्मीकि राम को उपमा देने गए किन्तु एक भी उनके जैसा न मिला।
ऐसा कोई देव और ऋषि नहीं है जिसे राम की उपमा दी जाये।
कोई भी उपमा नहीं मिली इसलिए वाल्मीकि ने कहा राम तो राम जैसे ही है।
कृष्ण की लीलाएँ अनुकरण करने के लिए नहीं है,श्रवण करके तन्मय होने के लिए है।
गोकुललीला में पुष्टि है,द्वारिका-लीला में मर्यादा।