Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-322



कन्हैया के प्राकट्य के दिन यशोदाजी गोपियों को उपहार देने लगी थी।
पर उस दिन गोपियों ने कहा था,आज तो हमे कुछ नहीं लेना,आज तो कन्हैया को हमे देना है।
उन्होंने उस दिन कुछ भी नहीं लिया था।
जहाँ  लेने की इच्छा होती है,वहाँ मोह होता है  और जहाँ देने की इच्छा होती है वहाँ प्रेम।

यशोदाजी कहती है आज मुझे सभी व्रजवासियों की पूजा करनी है। उन्होंने सारे गॉंवको आमंत्रण दिया।
नंदबाबा ने भी कहा कि बिना संकोच सबकुछ दे दो।
जब से कन्हैया घर में आया है,तब से पता भी नह चलता कि घर में कौन लक्ष्मी रख जाता है।

लक्ष्मीजी तब चली जाती है,जब मनुष्य उसका दुरूपयोग करने लगता है।
जीवन में एक अवसर ऐसा भी आता है जब भाग्य अनुकूल होता है,भाग्योदय होता है।
ऐसा समय प्रेम और बिना संकोच से दान करो। जो भी दोगे वह दुगना होकर वापस आएगा.

और जब भाग्य प्रतिकूल होगा,तब संपत्तिको संजोये रखनेका लाख प्रयत्न करोगे तो भी सब कुछ चला जायेगा।
भाग्य प्रतिकूल हो जाने पर धर्मराज युधिष्ठिर भी दरिद्र हो गए थे और उन्हें वन में भटकना पड़ा था।
तो साधारण मनुष्य की तो चर्चा कैसे करे?
जो भी मिले सत्कर्मो में खर्च करते रहो। सुपात्र को दान देते रहो।

आज भाग्य अनुकूल था सो यशोदाजी दिल लगाकर दान करती है।
यशोदाजी ने सोचा कि कन्हैया के सो जाने पर मै अच्छी तरह दान दे सकूँगी।
लाला ने सोचा कि माँ की इच्छा है तो मै सो जाता  हूँ।
यशोदाजी सोचती है -मेरा लाला कितना सयाना है -मै जब सोने का कहती हूँ वह सो जाता है।
और जब जागने का कहु तो जाग जाता है।

कन्हैया आनंदस्वरूप है। माँ को  सताता नहीं है। लाला ने आँखे बंद की है। अंदर से जाग रहा है।
लालाजी  को नाटक करना बहुत अच्छा आता है इसलिए उसका नाम “नटवर” पड़ा है.
वह माँ को खाली खाली आँखे बंध कर के -उसे बताता है कि वह सो गया है।

कृष्ण के जागने और सोने के विषय में शांकरभाष्य में कहा -
ईश्वर निष्क्रिय है किन्तु माया के कारण क्रिया का आरोप करता है।
ईश्वर क्रिया करता तो नहीं है किन्तु माया के कारण क्रिया का आरोप किया जाता है।

उदहारण से देखे - गाड़ी जब बम्बई स्टेशन पर आती है तो लोग कहते है -बम्बई आया।
पर सोचने से पता चलता है कि बम्बई आया नहीं है  और न तो गया है।
इसी प्रकार ईश्वर कोई क्रिया स्वयं नहीं करते। वे तो  लीला ही करते है।
और यह लीला निःस्वार्थ होने के कारण आनंदस्वरूप होती है।

क्रिया और लीला में अंतर है। जिसके साथ कर्तत्व का अभिमान और सुखी होने की इच्छा है,वह क्रिया है
और जिसके साथ कर्तत्व का अभिमान नहीं है तथा अन्य को सुखी करने की इच्छा है वह लीला।
जीव जो कुछ करता है,वह क्रिया है औए ईश्वर जो कुछ करता है वह लीला है।

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