Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-325


कन्हैया धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। घुटनों के बल चलता हुआ गौशाला में भी पहुँच जाता था।
सभी गायें  भी उसे पहचानती थी। कई महान ऋषि भी गायों का अवतार लेकर गोकुल में बसे थे।
एक छोटा सा बछड़ा था। वह भी छोटा था और कन्हैया भी छोटा था। कृष्ण उसे अपना दोस्त मानते थे।
वह बछड़ा “हम्मा हम्मा करता था तो लाला बोलता मैया--लाला,मैया और  बछड़े से अलग नहीं होता था।
गाय भी आनन्दवेशमें बछड़े को भूलकर कन्हैया को चाटने लगती थी।

यशोदाजी को विश्वास होने लगा कि गायों की सेवा की,जिसके फलस्वरूप उनके आशीष से हमे पुत्र मिला है,
जो गायों की सेवा करेगा। कन्हैया तो गायों और बछड़ों के साथ ही खेलता रहता था।
वह गायों की पूंछ पकड़कर खड़ा होने की कोशिश करने लगा।

यशोदाजी कहती -अरे कान्हा,तू बड़ा शरारती है। ये गाये तो तुझे मारेगी।
और कन्हैया का एक और नाम हो गया -”वत्सपुच्छावलम्बन”.

एक बार यशोदाजी लाला को स्तनपान करा रही थी और उसका सुन्दर मुख निहार रही थी।
माता का प्रेम देखकर कन्हैया जोरों से दूध पीने लगा।
माँ को कई बार चिंता होने लगती कि कहीं वह बीमार न हो जाए।
कन्हैया माँ को कहता है कि- -माँ,तेरा दूध मै अकेला नहीं पी रहा।
मेरे मुखमें समाया हुआ  सारा विश्व,तेरे दूध का पान कर रहा है।

कन्हैया ने जंभाई लेने के लिए मुँह  खोला और यशोदाजी को समग्र ब्रह्माण्ड का दर्शन कराया।
कन्हैया माँ को कहता है-तू अकेला मुझे नहीं,परन्तु अनन्त जीवों को दूध पिला रही है।

जब -भगवान् ने सुदामा को अपार संपत्ति दी तो यमराज को चिंता हुई।
उन्होंने भगवान् से कहा-सुदामा के भाग्य में दारिदय का योग है। उसके भाग्य में संपत्ति का क्षय लिखा हुआ है। आपने इतना सारा ऐश्वर्य उसे देकर ठीक नहीं किया है। इससे कर्म मर्यादा भंग होगी।
कर्मानुसार ही सुख-दुःख दिए जाते है।

प्रभु ने यमराज से कहा-मै वेदोक्त कर्म मर्यादा तोडना नहीं चाहता।
जो मुझे भोजन कराता है,वह समस्त ब्रह्माण्ड को भोजन कराता है।
मुझे एक मुठ्ठी भर तन्दुल खिलाकर सुदामा ने  सारे विश्व का भोजन कराया है। उसका यह पुण्य-फल है.
जो श्रीकृष्ण को भोजन कराता है,वह सारे विश्व को अन्नदान करता है और उसके नाम पुण्य जमा होता है।
भगवान मर्यादा को कभी भांग नहीं करते है।

लाला के जन्म के एक साल होने आया पर अब तक उनका नामकरण नहीं किया गया है।
गर्गाचार्य यादवों के कुल पुरोहित है। वसुदेवजी ने गर्गाचार्य को बुलाया और नंदजी के घर जाकर लाला का नाम रखने के लिए कहा। उनके कहने से गर्गाचार्य नंदजी के घर आये है।
नंदबाबा ने उनका स्वागत किया और कहा बुढ़ापे में बेटा हुआ है। उसे लाला कहकर बुलाते है इसलिए अब तक उसका नामकरण नहीं किया है। आप ज्योतिषशास्त्र में कुशल हो तो क्या नाम रखा जाए वह बताओ।

नामकरण धार्मिक संस्कार है। शास्त्र में सोलह संस्कार बताए गए है।
आजकल तो सब भुलाए गए है और मात्र एक विवाह-संस्कार बाकी रहा है।

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