Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-264


जनक राजा के सेवक कुमकुम-पत्रिका लेकर अयोध्या आए। दशरथजी ने पत्रिका पढ़ी।
वैदिक विधिपूर्वक विवाह संपन्न करने के हेतु अयोध्या की प्रजा के साथ जनकपुरी आने का निमंत्रण था।
दशरथ जी का ह्रदय आनन्द से भर गया। वे सेवकों को अपना हार देने लगे।
सेवकों ने कहा -हम यह हार नहीं ले सकते। हम तो कन्यापक्ष के है।
दशरथजी बोले -कन्या तो जनकमहाराज की है। आप तो नौकर हो। तुम्हे भेंट लेने में क्या तकलीफ है।
सेवक बोले -हम नौकर है,पर सीताजी हमे नौकर नहीं मानती। वे हमे पिता समान मानती है।
सीताजी की जितनी तारीफ करे इतनी कम है।

दूसरे दिन सुबह वशिष्ठजी,अयोध्या के प्रजाजन  वगेरेके साथ दशरथजीने  जनकपुरी जाने का प्रयाण किया।
बारात जनकपुरी आ पहुँची। उनका स्वागत किया गया है। दशरथ और जनक मिले है।
तब,विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण भी वहां आये है। राम-लक्ष्मण पिता को प्रणाम करते है।
नारदजी ने विवाह का मुहूर्त बताया- मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी और समय गोरज-वेला।
बारात धनतेरस के दिन आई थी और वसंतपंचमी के बाद लौटी थी।

रघुनाथजी की बारात में कामदेव घोडा बनकर आया। काम-अश्व पर बैठकर राम विवाह करने गए।
जब साधारण मनुष्य का विवाह होता है तो काम उसी पर सवार हो जाता है।
परमानन्द हुआ है। भगवन को सुवर्ण -सिंहासन पर विराजमान किया गया। सभी ब्राह्मण मंगलाष्टक बोलने लगे। एक-एक राजकुमार को एक-एक कन्या का दान किया गया।

जनक राजा ने कहा -मैंने कन्या का आपको दान किया है।
रामजी बोले -”प्रतिगृह्णामि “मै दान स्वीकारता हूँ। राम सरल स्वाभाव के है।
विधिपूर्वक राम-सीता का विवाह हुआ है।
विवाह की सभी विधियाँ पूर्ण होने के बाद रंग-महोत्सव हुआ और अब सभी ने अयोध्या की ओर प्रयाण किया।
चारो भाइयों का विवाह हो गये थे ।
"तो अब मेरे आँगन में चार-चार लक्ष्मी-नारायण आये है"
ऐसा मानकर कौशल्या ने पूजा आदि विधि से उन सब का हार्दिक स्वागत किया।

अयोध्या आने का बाद दशरथजी ने रानियों के समक्ष जनक राजा की खूब प्रशंसा की।
सीताजी माता-पिता की प्रशंसा सुनकर खूब खुश होती है।
दशरथजी ने आज्ञा की -पराई कन्या अपने घर आई है। जिस प्रकार हमारी आँखों की रक्षा पलकें करती है,
उसी प्रकार सीताजी की भी रक्षा करना। वह अब हमारी बेटी है।

आनन्द के दिन शीघ्र ही बीत  जाते  है। रामजी अब २७ साल के हुए है और सीताजी १८ साल की।
एक दिन दशरथ राजा राजसभा में विराजमान थे। उनका मुकुट कुछ टेढ़ा हो गया था ।
आइने में देखा तो मुकुट के साथ -साथ उन्होंने यह भी देखा कि उनके कान के कुछ केश भी श्वेत हो गए है।

कान के केश श्वेत होने लगे तो समझो कि वृद्धावस्था की निशानी है।
दशरथ राजा ने सोचा कि  ये सफ़ेद केश मुझे उपदेश दे रहे है कि अब तुम वृद्ध हो गए हो।
राम का राज्याभिषेक क्यों नहीं करते?राम-सीता का राज्याभिषेक मै अपनी आँखों के आगे देख लू तो अच्छा है। वैसे तो मेरी सब इच्छाएँ पूर्ण हो गई है किन्तु यह एक बाकी रह गई है।
इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। सो इनका त्याग करके भगवद-भजन करना उत्तम है।

दशरथ राजा की इच्छा के विरुद्ध कोई क्या बोल सकता है। दशरथ का राज्य वैसे तो प्रजातंत्र है।
मंत्रीगण और महाजनों की अनुमति के बिना राम का अभिषेक किया नहीं जा सकता।
प्रजा की भी इच्छा थी कि राम राजा बने।
दशरथ राजा ने मंत्रीगण और महाजनों से कहा-यदि आप अनुमति दे तो राम को राजपद देने की विधि हम करे।
मंत्री सुमंत ने कहा -हम सभी भी यही चाहते थे किन्तु संकोच के कारण बोल नहीं पाते थे।


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