Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-289


अशोक-वन की निगरानी करते हुए,बहुत राक्षस दौड़ आए है,और हनुमानजी के साथ युद्ध करना चाहा,तब,
हनुमानजी ने दिव्य वानर का रूप धारण किया और पूंछ  को उसका काम करने की आज्ञा दी।
पूंछ ने बहुतों को मारा ,कई राक्षसियों का संहार किया। इतने में इंद्रजीत ने आकर ब्रह्मास्त्र छोड़ा।
हनुमानजी ने ब्रह्मास्त्र का सम्मान किया। इन्द्रजीत  हनुमानजी को बांधकर राजसभा में ले आये।
रावण ने हनुमानजी से पूछा -ए बन्दर! तू कहाँ से आया है और क्यों आया है?

हनुमानजी कहते है-हे, दशानन ! मै तुम्हे उपदेश देने आया हूँ। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तू तपस्वी बना था। फिर भी पराई स्त्री सीताजी को घर में रखा है? सीताजी को मुक्त कर और,तू रामचन्द्रजी की शरण में आ जा।
राम तेरा सर्व पाप माफ़ करेंगे। पर रावण नहीं मानता और बोला तेरी पूंछ  में बहुत शक्ति है। इसे ही जला डालो। हनुमानजी पूंछ को बढ़ाते गए। लंका के बाज़ार का सारा कपडा ख़त्म हो गया।
कपड़ों को घी-तेल में भीगोकर  फिर उन्हें जलाया गया।

हनुमानजी बोले यह तो पूंछ यज्ञ हो रहा है। रावण! अपने मुँह से जरा हवा तो दे। रावण फूंक मारने गया तो उसकी दाढ़ी जलने लगी। फिर तो-हनुमानजी ने कूदकर सारी लंका में आग लगा दी।

इस तरफ राक्षसियाँ दौड़ती हुई सीताजी के पास आई और कहने लगी-
आपके पास जो आये थे उसकी पूंछ सारी लंकाको  जला रही है।
हनुमानजी ने समुद्र के किनारे आकर देखा तो पूरी लंका जल रही है। उन्हें लगा कि यह अच्छा नहीं हुआ।
अगर अशोकवन भी जल गया तो? पूंछ को समुद्र में स्नान कराया। अग्नि शान्त हुई। वे अशोकवन में आये है।
देखा -तो अशोकवन का  पत्ता तक जला नहीं है।

हनुमानजी ने सीताजी को प्रणाम करके जानेकी आग्न मांगी।
सीताजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया -
अष्ट सिद्धियाँ तेरी सेवा करेगी और सारे जगत में तेरा जय जयकार होगा।
हनुमानजी को फिर भी संतोष  नहीं हुआ। उन्होंने तो सिर्फ राम सेवा के आशीर्वाद मांगे। सीताजी ने वह भी दिए। हनुमानजी अमर है। काल भी हनुमानजी का सेवक है।

हनुमानजी वहाँ से जाने लगे तो ब्रह्माजी ने पत्र लिख कर दिया है। लक्ष्मण ने पत्र पढ़कर सुनाया है।
हनुमानजी ने कहा -प्रभु,यह तो सब आपका ही प्रताप है। कृपा कीजिए जिससे मेरे में अभिमान न जागे।

मालिक की नजर नीची हुई है। मेरे हनुमान को इस उपकार के बदले में क्या दू।
उन्होंने हनुमानजी को अपनी बाँहो में भर लिया।
वहाँ से विजयादशमी के दिन रामजी ने प्रयाण किया।
रामजी का नियम था प्रतिदिन शिवजी की पूजा करना। वहाँ कोई शिवलिंग नहीं मिला तो
हनुमानजी को काशी से शिवलिंग लाने की आज्ञा दी। हनुमानजी को लौटने में देर हो गई तो
-मिटटी शिवलिंग बनाया और उसकी पूजा की। वहीं शिवलिंग रामेश्वर है।

हनुमानजी शिवलिंग लेकर जब आये तो देखा कि शिवलिंग की स्थापना हो चुकी थी. वे नाराज हुए।
उन्होंने कहा-प्रभु आपको जब शिवलिंग बनाना ही था तो मेरे से क्यों मंगवाया ?
रामजीने  कहा - अच्छा तो उसे उखाड़ दे। हम वहाँ तेरा लाया हुआ शिवलिंग की स्थापना करेंगे।
हनुमानजी ने शिवलिंग पर अपनी पूंछ लगाकर जोर से खेंचा पर शिवलिंग हिला तक नहीं।
आज भी उस शिवलिंग पर पूंछ के निशान है। हनुमानजी नाराज़ हुए।

रामजी अपने भक्त की नाराजगी नहीं सह सकते। उन्होंने हनुमानजी के लाये गए शिवलिंग की भी स्थापना की और कहा कि जो इस शिवलिंग के दर्शन पहले करेंगे उसी को उनके किये हुए शिवलिंग के दर्शन का पुण्य मिलेगा। ऋषियों ने भी आकर दर्शन किए  और रामेश्वर का अर्थ पूछा। रामजी ने  बताया - राम के ईश्वर वह  रामेश्वर।

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