जनक राजा ने सभासे कहा -परशुरामजी ने शंकर भगवान का धनुष मेरे घर में रखा है।
हज़ार योद्धा इकठ्ठे होकर उठाये तब यह उठता है। मेरी सीता जब तीन साल की थी तब इस धनुष का घोडा बनाकर इससे खेलती थी। इस धनुष को जो कोई उठाकर उसे भंग करेगा उससे,मै अपनी पुत्री का विवाह करूँगा।
उस समय रावण आकाश मार्ग से जा रहा था। उसने मंडप देखा।
नौकरो को पूछा कि यह किस लिए है। नौकरो ने कहा-यह तो सीताजी का स्वयंवर है।
रावण बिना आमंत्रण के स्वयंवर में आया है। बिना कारण जनक राजा के साथ झगड़ा किया।
फिर खुद की प्रशंसा करते हुए कहने लगा कि आप सब मुझे नहीं पहचानते।
मैंने शिव-पार्वती के साथ पूरा कैलाश पर्वत उठाया था। इस पुराने धनुष का तो क्या हिसाब।
कैलास में उस समय पार्वती ने शिवजी से कहा -आपके शिष्य रावण का बहुत अभिमान आ गया है।
रावण धनुष उठा न सके ऐसा कोई उपाय करो।
शिवजी की आज्ञा से तीन सौ शिव-सेवक सूक्ष्म रूप धारण करके उस धनुष पर बैठ गए।
रावण धनुष न उठा सका और भरी सभा में उसका अभिमान धूल में मिल गया।
ऐसा होने से अन्य राजा भी सावधान हो गए। सब धनुष उठाने से कतराने लगे।
विश्वामित्र ने रामजी को धनुष उठाने की आज्ञा दी। वे गुरूजी को प्रणाम करके धनुष-भंग के लिए गए। विश्वामित्र शिवजी से प्रार्थना करते है -तुम्हे अभिषेक किये बिना मैंने पानी तक नहीं पिया है।
मेरा राम धनुष उठाने जा रहा है इसलिए धनुष को हल्का करना।
सीताजी भी प्रार्थना करती है कि -धनुष हल्का हो जाए।
रामजी शिव-धनुष को वंदन करके उसे उठाया और डोरी बांधने के लिए खींचा ही था कि उसके दो टुकड़े हो गए। सीताजी वरमाला लेकर बाहर आई।
इधर रामजी सोच में डूब गए कि माता-पिता की आज्ञा के बिना विवाह कैसे करू।
सीताजी सुन्दर है तो क्या? माता-पिता की आज्ञा के बिना मेरे विवाह नहीं करना।
सीताजी हार पहनाने का प्रयत्न कर रही है किन्तु रामजी उनसे काफी ऊँचे है सो पहना नहीं पा रही है।
रामजी उनका सिर नीचे नहीं कर रहे है।
विश्वामित्र वहाँ आये है।
राम कहते है - माता-पिता की आज्ञा के बिना मेरा विवाह नहीं होना चाहिए।
विश्वामित्र बोले- मुझे कौशल्या ने कहा है कि मेरे राम का विवाह हो।
राम -पर इस कन्या के साथ हो ऐसी कहाँ आज्ञा है।
विश्वामित्र -कौशल्या ने सीताजी की खूब तारीफ़ सुनी है। उनकी इच्छा है कि सीता उनके घर की पुत्रवधू हो। तुम्हारे माता -पिता की इच्छा है कि सीता के साथ तुम्हारा विवाह हो।
रामजी -पर मेरा लक्ष्मण अविवाहित है। उसका विवाह पहले करो।
(राम छोटे भाई को नहीं भूलते। रामजी की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है।)
राजा जनक ने घोषणा की कि उनकी दूसरी पुत्री का विवाह लक्ष्मण से किया जाएगा।
रामजी को आनन्द हुआ -और उन्होंने वरमाला धारण की।