Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-276


प्रातःकाल में आँगन में भीड़ हुई है सभी को आशा है कि -राम-सीता अयोध्या वापस आएंगे।
भरतजी ने कहा जिसको आना है वह सभी चल सकते है। उनके घर की रक्षा राज्य करेगा।

वसिष्ठजी भी उनकी पत्नी अरुंधती के साथ रथ में विराजमान हुए।
अब तो कैकेयी के सिर सभी कलि उतर चुका था और वे भी राम के दर्शन के लिए आतुर थी।
भरतजी के लिए सुवर्ण रथ तैयार किया गया किन्तु वे उसमे बैठना नहीं चाहते थे।
लोगों ने कहा कि यदि आप रथ में नहीं जाएंगे तो हम भी पैदल ही चलेंगे।
माता कौशल्या ने समझाया कि यदि तू रथ में सवार नहीं होगा तो सारी प्रजा को कष्ट होगा।
कौशल्या की आज्ञा से वे रथ में सवार हुए। उन्होंने आभूषण उतार वल्कल वस्त्र पहने है।

पहले दिन भरतजी श्रृंगवेरपुर के निकट आये तो गृहक को सेवको ने समाचार दिए कि -
लगता है कि-भरत अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ आ रहे  है।
गृहक ने सोचा कि भरत सेना को लेकर राम-लक्ष्मण के साथ युद्ध करने जा  रहे है।
क्योकि -अगर ऐसा नहीं है तो सेना क्यों साथ लाए है।
उसने अपनी भील सेना को आज्ञा दी कि किसी को भी इस पार आने न दिया जाये।

एक वृध्द भील ने गृहक से कहा कि भरत शायद रामजी को मनाने के लिए आ रहे है।
गृहक ने सोचा -यह भी संभव है। जल्दी में झगड़ा करना ठीक नहीं है।
भरत के भाव की परीक्षा करने के लिए उसने तीन प्रकार की सामग्री ली।
कंद -मूल(सात्विक),मिठाई(राजसिक) और मांस(तामसिक).
उन्होंने सोचा कि जिस पर भरतजी के नजर सबसे पहले होगी उस पर से पता चलेगा कि उनके भाव क्या है।  
वे अपने मंत्री के साथ सामग्री लेकर आये है। वसिष्ठजी को प्रणाम किया है।

वसिष्ठजी ने भरत  से कहा -राम का अंतरंग सेवक गृहक तुमसे मिलने आया है। मैंने सुना है कि रामजी की उन्होंने बहुत सेवा की है। रामजी का सेवक सुनकर भरत रथ में से कूद पड़े और गृहक को गले लगाया।
गृहक के पास भोजन-सामग्री है पर भारत ने किसी की तरफ नजर नहीं डाली ।
उनके मुख से बस राम नाम उच्चारित हो रहा था। गृहक को विश्वास हो गया  कि भरतजी लड़नेके लिए नहीं जा रहे है। राजा गृहक ने आज्ञा दी कि -अयोध्या की प्रजा का भली-भाँति स्वागत किया जाए।
भील लोग तरह-तरह के फल और कंद-मूल ले आए और स्वागत किया।

दूसरे दिन भरतजी ने गंगा को प्रणाम करते हुए कहा,माता मै आज कुछ मांगने आया हूँ। मेरी यह भावना है।
मुझे वरदान दो। मुझे रामचरण-प्रेम का दान करो।
उनकी प्रार्थना सुनकर गंगाजी ने ध्वनित किया -तुम चिन्ता मत करो। सभी का कल्याण होगा।

गृहक ने भरत को अशोक वृक्ष दिखाया,जिसकी छायामें श्रीराम ने विश्राम किया था।

भरत  ने उस वृक्ष को प्रणाम किया। श्रीराम के दर्भ के बिस्तर को देखकर उनका ह्रदय भर आया है। जिनके पति श्रीराम है,उस सीताजी को मेरे कारण कितना दुःख सहना पड़ रहा है। हे राम,सभी कष्टो का कारण मै ही हूँ।

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