शुकदेवजी को समाधिमें जो आनंद मिलता था वह आनंद कृष्णकथा में मिला है-
इसलिए उन्होंने समाधि छोड़ दी है।
इस कृष्णकथा में सभी को आनन्द मिलता है क्योंकि इसमें सभी रसोंका समन्वय हुआ है।
यह कथा बालक को भी आनन्द देती है और सन्यासी को भी।
श्रीकृष्ण बालक के साथ बालक है और युवा के साथ युवा। वे ज्ञानी के लिए ज्ञानी है,और योगी के लिए योगी।
श्रीकृष्ण भोगी है फिर भी रोगी नहीं है,वह तो योगी ही है। सामान्यतः जो भोगी है वह रोगी बनता है।
एकादश स्कंध के अनुसार,श्रीकृष्ण जब एक सो पच्चीस वर्ष की आयु पूर्ण करके स्व-धाम पधारे,
तब उनका एक भी बाल श्वेत नहीं हुआ था।
श्रीकृष्ण कथा में हास्यरस,वीररस,श्रृंगाररस,आदि सभी रस भरे हुए है क्योकि श्रीकृष्ण स्वयं ही रसरूप है।
श्रीकृष्ण की बाललीलाये ऐसी है कि शुकदेवजी को भी हसाती है। बाललीला में हास्यरस है।
रासलीला में करुणरस और श्रृंगाररस है। चाणूर,मुष्टिक,कंस आदि की हत्या में वीररस है।
चाहे जिस रस में रूचि हो,कृष्णकथा सभी को अच्छी लगती है।
साहित्य शास्त्र में नौ रस बताये है- हास्य,वीर,करुणा,बीभत्स,अध्भुत,रौद्र,भयानक,श्रृंगार और शांत।
पर भागवत में दसवाँ रस बताया है - और वह है,प्रेमरस।
यह सबसे श्रेष्ठ प्रेमरस-कृष्णकथा में पूरा भरा है। कृष्ण कथा प्रेम रसलीला है।
जिसने प्रेमरस का आस्वाद किया है,उसके लिए अन्य सभी रस नीरस है।
मीराबाई के शब्दों में कहे तो अन्य सभी रस कड़वे है। मीराबाई ने एक भजन में कहा है -
कृष्णप्रेम शक्कर और गन्ने का मीठा रस है। उसे छोड़कर नीम का(सांसारिक)रस क्यों पिया जाए?
राधाकृष्ण के बिना और क्या और क्यों बोला जाए?
हाँ,इस कृष्ण-रस का आस्वाद कर पाना सरल नहीं है। इस-पर,नरसिंह महेता कहते है -
इस रस का आस्वादन शंकर,शुकदेव,योगी और व्रज की गोपी जैसे ही कर पाते है।
जगत के सभी रस कटुता से भरे हुए है। श्रृंगाररस आरम्भ में मीठा लगता है किन्तु अंत में कड़वा ही लगेगा।
अन्य किसी भी रस में मिठास नहीं है। मात्र प्रेमरस ही मधुर है। प्रेम के बिना प्रभु का साक्षात्कार नहीं हो पाता। श्रीकृष्ण प्रेमरूप है। वे अलौकिक प्रेमरस का दान करते है।
प्रेमरस में न तो वासना है,न तो विषमता है,न स्वार्थ है और न मै और न तू है।
गोपी कहती है -
लाली मेरे लालकी,जीत देखू तित लाल।
लाली देखें मै गयी,मै भी हो गयी लाल।
गोपियों की तरह मानवजीवन की भी यही विशेषता होनी चाहिए कि कृष्ण प्रेम में पागल बनो।
प्रति-दिन ठाकुरजी को प्रार्थना करो कि-आप मेरे मन को अपनी ओर खींच लीजिये।
मेरे में ऐसी शक्ति नहीं है कि मै आपको खींच सकू।
भगवान जिसके मन को खींच ले उसका मन फिर संसार में नहीं जाता।