Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-257


वसिष्ठजी ने मोक्ष मंदिर के चार दरवाज़े बताये है -
(१) शुभेच्छा - शुभ परमात्मा को मिलने की इच्छा वह शुभेच्छा।
(२) संतोष - जो कुछ मिला है उसमे संतोष।
(३)स्वरुपानुसन्धान - अपने खुद के स्वरुप को भूलना नहीं।
(४) सत्संग - से हमेशा शुभ सोच मिलती है। और हम हमेश प्रभु  की सानिध्यता में रहते है ।

वसिष्ठजी कहते है कि -यह चार याद रखो तो मोक्ष  सुलभ है।
रामजी को वसिष्ठजी ने ऐसा बोध दिया है की उसे श्रवण करने के लिए रामजी को तीन दिन तक समाधि लगी है। वसिष्ठ के उपदेश से रामजी का वैराग्य दूर हुआ है। रामजी के सोलह वर्ष पूरे हुए है।

उस समय  विश्वामित्र का यज्ञ सम्पन्न हो रहा था।
विश्वामित्र क्षत्रिय होने के पश्चात भी अनेक  तप करने से वे ब्रह्मर्षि हुए थे।
उनके यज्ञ में मारिव्ह,सुबाहु आदि राक्षस बाधा डाल रहे थे।
विश्वामित्र ने सोचा कि रामजी मेरे यज्ञ की रक्षा कर सकते है। इसलिए उनको लेने अयोध्या आए है।
भागवतमें रामचरित्र का आरम्भ इसी प्रसंग से किया गया है।

विश्वामित्र सरयु में स्नान करके अयोध्या में आए है। वे गायत्री मंत्र के आचार्य है।
दशरथ राजा ने स्वागत करते हुए उन्हें नमन किया है। और कहा कि-
"मेरे पूर्वजो के प्रताप से आप जैसे ऋषि मेरे घर आए है। मै आपकी क्या सेवा करू?"
विश्वामित्र में आशीर्वाद देते हुए  कहा-
मेरे यज्ञ में राक्षस विघ्न कर रहे है। सो राम और लक्ष्मण को मेरे यज्ञ की रक्षा के लिए मेरे साथ भेजिए।

विश्वामित्र की ऐसी मांग से राजा घबरा गए।
दशरथजी ने कहा -मुनिवर,आपने ठीक नहीं माँगा। ये बालक मुझे वृद्धावस्था में मिले है। आप सभी के आशीर्वाद से मुझे चार संताने मिली है। मुझे ये सब अत्यंत प्रिय है किन्तु राम तो सर्वाधिक प्रिय है।
राम के बिना मै नहीं रह सकता। उसे मेरी आँखों से दूर मत करो। मै आपसे क्या कहू?
राम मुझे प्रतिदिन दो बार साष्टांग प्रणाम करता है। मेरी हर आज्ञा का पालन करता है।
ऐसा पुत्र न तो कभी हुआ है और न कभी होगा।
छोटे भाइयों से भी उसे अधिक प्रेम है। मर्यादा का पूर्णतः पालन करता है।

राम की प्रशंसा करते-करते राजा का ह्रदय भर आया।
जल के बिना मछली शायद रह शकती है,किन्तु राम के बिना दशरथ नहीं जी सकते।
वे फिर बोले-गुरूजी,मै आपको सच  कहता  हूँ कि राम के दूर जानेसे मेरे प्राण चले जायेंगे।
आप चाहे तो मै सारा राज्य दे दू,अपने प्राण तक दे दू,किन्तु मुझसे मेरे राम को दूर न करें।
मै अपने राम के बिना एक क्षण भी जी नहीं सकता।

वशिष्ठजी दशरथजी को समझाते है -
"विश्वामित्र पवित्र ब्राह्मण है। उनकी सेवा से राम सुखी होंगे। तुम मना करो वह अच्छा नहीं है
कल राम की जन्म-पत्रिका मेरे हाथ में आयी थी। वे देखने से ऐसा लगता है कि  इस साल में राम के विवाहका
योग है। इसलिए उन्हें भेजो। मुझे लगता है कि विश्वामित्र यहाँ पर राम का विवाह कराने के लिए आए है।
राम को कुछ भी नहीं होगा,आप निश्चिंत होकर राम को भेजिए।


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