Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-291


इंद्रजीत का हाथ,सुलोचना(इंद्रजीत की पत्नी)का आँगन में आया और उस हाथ ने लिखा कि-
लड़ते-लड़ते मेरी मृत्यु हुई है। सुलोचना विलाप करती है। “मुझे अब नहीं जीना है,मेरे पतिदेव का हाथ आया है।
मुझे उनका मस्तक ल दो तो उसे लेकर मै सती  हो सकू।"

सुलोचना रावण के पास गई और मस्तक माँगा।
रावण ने कहा -मस्तक मेरे पास नहीं है। उसे वानर रामजी के पास ले गए है।
सुलोचना ने कहा -आप उसे मंगवा दो।
रावण बोले -मेरे मांगने से वे नहीं देंगे। मै तुम्हे एक युक्ति बताता हूँ। उस प्रकार करने से तुम्हे मस्तक वापस मिलेगा। तुम रामजी के पास जाओ। वे तुम्हे अवश्य वापस देंगे।
अग्नि ने प्रवेश करने से पहले तू रामजी के पास जा। उनके दर्शन कर।

सुलोचना ने कहा -आप मुझे शत्रु के पास क्यों भेज रहे हो?  मै स्त्री हूँ -सुंदर हूँ। मुझे देखने से यदि
उनकी मति बदल गई तो अनर्थ होगा।
तब रावण ने रामजी की तारीफ की है। और कहा -रामजी जगत की सभी स्त्रियों को मातृभाव से देखते है।
राम तुम्हे भी उसी भाव से देखेंगे और तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।
मै राम को शत्रु मानता हूँ किन्तु वे मुझे शत्रु नहीं मानते। राम की शरण में जा।
वे अवश्य तुम्हे इन्द्रजीत का मस्तक देंगे।

सुलोचना रामजी के पास आई। रामजी ने उसे मान दिया है और प्रशंसा की है। सुलोचना ने मस्तक माँगा।
रामजी ने उसे अपने पति का मस्तक दिया। सुलोचना ने विलाप किया  और मालिक का ह्रदय पिघल गया।
उन्होंने कहा कि  अगर आप कहो तो आपके पति को वापस लाकर हज़ार वर्ष का आयुष्य दू।
सुलोचना ने मना किया और कहा  मेरे पति लड़ते-लड़ते मरे है और वीरगति प्राप्त की है। सुलोचना सती हुई है।

राम-रावण का बीच भयंकर युद्ध हुआ। रावण की नाभि में जो अमृत था,उसे अग्न्यस्त्र द्वारा सुखाया गया।
रावण की मृत्यु हुई। हनुमानजी ने सीताजी को राम के विजय के समाचार दिए। और उन्हें ले आए।
लंका का राज्य विभीषण को दिया। प्रभु ने स्वयं कुछ नहीं लिया।
विभीषण ने वानरों का सन्मान किया। पुष्पक हवाई जहाज (प्लेन) में राम-सीता ने प्रयाण किया है।
रास्ते में प्रभु ने सीताजी को रामेश्वर की स्थापना की थी वह बताई है।

पुष्पक प्लान प्रयागराज के पास आया है। आज उनकी चौदह  साल की अवधि का अंतिम दिन है।
हनुमानजी को आगे बढ़ने की आज्ञा दी। हनुमानजी भरत के पास आये। भरत रामपादुका की पूजा करते हुए सीताराम का जप कर रहे थे। हनुमानजी ने कहा -भरतजी,राम-लक्ष्मण-जानकी पधार रहे है।

भरतजी पुष्पक को देखते आनंदित  हुए है। रामजी ने भारत को बाँहो में भर लिया।
दोनों का मिलन हुआ तो लोग समझ भी नहीं पा रहे थे कि इनमे से राम  कौन है? और भरत कौन है?
दोनों का वर्ण श्याम है,वल्कल समान है और शरीर कृष है।

अयोध्या आकर राम सबसे पहले कैकेयी को प्रणाम करने गए।
कैकेयी ने उनका कनकभवन-राजमहल रामजी को रहने को दिया है।

वशिष्ठ ऋषि ने राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी।
राज्याभिषेक की विधि संपन्न हुई। भगवान रामचन्द्रजी और सीताजी कनक सिंहासन पर विराजे है।

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