Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-265


उसी समय वशिष्ठजी का सभा में आगमन हुआ। सभी ने उनका सत्कार किया।
दशरथ राजा ने उनसे अनुमति ली और शुभ मुहूर्त बताने की आज्ञा की।
वशिष्ठजी जानते थे कि राम कोई भी मुहूर्त में राज्याभिषेक नहीं करेंगे।
इसलिए उन्होंने कोई भी मुहूर्त नहीं बताया है। उन्होंने कहा जिस दिन राम राजगद्दी पर बैठे वही  दिन अच्छा है।

वशिष्ठजी के गूढ़ार्थ वाणी दशरथजी समझ नहीं पाए। उन्होंने ने तो अगले ही दिन राज्याभिषेक करना चाहा। उन्होंने मंत्रीगण से राज्याभिषेक की तैयारी करने की आज्ञा दे दी।
दशरथजी ने वशिष्ठजी से विनती की कि आप ही जाकर राम से बात करो।

वशिष्ठजी ने राम के पास जाकर बात की।
रामजी बोले-क्या मुझे अकेले ही राजा बनना है?हम चारों भाइयों का राज्याभिषेक करो।
वशिष्ठजी -सूर्यवंश की राजनीती है कि बड़ा पुत्र ही राजा हो सकता है।
आप बड़े है,सब की इच्छा है कि सीता के साथ तुम्हारा राजयभिषेक किया जाए।  

आज सारा नगर सुशोभित किया जा रहा है। दशरथ के राज्य काल की यह उनकी अन्तिम सभा है।
यह तो सूर्यवंश का पवित्र सिंहासन है। जिस राज्यासन पर कभी रघु,भगीरथ,दिलीप आदि विराजमान हुए थे,
उसे दशरथ राजा ने प्रणाम करते हुए कहा -आज तक मै तुम्हारी गोद  में था।
कल मेरा राम तुम्हारी गोद में बैठेगा।  उसकी रक्षा करना।

सारी अयोध्या में बात फैल गई। सारे नगर में आनन्द की लहर दौड़ पड़ी किन्तु देवो को दुःख हुआ।
यदि राम कल राज्यपद ग्रहण करेंगे तो रावण का नाश कौन करेगा?
देवों ने विघ्नेश्वरी देवी का आवाहन किया। माताजी पधारी।
उन्होंने माताजी से कहा -अयोध्या जाकर राम के राजयभिषेक में बाधा उपस्थित कीजिए।
राम तो सुख-दुःख से परे है। वे तो आनन्दरूप है। और दशरथ को सद्गति मिलने वाली है।

मह्त्माओ ने कहा है -किसी का सम्पूर्ण सुख तो काल से भी देखा नहीं जाता।
दशरथ राजा के सुख को काल की अशुभ नज़र लग गई।

काल ने  माता विघ्नेश्वरी में प्रवेश किया। विघ्नेश्वरी ने सोचा कि किसके शरीर में प्रवेश करू?
सोचते हुए उनके मन में मंथरा की याद आई। मंथरा कैकेयी की दासी है। मंथरा के अंदर विघ्नेश्वरी ने प्रवेश किया।
मंथरा  अयोध्या की तैयारी देखकर पूछती है -यह किसकी तैयारी हो रही है?
लोगों ने कहा -आपको पता नहीं है?कल राम का राज्याभिषेक है।

महात्मा कहते है कि कौशल्या से एक भूल हो गई थी।
जब एक दासी दौड़ती हुई आई और कौशल्या को राज्याभिषेक के समाचार सुनाए तो -

उन्होंने आनंदित होकर दासी को एक मोती का हार दिया।दासी खुश होकर जा रही थी कि रास्ते में मंथरा मिली। मंथरा ने आनन्द का कारण पूछा। दासी ने कहा कि कल राम राजा बनेंगे। कौशल्या माता ने मुझे मोती का हार दिया। मै कौशल्या की दासी हूँ इसलिए मुझे मान मिला। पर तुम्हे तो कुछ नहीं मिला। .तुम तो कैकेयी की दासी हो। इस तरह मंथरा को जब पता चला कि उसे कुछ नहीं मिला तो वह जल उठी है।


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