Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-279


राम,लक्ष्मण और जानकी पर्णकुटी के बहार बैठे है। अनेक ऋषि वहाँ आये है और ज्ञान की बातें कर रहे है।
इतने में भील लोग दौड़ते हुए आये और कहा कि  कोई भरत नाम का राजा अपनी सेना के साथ
आपको मिलने आ रहा है। यही कारण है कि हमारे पशु भी भय से भाग रहे है।

रामचन्द्रजी सोच में डूब गए। लक्ष्मण के मन में गृहक की तरह कुभाव जागा।
मिलने आ रहा है पर साथ में सेना लेकर क्यों आ रहा है?
वैसे तो वह  साधु सा है पर शायद राज्य मिलने से उसकी मति भ्रष्ट हो गई है।
लक्ष्मणजी क्रोधित हुए पर रामजीने उन्हें समझाते  हुए कहा -
हे,लक्ष्मण,भरत  को अगर ब्रह्मलोक का राज्य प्राप्त हो जाये तो भी उसे सत्ता का मद प्रभावित नहीं करेगा।
भरत जैसा भाई जगत में न तो हुआ है और न होगा।

दूसरे दिन सुबह में चित्रकूट की तलहटी में भरतजी ने वशिष्ठजी से आज्ञा मांगी है।
कहते है-कि-गुरूजी अगर आप आज्ञा दे तो मै ऊपर जाऊ।
भरतजी अति व्याकुल है। सोचते है कि -मेरा काला मुँह रामजी को कैसे बताऊ?
रामजी मुझे देखते ही चले तो नहीं जायेंगे? नहीं,नहीं। वे ऐसा नहीं करेंगे। वे मुझे अवश्य अपनाएंगे।
किन्तु यदि भाभी(सीताजी)उन्हें मिलने से रोक देंगी तो? नहीं,वे भी ऐसा तो नहीं करेंगी।
भरतजी “सीताराम- सीताराम” बोलते हुए जाने लगे।

उनके प्रेम से तो चित्रकूट के पत्थर भी मानो सचेत हो गए है।
भरत ने दूर से देखा कि राम आँगन में ऋषिओं के साथ ज्ञान की बातें कर रहे है।
उन्हें नजदीक जाने का डर लग रहा है। मै अपराधी हूँ। कैसे जाऊ? कैकेयी तूने ये क्या किया?
सन्मुख जाने की मेरी हिम्मत नहीं होती। मेरे कारण मेरे राम दुःख भुगत  रहे है।
अपने आपको धीरज देते हुए भरतजी राम के निकट जाकर साष्टांग दंडवत प्रणाम किया।

लक्ष्मण ने यह देखा तो रामचन्द्रजी से कहा कि भरत आपको प्रणाम कर रहा है।
भरत का नाम सुनते ही रामजी बोले उठे -कहाँ है मेरा भरत ? उन्होंने भरत को उठाकर अपने ह्रदय से लगा लिया। उस समय देवों ने पुष्पवृष्टि की है। चित्रकूट पर जीव और ईश्वर का मिलन हुआ है।
भरतजी की दशा देखते हुए रामजी के आँख में से आँसू निकले है। मेरे भरत दुःखी हुआ है।
रामजी के मुख से एक शब्द भी नहीं निकलता।

परमात्मा (श्रीरामचन्द्रजी)के चरण में शान्ति है।
परमात्मा से अलग हुआ जीव जहा भी जाए वहाँ अशांति है। संसार सुख-दुःख से भर हुआ है।
इस जीव को आनन्द की भूख है। परमात्मा की सिवा  जगत में कहीं भी आनन्द नहीं है।
मनुष्य स्वर्ग में जाए या बड़ा ज्ञानी बने पर जब तक परमात्मा के चरणमें  नहीं आता तब तक वह अशान्त है।
परमात्मा के चरण में आने से ही उसे शान्ति मिलती है।
मनुष्य जीवन का लक्ष्य बनाकर साधन करे तो जरूर एक दिन वह  परमात्मा में लीन होता है।

भरतजी ने फिर सीताजी को प्रणाम किया।  सीताजी ने आशीर्वाद दिए।
अब भरत को विश्वास हुआ कि मुझे पाप की क्षमा मिल गई है। रामजी वशिष्ठजी को प्रणाम करते है।
सभी को राम एक साथ मिलते है। कैकेयी को वंदन करते है।
कैकेयी दुःखी है इसलिए राम समझाते है कि इसमें आपका कोई  दोष नहीं है। यह तो विधि की लीला है।
वे सभी माताओं को मिले और उनको धीरज दी। फिर सबको आसन पर बिठाकर पिताजी के समाचार पूछे।

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