Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-267


कैकेयी भोली है पर कुसंग से उसका जीवन बिगड़ा। कुसंग से मनुष्य दुःखी होता है और सत्संग से सुखी होता है। रोज के नियम अनुसार राजा दशरथ कैकेयी के महल में आते है। राजा कैकेयी के आधीन है।
शास्त्र में लिखा है कि जो पुरुष स्त्री के अति आधीन है वह दुःखी होते है। दशरथ राजा की दुःख की शुरुआत हुई है। कैकेयी ने अपने दो वरदान मांगे। दशरथ  राजा को मूर्छा आई है।

दूसरे दिन दशरथ राजा जागे नहीं है इसलिए राम दौड़कर खबर करने आये है।
कैकेयी को वंदन करके पूछा कि पिताजी को क्या हुआ है?
कैकेयी बोली -तेरे पिताजी के दुःख का कारण तू है। ऐसा कहकर पूरी बात कही।

रामजी ने कैकेयी को वन्दन करके कहा -माँ मेरा भरत  राजा हो वह सुनकर मुझे खूब ख़ुशी होती है।
तुम मेरे लिए कितना पक्षपात करती हो?मुझे वन में ऋषि-मुनियों के सत्संग का लाभ मिले,
और मेरा कल्याण हो,इसी हेतु से यौम मुझे वन में भेज रही हो। तुम्हे भरत से भी  अधिक प्रेम मुझसे है।
इतनी छोटी से बात में पिताजी को दुःख क्यों हुआ?

कैकेयी की निष्ठुरता की  कोई सीमा नहीं है।
“राम”शब्द सुनते ही दशरथ राजा की आँखे खुल गई। राम ने प्रणाम किया। दशरथ ने उन्हें बाँहो में भर लिया। राम,मुझे छोड़ कर कहीं न जाना।
रामजी पिता को धीरज देते हुए समझने लगे-आप तो धर्मधुरंधर है। आपको कौन क्या समझा सकता है?
चौदह वर्ष का समय तो अत्यंत शीघ्र ही बीत जाएगा। और आपके दर्शन के लिए मै वापस आऊँगा।
आपके आशीर्वाद से वन में मेरा कल्याण होगा।

रामचन्द्रजी ने आश्वासन दिया है। दशरथजी सिर्फ राम-राम बोलते है और आँखों में से आँसू निकलते है।
दशरथजी को वंदन करके रामचन्द्र कौशल्या माँ को वंदन करने आए। है कौशल्या ने सब सुना और फिर धीरज रखकर बोली -बेटा  भरत राजा बने और तू वन में जाए यह तो ठीक है किन्तु तेरे जाने के बाद पिताजी का क्या होगा? मै तेरे साथ वन में जा नहीं सकती क्योकि मेरा पतिव्रत धर्म अनुमति नहीं देता है।
बेटा -वन में वनदेव और वनदेवी तेरी रक्षा करेंगे।

उसी समय सीताजी वहाँ आई है। अपनी सास को प्रणाम करके धरती पर दृष्टि रखकर वहाँ खड़ी रही।
कौशल्या ने राम से कहा -तेरे वन में जाना हो तो जा पर मेरी सीता तो मेरे साथ ही रहेगी।
मेरा बेटा चाहे कितने भी कष्ट उठाये,पर पराई बेटी को कभी दुःखी नहीं होना चाहिए।
अपनी पलके आँखों की रक्षा करती है,उसी तरह सीता का मै भी रक्षण करुँगी।

राम ने सीता से कहा -तुम यहीं रहो। सास-ससुर की सेवा करना तुम्हारा धर्म है।
वनवास केवल मुझे दिया गया है। तुम यहीं रहकर  उनकी सेवा करना।
सीताजी मन में सोचने लगी कि प्राणनाथ के साथ मेरे शरीर और प्राण दोनों जायेंगे या केवल प्राण ही।
धैर्य से सीता ने कहा-आपने सुन्दर उपदेश दिया। पर स्त्री का आधार केवल उनका पति है।
स्त्री के लिए पति परमात्मा है। पति के बिना स्वर्ग भी नरक के समान है। आप जहाँ जायेंगे मै वहाँ आउँगी।
आप वन में दुःख भुगतो और मै यहाँ राजमहल में सुख से रहु ये मेरा धर्म नहीं है। मेरा त्याग मत करो।
आपको यदि इतना विश्वास है कि आपके विरह में मै चौदह साल जीवित रहूँगी तो मुझे घर में रहने की आज्ञा देना। और तो क्या कहू,आप तो अंतर्यामी है।

रामचन्द्रजी ने सोचा कि -अति आग्रह करूँगा तो यह प्राण त्याग कर देगी।
तो कहा-"ठीक है,मै तुम्हें मै साथ ले जाऊँगा।"
कौशल्याने कहा कि -मेरी सीता को एक क्षण भी मत छोड़ना। मै तुम्हारी इस मनोहर जोड़ी को कब देखूँगी?


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