Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-284


जटायु के देह का  अंतिम संस्कार एक पुत्र अपने पिता के लिए करता है उसी तरह रामजी ने  किया।
रामजी जैसे दयालु कोई हुआ नहीं है और न होगा।
इसलिए शिवजी पार्वती  से कहते है -
सच में लोग अभागी है जो हरि(रामजी) को छोड़कर सांसारिक विषयो से प्रेम करते है।

जटायु की मृत्यु सुधारकर रामजी आगे बढ़े है। वहाँ से पम्पा सरोवर के किनारे शबरी के आश्रम में आये है। एकनाथजी महाराज ने भावार्थ रामायण में शबरीजी की कथा का वर्णन बहुत सुन्दर  किया है।
उनका वर्णन करते हुए उन्हें समाधि लगी है।

शबरी पूर्व जन्म में किसी राजा की रानी थी।
रानी होने के नाते वह संतो की धन से सेवा करती पर तन से नहीं कर सकती थी।
संसार में रानी का सुख श्रेष्ठ माना गया है पर शबरी को वह तुच्छ लगता था। एक बार वह प्रयागराज गई।
वहाँ कई महात्माओं के दर्शन हुए। अगले जन्म में किसी सच्चे सन्त से सत्संग हो,ऐसी इच्छा करते हुए उसने त्रिवेणी में आत्मविसर्जन किया। उसी रानी का भील जाति में शबरी के रूप में जन्म हुआ।

शबरी प्रेमलक्षणा भक्ति है। बचपन से ही प्रभु में प्रेम है। शबरी का विवाह पक्का किया गया।
उनके  पिता भोजन के लिए तीन सौ बकरियाँ ले आये। शबरी ने सोचा,मेरे कारण यह हिंसा होने जा रही है।
यह ठीक नहीं है। वे  मध्य रात्रि को घर छोड़ पंपा सरोवर के किनारे मातंग ऋषि के आश्रम के पास आई।

“मै भील कन्या हूँ,इसलिए शायद ऋषि मुझे सेवा नहीं करने  देंगे ऐसा सोच उसने गुप्त में रहकर सेवा करने का सोचा। पूरा दिन वह वृक्ष पर बैठी रहती और रात के समय संतो की सेवा करती।
वे आश्रम की सफाई करती और सेवा के लिए फल-फूल लेकर रख देती। जिस मार्ग से ऋषि-मुनि जाते थे,
उस मार्ग की सफाई रात्रि के समय कर देती थी। किसी को पता नहीं चलता। पर एक दिन वह पकड़ा गई।

मातंग ऋषि ने पूछा - तू कौन सी जाति की है? शबरी ने सच बताया और कहा कि वह किरात कन्या है।
बार-बार माफ़ी मांगी -मै अपराधी हूँ ,मुझे माफ़ कर दो।
मातंग ऋषि ने सोचा कि यह हैं भील जाति की है किन्तु कर्महीन नहीं है। कोई महान जीव हीनयोनि में आया है।
मातंग ऋषि ने कहा -बेटा,अब से तू मेरे आश्रम में रहना। मातंग ऋषि ने उसे आश्रम में रहने के लिए झोपड़ी दी। शबरी शुद्ध थी फिर भी और ऋषिजन मातंग ऋषि की निंदा करते है-भील कन्या आश्रम में रखी है।

मातंग ऋषि ने सोचा - यह भील कन्या सभी मर्यादा रखती है। इसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए।
उन्होंने शबरी को राम मंत्र की दीक्षा दी।
राम शब्द में र,आ और म तीन अक्षर है।
र- से पाप का नाश होता है। आ -से बुद्धि शुद्ध होती है और म- चन्द्र जैसी शीतलता मिलती है।

समय जाते मातंग ऋषि ब्रह्मलोक जाने के लिए तैयार हुए। शबरीको  दुःख हुआ।
वह कहने लगी-पिताजी आप मत जाइए। आप चले जायेंगे तो मेरा क्या होगा।
ऋषि ने कहा -मैंने तुम्हे राम मंत्र की दीक्षा दी है। तुम भाग्यशाली हो। एक दिन राम तुम्हे मिलने आयेंगे।
मेरे तुम्हे दिल से आशीर्वाद है। कब आयेंगे  वह मुझे पता नहीं है। किन्तु उनका अयोध्या में प्रागट्य हो चुका है।इसलिए,शबरी,रामके दर्शनकी आशा में जीती है। एक दिन मेरे प्रभु आएंगे और मुझे अपनायेंगे।

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