Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-282


अत्रि ऋषि के आश्रम से निकालकर वे सुतीक्ष्ण के आश्रम में आये है। सुतीक्ष्ण अगत्स्य ऋषि के शिष्य थे। विद्याभ्यास की समाप्ति के बाद गुरूजी से दक्षिणा मांगने की प्रार्थना की।
अगत्स्य ऋषि ने कहा -तेरा कल्याण हो। कुछ पाने की आशा से मैंने विद्यादान नहीं किया है।
सुतीक्ष्ण ने जब खूब आग्रह किया तो अगत्स्य ने कहा -तेरे में शक्ति हो तो मुझे राम दर्शन कराना।

सुतीक्ष्णने जब आज रामजी के दर्शन किए। तो उन्होंने रामजी से कहा,चलिए,मै आपको मार्ग दिखाऊ।
रामजी ने लक्ष्मणजी से कहा कि यह हमे मार्ग बताने नहीं पर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने आ रहे है।
सुतीक्ष्ण रामजी को अगत्स्य के आश्रम में ले जाते है।
अगत्स्य ऋषि दौड़ते हुए आए और रामजी के दर्शन करके कृतार्थ हुए।
रामजी को कहा कि तुम्हारी कृपा जिसके पर होती है उसी को आपके दर्शन होते है।

रामजी ने आश्रम में अस्थि का ढ़ेर देखा तब अगत्स्य ऋषि ने कहा कि राक्षस ऋषियों को खूब हेरान करते है। रामजी का ह्रदय भर आया। उन्होंने प्रतिज्ञा की -मै सभी राक्षसों का विनाश करूँगा।

उसके बाद उन्होंने गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में मुकाम किया है।
पंचवटी का अर्थ है -पाँच प्राण,परमात्मा पाँच प्राण में विराजमान है।
संसार-अरण्य में भटकने वाले को वासना-रूपी शूर्पणखा मिल जाती है। रामजी उनकी और देखते तक नहीं है। शूर्पणखा मोह का स्वरूप  है। वह रावण की बहन है। बनठन के रामजी के पास आई और बोली मै कुँवारी हूँ।
मेरा मन तुम्ही में खो गया है। मै तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। शूर्पणखा काम-वासना है।

रामजी बोले- तेरी ही भाँति मेरा भाई लक्ष्मण भी अविवाहित है। तू उसके पास जा।
मै तो एक पत्नीव्रत का पालन करता हूँ।
शूर्पणखा गुस्से हुई और बोली- तुम अपनी सीता के कारण मेरी उपेक्षा कर रहे हो।
उसने अपना विशाल राक्षसी रूप धारण किया और कहा,मै तुम्हे खा जाऊँगी।

वासना भी शूर्पणखा की तरह पहले सुन्दर लगती है किन्तु आगे चलकर उसका वास्तविक रूप सामने आता है तब  जीव उसमे  फँस जाता है। आरम्भ में सुकुमार लगती है,किन्तु आगे चलकर तीव्र होती है।
उसकी (वासना की) पकड़ से छूटना आसान नहीं है।

तब,लक्ष्मणजी ने आकर शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए।
वह रोती हुई रावण के पास गई और कहा -दशरथ के दो पुत्र पंचवटी में रहते है। उनके साथ एक सुन्दर स्त्री भी है। मै तुम्हारे लिए उसे लेने गई थी और मेरी यह दशा हुई। तुम्हारे  राक्षसों का भी उन्होंने विनाश किया है।
रावण ने शूर्पणखा को आश्वासन दिया है।

इस तरफ रामजी ने सीताजी से कहा -अब लीला करनी है। तुम अग्नि में निवास करो।
यह-इसलिए कहा गया है कि रावण जो सीता को ले गया था वह,सीता नहीं पर  उनकी छाया थी।

समुद्र के किनारे मारीच रहता था। रावण वहाँ  आया है और कहा -राम राक्षसो को मार रहा है। मुझे मदद कर।
मारीच बोला -राम जब छोटे थे तब मुझे उनके दर्शन हुए थे। विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने आये थे।
मै यज्ञ में विघ्न करने गया था तब उन्होंने मुझे तीर से मारा और मैं इस  समुद्र के आगे आकर गिरा।
मै उनके साथ बैर नहीं करुँगा।

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