Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-319



इस तरह दशम स्कंध में गोस्वामी,सनातन गोस्वामी,महाप्रभुजी,श्रीधर स्वामी जैसे महापुरुष  
भगवान की लीला में  पागल बने है।
सनातन गोस्वामी,जो कभी किसी राजा के दीवान थे,कृष्ण-प्रेम में पागल होकर लंगोटी पहनकर घूमने लगे थे।
वे  बंगाल के जमीनदार थे।घर में खूब संपत्ति थी। एक दिन किसी पवित्री ब्राह्मण के मुख से  दशम स्कंध की कथा सुनी और वे  कृष्ण-प्रेम में पागल हो गए। सर्व संपत्ति का दान किया  और ताड़पत्र की लंगोटी पहन कर लीला-निकुंज में राधेकृष्ण-राधेकृष्ण करते हुए घूमने लगे।

पूतना वासना है और वासना आँख से अंदर आती है।आँख संसार के सुन्दर विषयों को, देख उसके पीछे दौड़ती है। उसे पता है कि यह मेरा नहीं है,मुझे नहीं मिलने वाला फिर भी पाप करती है।
वासना अंदर-ना आए ऐसी इच्छा हो तो आँख बंद कर उपासना करो। वासनाका नाश उपासना से होता है।
जगत को बोध देने कन्हैया ने आँखे बंद की है। प्रभु हमे बोध देते है कि आँखे बंद कर उसे संभालो।
आँखों को सँभालने से मन पवित्र बनेगा।

पूतनाका स्तनपान करते करते कन्हैया उसके प्राण चूसने लगा। पूतना अति व्याकुल हुई।
उसने राक्षसी का रूप धारण किया और आकाश मार्गसे कन्हैया को ले जाने लगी। व्रजवासी उसके पीछे दौड़ते है। पर थोड़ी ही देर में कनैयाने उसे जमीं पर गिराया और बड़ा धमाका हुआ। पूतनाका उद्धार हुआ है.
और पूतना राक्षसी के वक्षःस्थल पर कन्हैया विराजमान था।
धमाका सुनकर गोपियाँ दौड़ती हुई आई और यशोदा को कोसने लगी। कनैया पूतनाको क्यों दिया?
हमने  कितनी मन्नतें मानी थी,तब कहीं तुम्हे पुत्र हुआ और तुम्हे इसकी कोई कीमत नहीं है।

यशोदा ने गोपियों का उलाहना सुनकर आँखे नीची कर ली। उन्होंने कहा -यह मेरा पहला बालक है।
मुझे बालक के लालन-पालन का अनुभव नहीं है। अब तुम जो बताओगे वह करुँगी।

गोपियों ने कहा -छोटा सा कन्हैया राक्षसी को क्या मार सकता है? राक्षसी तो अपने पाप से मरी है।
हमारा कन्हैया तो नारायण की कृपा से बच गया। माँ,लाला को राक्षसी ने स्पर्श किया है,इसलिए उसकी नज़र उतारनी चाहिए। यशोदाजी कहती है -मुझे नज़र उतारना नहीं आता। एक गोपी बोली-मै लालाकी नज़र उतारूंगी। और गोपियाँ लाला की नज़र उतारने गौशाला में ले गई।

लाला को गाये बहुत प्यारी है। एक गंगी नाम की गाय तो लाला की झाँकी पाए बिना कभी पानी तक नहीं पीती थी। जब गोपाल उसे मनाते हुए थक जाते तो यशोदा के पास जाते और कहते थे,माँ गौशाला में लाला को ले चलो। लाला के दर्शन होते ही गंगी घास खाती थी।

मनुष्य को भी कोई नियम रखना चाहिए। शास्त्र में ऐसा वर्णन है कि जिसके जीवन में कोई नियम नहीं है,वे पशु समान है। प्रभु भजन बिना भोजन भी पाप है। पेट से पहले प्रभु पूजा करो। पेट में कुछ ने होने से सात्विक भाव जागते है। अनशन करने से शरीर हल्का होता है और पाप जलते है।

बड़े-बड़े ऋषि-मुनि जब हजारों वर्ष तपश्चर्या करने के बाद भी प्रभु के दर्शन पा नहीं सके तो गायों का जन्म लेकर गोकुल में आये। उनकी हजारो वर्ष के तपश्चर्या भी उनका अभिमान और वासना जला नहीं पाई थी।
सो उन्होंने सोचा कि गोकुल में गायों का अवतार लेकर,अपना काम,
निष्काम कृष्ण को अर्पित कर देंगे और हम निष्काम हो जायेंगे।

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