अंदर प्रवेश कर रहे थे कि लंकिनी ने रूकावट की। हनुमानजी ने उसे मारा।
लंकिनी ने कहा कि मुझे ब्रह्माजी ने कहा था कि कोई वानर मुष्टि प्रहार करे तो मानना कि -
अब रावणका अंत नजदिकमे है । आप लंका में जाना पर राम को ह्रदय में रखकर जाना।
शायद राक्षसियों के विहार को देखकर मन विकारी हो जाए।
मानवसमाज में रहकर मानव बनना आसान नहीं है। एकान्त में बैठकर ब्रह्मचिंतन करना आसान है।
विलासी लोगों के साथ रहकर निर्विकार रहना बड़ा कठिन है। शरीर से चाहे पाप न हो,मन से तो हो जाता है।
हनुमानजी को कौन उपदेश दे सकता है? वे तो सकल विद्या के आचार्य है।
वहाँ से इंद्रजीत के महल में आए। वहाँ अति सुन्दर सुलोचना को देखकर उन्होंने सोचा कि यही सीताजी है।
फिर सोचा-नहीं,ये नहीं हो सकती। यहाँ की दिवालों से राम-नाम की ध्वनि नहीं सुनाई देती।
एकनाथ महाराज ने सुन्दरकाण्ड में इसका बहुत सुन्दर वर्णन किया है।
एकनाथ जी ने और भी कहा है कि-
रामजीकी सेवा के लिए,शिवजी ने हनुमानजी का अवतार लेने का निश्चय किया,तो,
पार्वती ने भी उसके साथ अवतार लेने का आग्रह करने लगी
तो शिवजी ने कहा ,नहीं मुझे ब्रह्मचारी रहना है। पार्वती ने कहा,मै आपके बगैर जी नहीं सकूंगी।
सो शिवजी ने हनुमानजी का रूप लिया और पार्वती बनी उनकी पूंछ। यह योगमाया सभी के घर में जाती है।
हनुमानजी ने सारी रात सूक्ष्म रूप में परिभ्रमण किया किन्तु सीताजी कही भी दिखाई नहीं दी।
प्रातःकाल में विभीषण के आवास में प्रविष्ट हुए।
उन्होंने देखा कि विभीषण जागते ही राम नाम का स्मरण कर रहे थे। विभीषण ने पूछा -आप कौन हो?
कहीं राम तो नहीं हो? प्रभात में आपके दर्शन हुए सो मेरा सारा दिन अच्छा बीतेगा कल्याण होगा।
हनुमानजी ने सारी बात बताते हुए सीताजी का पता पूछा।
विभीषण -आपके दर्शन होने से मुझे विशवास हो गया है कि रामजी के दर्शन मुझे अवश्य होंगे।
मै तो अधम हूँ,किन्तु आपके कारण राम मुझे अवश्य अपनायेंगे। फिर उन्होंने सीताजी का पता बताया।
हनुमानजी अशोक वन में आये है। वहाँ सीताजी समाधि अवस्था में बैठकर राम-राम का जप कर यही थी।
उनका शरीर दुर्बल हो गया था। हनुमानजी ने उन्हें मन ही मन प्रणाम कियाऔर वृक्ष की डाली पर बैठकर राम कथा सुनानी शुरू की। आपको ढूँढने के लिए कई वानर भेजे है। उनमे से मै एक हूँ। मै रामजी का दूत हूँ। आज मेरा जीवन सफल हो गया। साक्षात आद्यशक्ति को प्रणाम करता हूँ।
सीताजी -भाई आप कौन हो? प्रत्यक्ष क्यों नहीं आते?मेरे समक्ष आओ।
हनुमानजी ने सामने आकर माताजी को प्रणाम किया। रामजी की अंगूठी दी,और कहा -
मै रामजी का दूत हूँ।आप मेरी माता हो। रामजी आपकी उपेक्षा नहीं करते है । वे शीघ ही यहाँ आएंगे।
बातचीत के बाद हनुमानजी कहते है कि-
माताजी,मुझे बहुत भूख लगी है। यहाँ फल तो बहुत है पर राक्षस लोग निगरानी रखते है।
सीताजी ने कहा -निचे गिरे हुए फल ही खाना। तोडना मत।
हनुमानजी ने सोचा कि माताजी ने फल तोड़ने के लिए मना किया है,वृक्ष हिला कर फल गिराने के लिए नहीं कहा है। उन्होंने वृक्षों को हिलाकर फल गिराये और उसका आहार किया।