उनके राज्य में वकील-वैध का कोई काम नहीं था। सारी प्रजा एकादशी का व्रत करती थी।
एकादशी के दिन अन्न नहीं लेना चाहिए। कथा सुनकर कुछ नियम लेने चाहिए।
जप करूँगा,प्रभु सेवा पहले करूँगा। ऐसा कोई नियम अपनाओगे तो कथा श्रवण का फल मिलेगा।
हनुमानजी रामजी की सेवा कर रहे थे। वे इस प्रकार सेवा करते थे कि अन्य किसीके लिए सेवा करने का अवकाश ही नहीं रहता था। सीताजी सोचने लगी कि इस हनुमान के कारण-मै तो अपने पति की सेवा कर नहीं पाती। जब सेव्य एक है और सेवक अनेक तो ऐसी विषमता हो ही जाती है।
दासोहम के बाद सोहम हो सकता है।
ज्ञानी लोग भी पहले दास्यभाव रखते है और बाद में सोहम की भावना करते है।
सीताजी ने अपने पतिदेव से कहा- मै सेवा करुँगी । हनुमानजी को मना करो।
रामजी -हनुमानजी को भी सेवा का अवसर देना ही पड़ेगा। उसने आज तक मेरी बड़ी सेवा की है। मै उसका ऋणी हूँ। प्रभु को दुःख हुआ कि लोग हनुमानजी को पहचानते और समझते नहीं है।
सीता,भरत और शत्रघ्न हनुमानजी को सेवा नहीं करने देते है। राम-सेवा ही हनुमानजी का जीवन था।
सेवा और स्मरण के हेतु से जो जीता है वही सच्चा वैष्णव है।
हनुमानजीने सीताजी से पूछा -माताजी,आप मुझसे नाराज़ हो? आप मुझे रामजी की सेवा क्यों नहीं करने देती?
सीताजी बोली- कल सेवा का सारा काम बाँट दिया गया है। तुम्हारे लिए कुछ बाकी नहीं रहा है।
हनुमानजी - एक सेवा बाकी है। राम जंभाई लेंगे तो चुटीकी कौन बजायेगा?
जंभाई आने पर चुटकी बजनी चाहिए अन्यथा आयुष्य कम होती है।
सीताजी-अच्छा,तो तू यह सेवा करना।
हनुमानजी दास्यभाव से रामजी के चरण ही निहारते थे।
अब माताजी के आज्ञा के कारण मुखारविंद के दर्शन करने लगे है।
पूरा दिन और रात को हनुमानजी रामजी के साथ है। सीताजी और रामजी यदि बातचीत करना चाहे तो भी बीच में हनुमानजी उपस्थित है। रात को सीताजी ने कहा -अब आप यहाँ से जाओ।
हनुमानजी -माताजी,आप ही ने तो मुझे यह सेवा दी है। प्रभु कब जंभाई ले,यह कौन जान सकता है।
सो मुझे तो यहाँ ही रहना पड़ेगा।
सीताजी ने रामजी से कहा -नाथ,अपने इस सेवक को अब बाहर जाने की आज्ञा दीजिये।
रामजी- मै हनुमान को तो कैसे कहू?मै उसका ऋणी हूँ। उसके एक-एक उपकार के बदले में,
मै अपने प्राण दू तो भी कम है।
प्रभु की ऐसी बात सुनकर सीताजी ने हनुमानजी को बहार जाने की आज्ञा दी।
वे बाहर आकर सोचने लगे,एक सेवा मिली थी वह भी छीन ली गई।
अब सारी रात चुटकी बजाता रहूँगा जिससे राम की सेवा हर समय अपने आप ही होती रहे।
इधर रामजी सोच रहे है कि मेरे कारण हनुमानजी जग रहे है। वह जागे और मै सोता रहू,यह ठीक नहीं है।
उन्होंने मज़ाक किया है। हनुमानजी जब तक चुटकी बजायेंगे तब तक मै जंभाई लूँगा।
मे भी उसकी तरह पूरी रात जागूँगा।
रामजी जंभाई पर जंभाई खा रहे है। सीताजी को चिन्ता हुई। "ये कुछ बोलते नहीं है,इन्हे क्या हो गया है?