Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-274


महाराज दशरथ जमीन  पर पड़े थे। राम वियोग के पांच दिन हुए है। मुख पर मृत्यु की छाया दिखती है।
मंत्री ने आकर प्रणाम किया। दशरथ ने आँखे खोली है और पूछा मेरा राम कहाँ है?तुम रामजी को ले आए?
मेरे राम को कहाँ छोड़ आए ?मुझे भी वहाँ ले चलो जहाँ मेरा राम है।
दशरथ की व्याकुलता देखकर सुमंत की आँखों से आँसू बहने लगे।

सुमन्त बोले -महाराज आप तो ज्ञानी है। मै रामजी का संदेशा लाया हूँ।
उन्होंने कहा है कि मेरे पिताजी को प्रणाम कहना और उनके प्रताप से हम वन में सकुशल है।
महाराज,मै कितना निर्दय हूँ कि राम को छोड़कर जीते जी वापस आया हूँ।
सीताजी ने मुझसे कहा था,मंत्रीजी आप तो मेरे पिता के समान है। मै अयोध्या वापस नहीं जा सकती।
अपने पति के बिना मै जी नहीं पाऊँगी। मेरे ससुरजी को मेरा प्रणाम कहना।

दशरथ राजा व्याकुल हुए है। उन्होंने कहा -मेरे ह्रदय में वेदना हो रही है। मुझे श्रवणकुमार के माता-पिता ने शाप दिया था कि पुत्र-विरह में मेरी मृत्यु होगी। वह समय अब आ गया है ऐसा लगता है।
राम के वियोग में अब तक मेरे प्राण क्यों नहीं जाते।

मध्य रात्रि के समय दशरथ राजा ने राम-राम(पांच बार) कहते हुए देह-त्याग कर दिया।
पाँच प्राण को सिद्ध करने के लिए वे पाँच बार राम बोले है।
दशरथ राजा का राम वियोग और राम प्रेम इतना सच्चा था कि राम के वियोग में वे जी नहीं  सके।

दशरथ राजा के मृत्यु के समाचार सुनकर वसिष्ठजी वहाँ आये है।
सभी लोगो को विलाप करते देख वसिष्ठजी ने उपदेश दिया -दशरथ की मृत्यु मंगलमय थी।
जिसका मन मरते समय प्रभु चरण में हो तो उसका मृत्यु भी मंगलमय  होता है।
इसलिए इस समय शोक मत करो।
फिर उन्होंने सेवकों को आज्ञा दी कि कैकय देश में जाकर भरत और शत्रुघ्न से कहो कि गुरूजी ने बुलाया है।
राजा के मृत शरीर को तेल की कोठी में रखा गया।

सेवको ने जाकर भरत -शत्रुघ्न को सन्देश दिया इसलिए वे अयोध्या वापस आने के लिए निकले है।
मार्ग में बहुत अपशुकन हुए है। रथ अयोध्या आया है। अयोध्या का बाज़ार बंद था । लोगो ने काले कपडे पहने थे। भरतजी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वे सीधे कैकेयी के महल में पहुँचे।
पुत्र के आगमन से कैकेयी आनंद से दौड़ती हुई उनका स्वागत करने आई।
भरत  ने पूछा -मेरे पिताजी कहाँ है?कुशल तो है न ?

कैकेयी बोली-क्या बताऊ तुम्हे? तेरे पिताजी स्वर्ग में गए है।
पिता की मृत्यु से भरत व्याकुल  हुए है। “पिताजी के सेवा करने का लाभ मुझे नहीं मिला।
माता से पूछा -पिताजी की मृत्यु के समय मेरे राम कहाँ थे?
कैकेयी ने कहा -राम वन में गए है।मेरे वरदान के अनुसार उन्हें वनवास दिया  है। और तुम्हे राज्य।   
और फिर सब बात विस्तार से कही।

सारी बात जानकार भरत का ह्रदय दुःख से कातर हो गया। अपनी माता के प्रति  उन्हें क्रोध और तिरस्कार
उत्पन्न हुआ। मेरे राम को वनवास दिया? वनवास का वरदान मांगते समय तेरे मुँह में कीड़े क्यों नहीं पड़े।
मुझे ऐसा होता है कि तुझे मार डालू। पर क्या करू? तुझे माँ कहा है। पर अब मुझे तेरा काला मुँह मत बताना।

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