Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-255


आजकल तो लोग एक ओर रामायण पढ़ते है और दूसरी ओर धन-संपत्ति के लिए भाइयों के साथ कोर्ट में लड़ते है। यदि बड़ा भाई राम बनेगा तो छोटा भाई भरत-लक्ष्मण जैसे होंगे तो सारा जगत आज भी अयोध्या बन सकता है। और राम-राज्य स्थापित हो सकता है।

भरत को जब राज्य मिला फिर भी उसने राज्य-त्याग किया।
बड़े भाई अयोध्या में नहीं थे सो स्वयं महल में रहकर भी तपश्चर्या करने लगे।
भरतजी की तपश्चर्या का जगत के  सभी महापुरुषों ने वर्णन किया है।
आँगन में कोई आए तो भरतजी मिठाई खिलाते है पर खुद नहीं खाते है।

भारतभूमि कर्मभूमि है। इस कर्मभूमि में जैसे काम करोगे वैसे ही फल पाओगे।
जैसे भाव अन्य के लिए रखोगे,वैसा ही भाव उसे मन में तुम्हारे लिए होगा।
अभिमान मूर्खो को नहीं सताता किन्तु जिसे जगत मान-कीर्ति देता है,उसे ही सताता है।
मान के बिलकुल पीछे ही अभिमान खड़ा रहता है।

विष्णु सहस्त्र नामावली में भगवान को अमानी मानव कहा गया है। भगवान मान के दाता है।
भरत कैकेयी को कहते है कि राम बड़े होते हुए भी उन्हें मान देते है।
राम ने बाललीला में भी मर्यादा भंग नहीं की थी। राम ने माता को भी सताया नहीं था।

कन्हैया ने सोचा कि रामावतार में मैंने मर्यादा का खूब पालन किया था सो मुझे बहुत दुखी होना पड़ा।
अब कृष्णावतार में मै मर्यादा का पालन नहीं करूँगा। .कन्हैया माँ को सताता है।
"माँ मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाना। तू कामकाज छोड़ दे और मेरे साथ हो खेल।"

रामजी का अवतार मर्यादा-पुरुषोत्तम का है। कृष्ण का अवतार पुष्टि-पुरुषोत्तम का है।
राम की लीला में मर्यादा है,कृष्णलीला में प्रेम।

कन्हैया कहता है -मैंने रामावतार में मर्यादा का पूरा पालन किया,सरल भी बहुत रहा,एकपत्नीव्रत निभाया,
फिर भी जगत ने मेरी कोई कदर न जानी। सो कृष्णावतार में मैंने सारी मर्यादा तोड़ दी।
अब मै पुष्टिपुरुषोत्तम हूँ। जो भी जीव मेरे निकट आए मै उसे अपनाऊँगा।
कृष्णावतार में सभी के लिए द्वार खुले है। जो चाहे आ सकता है।

कृष्णलीला में प्रेम शुध्ध है राम की लीला में विशुद्ध मर्यादा है।
मर्यादा के बिना प्रेम नहीं हो सकता। इसलिए राम की कथा पहली है।  
कृष्ण को वही समझ सकता है,जो राम की मर्यादा का पालन करता है।

रामजी की बाललीला का वर्णन अधिक नहीं है।
रामजी सूर्य उगने से पहले उठते है,स्नान करके माता-पिता को वंदन करते है।
रामायण में लिखा है कि रामजी सूर्यनारायण को अर्ध्य देते है। संध्या करते है।
जगत को शिक्षा देने के लिए राम काम करते है-वे बताते है-कि-"मै ईश्वर हूँ -फिर भी सूर्य की उपासना करता हूँ। "फिर रामचन्द्रजी वशिष्ठजी के आश्रम में पढ़ने गए।

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