Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-283


रावण मानता नहीं है। मारीच  के साथ पंचवटी के वन में आया है। मारीचने सुवर्णमृग  का रूप धारण किया।  सीताजी ने यह मृग देखा और रामजी से कहा -यह अतिसुन्दर है। मुझे इसके चर्मका  वस्त्र पहनने की इच्छा है। आप इसका शिकार कीजिये। राम मृगया करने मृग के पीछे गए।

राम ने भागते हुए मृग पर तीर चलाया तो वह “हे लक्ष्मण”बोलता हुआ धराशायी हो गया।
इधर सीताजी ने लक्ष्मण के नाम की पुकार सुनी तो लक्ष्मण को अपने पति की सहाय के लिए भेजा। उसी समय रावण भिक्षुक का रूप लेकर सीताजी के पास भिक्षा लेने आया। और रावण ने सीताजी का हरण  किया है।

रावण सीताजी को रथ में बिठाकर आकाशमार्ग से जा रहा था। मार्ग में जटायु ने सीताजी की आर्त वाणी सुनी तो उन्होंने रावण से युद्ध किया। जटायु बूढ़ा है पर बलवान है।
युद्ध करते समय रावण ने जटायु से पूछा कि तेरी मृत्यु कहाँ  है?
जटायु ने कहा कि जब कोई मेरी पँखो को काट दे  तब मेरी मृत्यु होगी।
उसी समय जटायु ने रावण से पूछा कि तेरी मृत्यु कैसे है,मुझे बता।
रावण ने जूठ बोला कि मेरी मृत्यु मेरे अँगूठे में है। ऐसा सुनकर जब जटायु रावण के अँगूठे पर अपनी चोंच मारने गया तब रावण ने उसके दोनों  पँख काट दिए है।

दूसरी तरफ लक्ष्मण राम के पास आए। रामजी ने कहा कि- मैंने तुझे सीताजी की रक्षा करने रखा था।
तू इधर क्यों आया है। लक्ष्मण ने कहा -मै तो आना नहीं चाहता था पर भाभी के कहने पर आया हूँ।
लक्ष्मणजी ने सोचा कि रामजी के सेवा करना बहुत कठिन है।
राम ने एक बार लक्ष्मण से कहा था कि -लक्ष्मण इस जन्म में तूने मेरी खूब सेवा की है।
अगले जन्म में मै तेरी सेवा करूँगा। दूसरे जन्म में लक्ष्मण - बलराम (श्रीकृष्ण के बड़े भाई) हुए है।

दोनों भाई आश्रम में वापस लौटे देखा तो सीताजी वहाँ नहीं है।
रामजी ने नाटक किया है।अज्ञान से सामान्य जीव वियोग में रोता है। राम के पास अज्ञान आ ही नहीं सकता फिर भी उन्होंने सामान्य जीव की तरह स्त्री-वियोग का अभिनय किया है और विलाप करने लगे।

एकनाथजी ने सीता-वियोग का वर्णन बहुत अच्छा किया है। रामजी “सीते -सीते “पुकारते हुए विलाप करने लगे। लक्ष्मण उन्हें समझाते है -धीरज रखो और आँखे खोलो।
रामजी कहते है आँखे कैसे खोलू? धरती मेरी सास है। उनकी तरफ देखू तो कहती है कि -
पत्नी की रक्षा करने की शक्ति नहीं थी तो विवाह क्यों किया?
आकाश की तरफ देखू तो सूर्यनारायण कहते है कि मेरे कुल में जन्म लिया फिर भी पत्नी की रक्षा नहीं कर सका। इसलिए मै आँखे नहीं खोल सकता।

राम-लक्ष्मण सीताजी की खोज में निकले है। रास्ते में एक स्थान पर घायल जटायु को को देखा।
जटायु ने कहा -रावण ने मेरी यह दशा की है। वह सीताजी को उठाकर दक्षिण दिशा की ओर गया है।

रामजी ने कहा -अगर तुम्हारी इच्छा हो तो तुम्हे ठीक कर दू।
जटायु ने मना किया और कहा-मृत्यु के समय मुख से जिनका नाम उच्चारित होने पर अधमको भी मुक्ति  
मिलती है,वैसे आप मेरे समक्ष उपस्थित है। मुझे अब कौन सी इच्छा पूरी करनी है जिसके लिए शरीर को रखा जाए। मुझे इच्छा थी कि अंत समय में आपके दर्शन हो। इसलिए मैंने प्राण को रोक रखा था। अब भले प्राण जाए। ऐसा कहकर जटायु ने रामजी की गोद में देह छोड़ दिया। जटायु ने गिद्ध का देह छोड़ हरिधाम में गया।
जिस गति की इच्छा योगी करते है,वह उत्तम गति रामजी ने जटायु को दी।

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