राम तो जीव को अपनाने के लिए तत्पर है,किन्तु यह जीवही ऐसा है कि उनसे मिलने के लिए कहाँ आतुर है?
श्रीराम अजानबाहु (घुटनो तक लम्बे हाथ-वाले) है।
किसी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया-मेरे भक्त मुझसे मिलने आते है,उनमे से यदि कोई भक्त मोटा है तो उसे भी मै बाहों में भर सकू,इसलिए मैंने अपने हाथ लम्बे रखे है !!!
मुझे मिलनेआने वाले सभी तरहके भक्तों को आलिंगन देने के लिए मैंने अपने हाथ लम्बे रखे है !!
राम वानर आदि पशुओं को भी आलिंगन देते है। रामजी सभी से प्रेम करते है।
वे हमेशा धनुष-बाण अपने साथ रखते है।
चाहे राज्य सभा में बैठे हो,चाहे अनंतपुर में सीताजी के पास,उनके हाथों में धनुष-बाण होते ही है।
उपनिषद में भी कहा है -”प्रणवों हि धनुः। “उपनिषद में धनुष को ओंकार की उपमा दी गई है।
ओंकार अर्थात ज्ञान ही धनुष है। धनुष ज्ञान का स्वरुप है। बाण विवेक का स्वरुप है।
धनुष और बाण अर्थात ज्ञान और विवेक से सदा सज्जित रहो,
क्योंकि कामरूपी राक्षस न जाने कब विघ्न करने आ जाये। राम की भाँति धनुष-बाण से सदा सज्जित रहना।
ज्ञान और विवेक को सतेज रखोगे तो राक्षस बाधा नहीं डालेंगे।
काम,लोभ,मोह आदि राक्षस है। जीव को सताते है। जो प्रतिक्षण सावधान रहे,उसे राक्षस मार नहीं सकते।
विश्वामित्र आहुति देते थे यज्ञ में पर निहारते थे राम-लक्ष्मण को।
श्रुति वर्णन करती है -अग्नि भगवान का मुख है। परमात्मा अग्नि-मुख से आहार करते है।
अग्नि-ज्वाला प्रभु की जिह्वा है।
ब्राह्मण वेद-मंत्रो का उच्चारण करते हुए अग्नि में आहुति दे रहे है।
विश्वामित्र राम-लक्ष्मण पर दॄष्टि लगाये हुए यज्ञ कर रहे है।
यह हमे बोध देता है कि कोई भी सत्कर्म प्रभु के दर्शन करते हुए करो। सर्व सत्कर्म का फल है -परमात्मा के दर्शन।
विश्वामित्र सोचते है-यज्ञ का फल तो मेरे द्वार पर ही है,परमात्मा मेरे द्वार में खड़े है और मै यहाँ धुँआ खा रहा हूँ।
जब,विश्वामित्र ने यज्ञ प्रारम्भ किया,तब,मारीच,सुबाहु-वगेरे राक्षसोको खबर मिली इसलिए विघ्न करने आये है। रामजी का दर्शन करने से मारीच का स्वाभाव बदल गया।
मारीच ने सोचा कि -समाज सुखी हो इसलिए ऋषि यज्ञ कर रहे है। मै इसमें विघ्न करू यह ठीक नहीं है।
उसे आश्चर्य हो रहा है कि "आज मेरे मन में दया क्यों आ रही है?
इन बालको को देखकर मेरी बुद्धि क्यों बदल रही है? आज मेरा मन मेरे बस में नहीं है। इन बालको से मिलने की इच्छा हो रही है।" मारीच राक्षस था,फिर भी राम के दर्शन से उसकी बुद्धि सुधर गई।
आजकल लोग राम दर्शन के लिए जाते तो है,किन्तु दर्शनके बाद भी उनकी बुद्धि नहीं सुधरती।
राम के दर्शन के बाद भी बुद्धि नहीं सुधरे तो मान लेना कि तुम राक्षस से भी अधम हो।