Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-271


केवट ने अँगूठी लेने का इंकार किया और कहा-मेरे पिताजी ने कहा है कि कोई गरीब,ब्राह्मण,साधु तपस्वी आये तो उनकी उतराई मत लेना। आज आप राजाधिराज होकर नहीं पर तपस्वी होकर आये है,मै उतराई नहीं ले सकता।

रामजी ने कहा -मै तुझे उतराई नहीं दे रहा हूँ ,पर प्रसाद दे रहा हूँ। प्रसाद के रूप से ले।
केवट ने हाथ जोड़कर कहा -प्रसाद लेने का आज दिन नहीं है। मेरे मालिक आज वन में जा रहे है।
चौदह वर्ष के वनवास की समाप्ति के बाद जब आपका राज्याभिषेक होगा तभी मै प्रसाद लूँगा।
और वैसे भी देखा जाये तो -काम की दृष्टिसे हमारी एक ही जाति है। जैसे नाई,नाइसे पैसा नहीं लेता,
ऐसे, ही एक जातिके लोग एक दूसरे को काम के पैसे लेते-देते नहीं है।

भले,आप क्षत्रिय है -और मै  भील। पर हम दोनों का काम एक ही है। इसीलिए हम एक जाति के है।
गंगाजी के पार कराने वाला  केवट मे हूँ और संसार सागर के केवट आप।
आप लोगो को संसार-सागर पार करा देते है।
तो जब भी मै वहां आउ, तब,इस जीव को भी संसार-सागर के पार उतारना।

राजयभिषेक के समय केवट आ नहीं सका था क्योंकि रामचन्द्रजी हवाई जहाज (प्लेन) से वापस लौटे थे।
किन्तु रामचन्द्रजी ने उसे याद करके गृहक द्वारा प्रसाद भिजवाया था।

अब तीनों आगे बढ़ने लगे। सीताजी साहजिक विवेक औए संकोच से चलती थी।
आगे राम चल रहे थे,बीच में सीताजी और अन्त में लक्ष्मणजी।
लक्ष्मण सीता-राम के चरण में (चरण से पड़ी छाप ) नज़र रखकर चलते है।
राम-लक्ष्मण के बीच में सीताजी की शोभा की क्या  बात की जाय ? जैसे ब्रह्म और जीव के बीच माया।

लक्ष्मणजी राम-सीता के चरण(चरण से पड़ी छाप ) को बचाकर चलते है।
पगडंडी पर बहुत जगह नहीं रहती। इसलिए लक्ष्मण पगडंडी के बहार काँटों पर चलते है।
रामजी से यह देखा नहीं जाता इसलिए क्रम बदल दिया। पहले लक्ष्मण फिर सीता और पीछे राम।

रास्ते में मुकाम किया। गाँव के लोग दर्शन करने आते है।
गाँव की स्त्रियाँ सीताजी से पूछती है -इन दोनों में आपके कौन है?
सीताजी  ने कहा -जो गोरे है,वह मेरे देवरजी है। रामजी का परिचय शब्द से नहीं,आँखों के संकेत से दिया।
श्रुति में भी परमात्मा का वर्णन,ऐसे ही  निषेधपूर्ण ही किया है -”न इति,न इति”. (नेति-नेति)

भगवान धीरे धीरे प्रयाण करते है। प्रयागराज आये है। त्रिवेणी संगम में स्नान किया है।
प्रयाग राज के महान संत भरद्वाज मुनि का यहाँ आश्रम है। प्रभु आश्रम में पधारे है।
भारद्वाज मुनि को अति आनंद हुआ है।
वह कहेते  है कि-आज तक मैंने जो साधन किया उसका फल मुझे आज मिला है।
आपके दर्शन से मेरी तपश्चर्या सफल हुई है।


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