Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-317



१- सत्व,रजस और तमस यह तीन गुणों वाली (प्रकृति) माया में जो फँसा है उसे पूतना मारती है।
जो संसार सुख में फँसे है वह सभी बालक है (बालक में बुध्धि नहीं होती),उसे (अज्ञान) पूतना मारती है।
पर जो संसार का मोह छोड़कर ईश्वर में लीन है उसे अज्ञान (पूतना )नहीं मार सकती।

२- जीवन की चार अवस्थाएं है - (१) जाग्रति (२) स्वप्न (३) सुषुप्ति (४) तुर्यगा।
जैसे,जागृत अवस्था में पूतना आँखों पर सवार हो जाती है। और आँखों की चंचलता मन को चंचल करती है।
इस प्रकार जाग्रति,स्वप्न और सुष्प्ति इन तीनो अवस्था में अज्ञान सताता है
अर्थात पूतना (अज्ञान) तीन वर्ष तक (तीन अवस्थाए वालेको)के शिशु को मारती है।
इन तीन अवस्थाओं को छोड़ कर-जब, तुर्यगा अवस्थामें  जीवका सम्बन्ध ब्रह्म से होता है,
तब पूतना (अज्ञान-या-वासना) उसे सत्ता नहीं सकती।

जब पूतना आई,उस समय गोकुल की गाये वन में चरने गई थी और नंदजी मथुरा गए थे।
इस घटना का सूचितार्थ क्या है?
गायो का वनगमन अर्थात इन्द्रियों का विषयका-वन में गमन।
इन्द्रियाँ इस विषय-वन में घूम रही होगी तो पूतना-वासना मन में आ धमकेगी,अज्ञान,मन पर सवार हो जायेगा। जब इन्द्रियाँ विषयो में खो जाती है,बहिर्मुख होती है तब वासना आ जाती है।
इन्द्रियों को प्रभु-सेवा की ओर मोड़ कर निरुध्ध करोगे तो पूतना वासना सता नहीं पाएगी।

नन्द अर्थात जीव। जीव जब हृदय गोकुल को छोड़कर मथुरा अर्थात देहसुख,देह-दृष्टि में खो जाए,तब ह्रदय में पूतना-अज्ञान बस जाते है।

पूतना श्रृंगार करके आई है। वह अपने पर विष लगाकर आई थी।
इसी तरह जीव का स्वभाव है - जीव आत्मा के स्वरुप (ज्ञान)पर विष (अज्ञान )का आवरण लगाकर विषयानन्द भुगतता है। वासना (अज्ञान )के विनाश होने पर ही कृष्ण-मिलन होता है।

पूतना को देखते ही कन्हैया ने आँखे मूंद ली है। ज्यादातर पूतना (वासना) आँख से अंदर आती है।
जब आँख बिगड़ती है -तो उससे मन बिगड़ता है।
पूतना जैसा मैला मन प्रभु के दर्शन करने जाये तो प्रभु कहते है -मै तुम्हे आँख नहीं देता। मै आँख बंद करता हूँ। जिसका मन मैला है उसके सामने ईश्वर नहीं देखते। प्रभु बाहर (स्थूल शरीर) के श्रृंगारको नहीं देखते।
वे तो अंदर के सूक्ष्म शरीर और मन का श्रृंगार देखते है।

शास्त्र में तीन प्रकार के शरीर बताये है। और इन तीनों शरीर से पर (अलग) आत्मा है।
(१) स्थूल शरीर-जो आँख से दिखे।
(२) सूक्ष्म शरीर-१७ तत्व से बना है। ५-कर्मेन्द्रिय,५-प्राण,५-ज्ञानेन्द्रिय,मन और बुध्धि। (मन) मुख्य है।
(३) कारण शरीर -मन में जो वासना का समुदाय है  वह।
पूतना तन का श्रृंगार करके आई है,मन का नहीं। इसलिए प्रभु ने उसके सामने देखा नहीं है।
सुदामा फटे हुए कपडे पहनकर कृष्ण के पास गये थे
पर प्रभु ने उसके कपड़े को नहीं देखा था और खड़े होकर आलिंगन दिया था।

कई लोग मंदिर में दर्शन करने कपडे बदलकर जाते है,पर मन को बदलकर नहीं जाते -
तो प्रभु उनके सामने नहीं देखते। प्रभु के पास लायक होकर जाओ।

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