Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-287


वाली कहता है-मे तो पुण्यशाली हूँ,तभी आपके दर्शन इस समय कर रहा हूँ। आपके दर्शन से अब मै पापी नही रहा। आपके दर्शन देवों को भी दुर्लभ है फिर  भी मै  कर रहा हूँ।
रामजी ने कहा -मेरे दर्शन तुम्हे हुए,वह तेरे प्रताप से नहीं पर तू सुग्रीव का भाई है  सो तेरा उद्धार कर रहा हूँ।
तुम सुग्रीव के कारण ही मेरे दर्शन पा रहे हो।

भगवान की बात सुनकर बाली ने सुग्रीव को प्रणाम किया और सुग्रीव को कहा कि-
तेरे कारण ही मुझे भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सुग्रीव ने बाली से कहा -नहीं,तुम्हारे कारण ही मुझे भगवान के दर्शन हुए है। यदि तुमने मुझे घर से निकाल नहीं दिया होता तो प्रभुदर्शन मै भी कैसे पा सकता।
फिर राम-राम बोलते वाली ने शरीर का त्याग किया। रामजी ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य दिया।

राम की अनासक्ति भी कैसी है!!  रावण की हार हुई और लंका का राज्य राम को मिला किन्तु उन्होंने राज्य विभीषण को दे दिया। श्रीकृष्णको भी मथुरा का राज्य मिला था पर उन्होंने उग्रसेन को दिया था। भगवान जैसा बोलते है वैसा जीवन में उतार कर दिखाते है। ज्ञान की शोभा  व्याख्यान नहीं,क्रियात्मक भक्तियोग है।

भगवान राम प्रवर्षण पर्वत पर विराजे है। राज्य मिलने का बाद सुग्रीव राज वैभव के सुख में भगवान को भूल गया। ज्यादा सुख मनुष्य को भगवान से दूर ले जाता है। सुग्रीव को बहुत सुख मिला इसलिए भगवान को और उनके उपकार को भूल गया है। सुग्रीव के ऐसे वर्तन से लक्ष्मणजी नाराज है और सुग्रीव को नाराजगी का कारण बताया। सुग्रीव ने आकर माफ़ी मांगी।

सुग्रीव और हनुमान सीताजी को ढूँढने निकले है। पूरी वानर सेना को साथ लिया है।
हनुमानजी ने रामजी से पूछा -मैंने सीताजी का देखा नहीं है। उन्हें कैसे पहचानूँगा? मुझे कोई पहचान दो।
तब रामजी ने कहा -वे गोरे और अति सुन्दर है।
हनुमानजी बोले -मै ब्रह्मचारी हूँ। स्त्री के सामने नहीं देखता। दूसरी कोई पहचान दो।
रामजी बोले-जिस जंगल में सीताजी होगी उस पेड़ के नीचे से राम-राम की ध्वनि सुनाई देगी।
और अगर किसी घर में होगी तो उसकी दिवाल में से राम-राम की ध्वनि सुनाई देगी।
ऐसा सुनाई दे तो समझना कि सीताजी उधर ही कहीं है।

राम ने अपने हाथ की मुद्रिका(अँगूठी) दी और कहा कि-
सीताजी को मेरे बल और विरह की बात कहकर वापस लौटना।
हनुमनजी ने वानर सेना सहित दक्षिण की ओर प्रयाण किया।
वे जाम्ब्वन्त के पास आये,जहाँ सम्पाती ने समाचार दिए कि सीताजी को अशोक-वन में रखा गया है।

समुद्र को पार करना कठिन है। तभी जाम्ब्वन्त ने  हनुमानजी को उनकी शक्ति का अहसास कराया।
राम-नाम और संयम के बल के बिना समुद्र पार नहीं किया जा सकता।
हनुमानजी आवेश में आकर बोले -तुम कहो तो पूरी लंका को पानी में डूबा दू।
जाम्ब्वन्त ने कहा -धीरज से काम लो। अगर लंका को डूबा दोगे तो सीताजी भी डूब जाएगी।

हनुमानजी ने राम-नाम लेकर वहीं से उड़ान शुरू की। रास्ते में सुरसा मिली। उसका नाश  किया है।
सुरसा -जीभ है। जीभ अगर लौकिक रस  में मिल जाए तो प्रभु स्मरण के रस का पता नहीं चलता।
लौकिक रस से अगर विरक्त हो तभी उसे प्रभु-स्मरण का ज्ञान होता है।

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