Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-285


कोई मनुष्य की आशा रखनी नहीं और ईश्वर की आशा छोड़नी नहीं।
शबरी को आशा थी कि एक दिन मेरे मालिक आयेंगे इसलिए वन में से बेर आदि फल लाती थी।
सारा दिन प्रतीक्षा करती और शाम को बच्चों को बाँट देती थी।
वह मन से सोचती थी कि -मै पापिनी हूँ तभी वो मेरे यहाँ नहीं आते है।

ईश्वर की प्रतीक्षा करती-करती अब वह वृद्ध हुई है। पर फिर भी मन में उत्साह है कि प्रभुजी मेरे घर आयेंगे।
मेरे गुरूजी ने कहा है इसलिए वे जरूर आयेंगे। उसका जीवन संयमी और सेवामय था। उसकी निष्ठा दिव्य थी।
ऐसे के घर राम नहीं आएंगे तो फिर किसके घर जायेंगे?

राम-लक्ष्मण पंपा सरोवर के पास आते है। ऋषि-मुनि उनका स्वागत करते है।
सभी ने उन्हें आमंत्रण दिया पर राम ने कहा -हमे तो शबरी के घर जाना है।
इन ऋषियों ने शबरी का अपमान किया है इसलिए राम उनके वहाँ नहीं जाते।
रामजी कहते है -पूरा जीवन जो मुझे ढूंढ रहा है उसे एक दिन मै ढूँढने जा रहा हूँ।
जो जीव परमात्मा को ढूंढता है -परमात्मा उसे ढूँढ़ते  हुए उसके घर आते है।

दूर से मालिक को देखकर शबरी खूब खुश हुई है.दोनों को प्रणाम किया और बैठने के लिए आसन दिया।
वैसे तो मै जातिहीन हूँ,फिर भी आपके शरण में आई हूँ।
राम ने कहा -मै प्रेम के सिवा और किसी भी प्रकार के सम्बन्ध में नहीं मानता।माँ,मुझे भूख लगी है। मुझे खाना दो।
"सबसे ऊँची प्रेम सगाई। "

शबरी ने मालिक के लिए बेर रखे है। वे बेर का दोना ले आई और चख-चख कर देने लगी कि कहीं खट्टे तो नहीं है। अति प्रेम में उसे यह विचार नहीं आता कि मे भगवान को झूठे बेर खिला रही हूँ।
रामजी भी बेर की तारीफ करते हुए खाते है।
साधारण प्रेम या भक्ति हो तो परमात्मा रस के रूप में खाते है पर जहा तीव्र भक्ति और प्रेम होता है वहाँ ईश्वर प्रत्यक्ष खाते है। शबरी की भक्ति विशिष्ठ थी इसलिए प्रभु ने उनकी सेवा की स्वीकार किया है। मिठास प्रेम में है।महापुरुष वर्णन करते है कि शबरी के बेर खाकर रामजी ने जो गुठली फ़ेंक दी थी उनमे से द्रोणाचल पर्वत पर संजीवनी वनस्पति उत्पन्न हुई। इसी संजीवनी से लक्ष्मण को जीवदान मिला था।

शबरीका चरित्र मानवमात्र के लिए आश्वासन रूप है।
श्रीराम ने शबरी से पूछा ,तेरी कोई इच्छा है? शबरी ने कहा -इस पंपा सरोवर के बिगड़े हुए जल को सुधार दो।
आप इसमें स्नान कीजिये तो जल शुद्ध हो जाए।
हुआ ऐसा था कि एक बार शबरी सफाई कर रही थी।
उसी समय एक ऋषि पंपा सरोवर में स्नान करके वापस आ रहे थे और भूल से शबरी का झाड़ू उन्हें छू गया।
ऋषि गुस्से हुए और शबरी को लात मारी और सरोवर में वापस स्नान करने गए।
शबरी के अपमान से आश्चर्य ये  हुआ कि सरोवर का पानी खून के रंग का बन गया।
पंपा सरोवर का जल बिगड़ गया। शबरी उस अपमान से विलाप करने लगी।
सभी ऋषि यह समझने लगे कि मातंग ऋषि ने अछूत कन्या को घर में रखा इसलिए जल बिगड़ गया।

शबरी की महिमा बढ़ाने के लाइए रामजी ने कहा -इस जल को सुधारने के शक्ति मेरे में नहीं है।
यदि शबरी सरोवर में स्नान करेगी  तो यह जल शुद्ध होगा। शबरी ने जैसा पंपा  सरोवर में स्नान किया और पानी शुद्ध हो गया। राम ने शबरी का उद्धार किया। राम के दर्शन करती हुई शबरी योगाग्नि में विलीन हो गई।

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