Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-258



दशरथ, राम के विवाह की बात सुनकर खुश हुए है। वशिष्ठ में उनको पूर्ण विश्वास है।
फिर,राम-लक्ष्मण को सभा में बुलाया गया,और दशरथ ने उन्हें कहा कि -
विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करनेके लिए आपको उनके साथ जाना है।
राम बोले -आपकी जैसी आज्ञा -हम ऐसी ही करेंगे। । और वे तैयार हो गए।
फिर श्रीराम  कौशल्या की आज्ञा लेने गए। कौशल्या ने कहा - बेटा,,तुम्हारे पिता कहे वो करो।
उनकी आज्ञा वही मेरी आज्ञा। तुम्हारे पिता और विश्वामित्र दोनों प्रसन्न हो ऐसा करो।  

कौशल्या ने सोचा-मेरा राम यौवन में प्रवेश कर रहा है। विश्वामित्र जैसे संयमी-तपस्वी की सेवा करेगा तो सुखी होगा। और नारदजी ने भी कहा था कि  इस साल रामजीका विवाह होगा। इसमें जरूर कोई अच्छा संकेत होगा।

कौशल्या ने विश्वामित्र को कहा -मेरा राम बहुत शर्मीला है। वह तो माँ की भी मर्यादा रखता है।
भूख लगने पर भी मुझे नहीं कहता। मेरे से मांगता नहीं है तो फिर आपसे कैसे माँगेगा।
मेरे राम को मक्खन-मिसरी खिलाना -नहीं तो वह दुर्बल हो जायेगा।
विश्वामित्र बोले-आप चिंता करो। मेरे आश्रम में गाय है। याद रखकर मै रोज -राम-लक्ष्मण को मक्खन खिलाऊँगा।

श्रीरामको मक्खन-मिसरी बहुत पसंद है। जीवनको मिसरीकी तरह मीठा बनाना है। जीवन में सद्गुणसे मिठास आती है। दुसरो को मान देने से और अपने जीवन में संयम बढ़ाने से जीवन मधुर और उत्तम  बनता है। जिसके जीवन में मधुरता नहीं है,वह भगवान को प्यारा नहीं लगता। महादान और द्रव्यदान से भी मान-दान  
अधिक श्रेष्ठ है। इसमें एक पैसे तक का व्यय नहीं है। सभी को मान दो।
जो कर्कश वाणी नहीं बोलता है,जो किसी का अहित  है,उसके जीवन में शक्कर-सी मिठास आती है।

माता-पिता के आशीर्वाद लेकर राम-लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ निकले है।
विश्वामित्र सबसे आगे चलते है -उनके पीछे लक्ष्मण और लक्ष्मण के पीछे राम।

विश्वामित्र अर्थात सारे  विश्व के मित्र। जगत का मित्र है जीव।
मनुष्य अर्थात जीव मित्र (विश्वामित्र ) बनता है  तो शब्द-ब्रह्म (लक्ष्मण) उसके पीछे-पीछे आता है
और उसके पीछे परब्रह्म (श्रीराम) भी  आता है। तुम जगत-मित्र बनोगे तो राम-लक्ष्मण तुम्हारे पीछे-पीछे आयेंगे। राम ही परब्रह्म है। शब्द ब्रह्म (लक्ष्मण) के बिना परब्रह्म (श्रीराम) प्रकट नहीं होता।

विश्वामित्र के पीछे-पीछे राम-लक्ष्मण चल दिए। रास्ते में ताड़का नाम राक्षसी मिली।
विश्वामित्र ने कहा कि यह राक्षसी बच्चो की हिंसा करती है इसलिए इसे मारो। श्रीरामने ताड़का का उद्धार किया।
विश्वामित्र ने फिर,राम-लक्ष्मण को बला और अतिबला विद्या दी-जिससे उन्हें भूख-प्यास नहीं लगती।

वे आश्रम में आये है। राम ने विश्वामित्र से कहा-गुरूजी,आप यज्ञ करो। मै उसकी रक्षा करूँगा।
जनकपुरी के निकट विश्वामित्र ऋषि का सिद्धाश्रम है। वहाँ वे तप और यज्ञ करते है।
विशाल यज्ञमंडप बनाया गया है। राम-लक्ष्मण धनुष-बाण से सज्जित होकर यज्ञ की रक्षा करने खड़े है।
रामजी आज भी वहाँ खड़े है।
  द्वारिका में द्वारिकानाथ खड़े है।
  डाकोर में रणछोडरायजी खड़े है।
  श्रीनाथजी में गोवर्धननाथ खड़े है।
  पंढरपुर में विठ्ठलनाथजी खड़े है।
भगवान कहते है -जब जीव मेरे दर्शन के हेतु से आता है तो मै खड़ा होकर उसे दर्शन देता हूँ।
मुझे प्रेम से मिलने के लिए जो भी जीव आता है,उसे मिलने के लिए मै आतुर हूँ।
अपने भक्तों को मिलने की प्रतीक्षा में मै खड़ा हूँ। मुझसे विभक्त हुआ जीव मुझसे मिलने के लिए कब आएगा।


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