Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-302



श्रीकृष्ण भी महागृहस्थ है और महासन्यासी भी।
घर में रहते हुए भी सन्यासी जीवन कैसे जिया जा सकता है,यह श्रीकृष्ण ने बताया है।
शुकदेवजी महायोगी है,महान ज्ञानी है,महान वैरागी है पर उन्होए कृष्ण कथा छोड़ी नहीं है।
कथा मनुष्यकी मनकी थकान दूर करती है। कथा सुनते भगवान को मिलने की आतुरता बढ़ती है।

परीक्षित राजा शुकदेवजी से कहते है -महाराज,कृष्ण कथा सुनने की मेरी इच्छा है,
आप उसे विस्तारपूर्वक मुझे सुनाओ। भगवान की बाललीला और दूसरी सभी लीलाएँ मुझे सुनाओ।
आपके चरणोंमें,बार-बार प्रणाम करके मै प्रार्थना करता हूँ।

शुकदेवजी कहते है-कि--कृष्णकथा के लिए तेरा प्रेम देखकर मुझे बहुत आनन्द हुआ।
राजन,तेरे ही कारण मुझे भी कृष्णकथा का अमृतपान करने का लाभ मिला।
जब से कृष्णकथारूपी गंगा का प्राकट्य हुआ है तब से भागीरथी गंगा का महत्व कम हुआ है।
यह कृष्णकथा-गंगा अनेकोंको पावन करती है।

भागीरथी गंगामें स्नान करनेसे मन की मलीनता दूर नहीं होती किन्तु शरीर शुद्ध होता है।
जबकि कृष्णकथासे मन का मैल दूर होता है और मन शुद्ध होता है। इसलिए कृष्णकथा श्रेष्ठ है।
कृष्णकथा तो जहॉ चाहो वहाँ प्रगट हो सकती है किन्तु भागीरथी गंगा अन्य किसी स्थान पर प्रगट नहीं होती।

शुकदेवजी राजा का आभार मानते है कि उनके कारण कृष्ण-स्मरण और दर्शन  का लाभ मिला।
उन्होंने श्रीकृष्ण का स्मरण किया।  श्रीकृष्ण को ह्रदय में विराजमान कर शुकदेवजी कथा करते है।

वक्ताको- जब तक याद रहे कि मै पंडित हूँ,विद्वान हूँ ,मै कथा कर रहा हूँ-तब तक परमात्मा पधारते नहीं है।
“मै कथा कर रहा हूँ” ऐसा जो माने वह वक्ता ,वक्ता नहीं है।
शुकदेवजी शरीर का भान भूले है। शुकदेवजी भूल गए है कि वे व्यासजी के पुत्र है और कथा कर रहे है।
वक्ता भी श्रीकृष्ण,और श्रोता भी श्रीकृष्ण। शुकदेवजी कहते है कि मै वक्ता नहीं श्रोता हूँ।

महात्मा तो कहते है कि -नवम स्कंध तककी कथा ही,शुकदेवजी ने की है,
और फिर दशम स्कंध की कथा तो स्वयं श्रीकृष्णने शुकदेवजी के मुखसे सुनायी है।
शुकदेवजी ने राधा-कृष्ण से प्रार्थना की-है-कि- आप हृदय में विराजमान होकर आप ही  कथा करे।
ऐसे,ही,जब,वक्ता-“मै कथा कर रहा हूँ”-वह भूल जाए -तब भगवान ही  वक्ताके मुख से कथा करते है।

जब,धरती पर दैत्यों का उपद्रव बढ़ गया था,लोग दुःखी हो गए थे,पाप बढ़ गया था।
उस समय,कंस ऐसा दुष्ट था कि अपने पिता को मारता था और उन्हें जबरदस्ती कैद कर खुद राजा बन गया।
धरती  से यह सब सहा न गया तो उसने ब्रह्माजी की शरण ली।
ब्रह्मादि देव ब्रह्मलोक में नारायण के पास आये और पुरुषसूक्त से प्रार्थना करने लगे-
नाथ,अब तो कृपा कीजिये। आप अवतार लीजिए।
भगवान ने ब्रह्माजी से कहा -कुछ ही समय में मै वसुदेव -देवकी के घर प्रकट होऊँगा।
ब्रह्माजी ने नारायणकी बात सुनी और सभी देवोंको और धरती को आश्वासन दिया है।

इधर वसुदेव मथुरा में विवाह करने के लिए आये है। वसुदेव और देवकी का विवाह हुआ।
उस समय -स्वयं कंसने ही वर-वधू (बहन-बहनोई)का रथ चलाया है।

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