Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-324



महात्मा कहते है -गृहस्थाश्रम भी एक गाड़ी है और पति-पत्नी पहिये।
इस गाडी पर श्रीकृष्ण को पधराओ।
इस जीवन रथ के सारथी है श्रीकृष्ण। इस जीवन-रथ के अश्व है हमारी इन्द्रियाँ।
प्रभु से प्रार्थना करो-
हे नाथ-मै आपकी शरण में आया हूँ। जिस प्रकार आपने अर्जुन के रथ का संचालन किया था,
उसी प्रकार आप मेरे जीवन रथ के सारथि बने और सन्मार्ग पर ले जाए।

जिसके शरीररथ का संचालन प्रभु के हाथों में नहीं है,उसका संचालन मन करता है
और मन एक ऐसा सारथि है जो जीवनरथ को पतन के गर्त्त में गिरा देता है।
यदि तुम्हारी गाड़ी परमात्माके हाथ में नहीं है,तो इन्द्रियारूपी अश्व उसे पतन के गढ्ढेमें गिरा देंगे।

जिसके जीवन में भक्ति मुख्य है उसके जीवन में भोग गौण हो जाते है।
और जो भक्ति को गौण समझता है उसके जीवन में भोग मुख्य हो जाते है।

अपने धर्म में चार पुरुषार्थ  माने है-धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष। पहला धर्म और अंतिम मोक्ष है।
इन दो के बीच में अर्थ और काम है।
इसलिए अर्थ(पैसा) और काम दोनों को धर्म और मोक्ष की मर्यादा में रहकर प्राप्त करना चाहिए।
मानव जीवन में अर्थ और काम गौण है। धर्म और मोक्ष मुख्य है।
और अगर जो ये  मुख्य बने तो गाडी खड्डे में जाती है।

शकटासुर -काम,क्रोध,लोभ है।
और अगर यह शकटासुर छाती पर सवार हुआ तो उसका उपाय एक संत ने बताया है -
जब,भगवानने शक्टा -सुर-लीला की तब-वे- १०८ दिन के थे। माला के १०८ मोती है।
माला को हाथ में लेकर १०८ बार ईश्वर का नाम का जप करने  से शकटासुर छाती पर नहीं चढ़ेगा।
माला के साथ मैत्री करो तो शक्टा-सुर शांत होगा। अगर मैत्री नहीं करोगे तो वह सिर पर चढ़ बैठेगा। काम,क्रोध,लोभ आदि का सामना करना है तो परमात्मा का आश्रय लेना होगा।

यह शकटासुर का नाम “उत्कच”था। वह हिरण्याक्ष का पुत्र था।
उसने ऋषि का अपमान किया इसलिए ऋषि ने उसे शाप दिया-”तू सूक्ष्मरूप हो जा”
उत्कच ने माफ़ी मांगी इसलिए ऋषि ने कहा कि -जब तुझे श्रीकृष्ण का स्पर्श होगा तब तेरा उध्धार होगा।
उत्कच(शकटासुर) सूक्ष्मरूप से गाड़ी में आया था और श्रीकृष्ण के स्पर्श से उसका उध्धार हुआ।

एक दिन यशोदाजी लाला को गोद में बिठाकर खिला रही थी।
उस समय तृणावर्त को मारने के लिए भगवान ने अपना वजन बढ़ा दिया।
यशोदाजी भर को न सह सकी तो कन्हैया को जमीं पर बिठा दिया और घर के काम में जुट गई।

उस समय तृणावर्त बवंडर (पवन का तूफान) का रूप लेकर आया
और श्रीकृष्ण का हरण करके आकाश में उड़ गया।
उस समय भगवान ने अपना वजन और भी बढ़ा दिया और उन्होंने तृणावर्त को पकड़ा।
तब,वही ही तृणावर्त के प्राण-पखेरू उड़ गए।

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