Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-326



बालक का जन्म होने पर जातकर्म संस्कार किया जाता है।
किन्तु अब तो बालक का जन्म प्रसूतिगृह में होता है सो जातकर्म विधि तो कैसे हो पायेगी।
डाक्टर न जाने क्या पिलाते होंगे। इसी कारण से संस्कारोंका लोप हो रहा है,फलतः देश दुःखी हो रहा है।

अन्नप्राशन,नामकरण,यज्ञोपवीत आदि सोलह संस्कार बताए गए है। जीव की शुध्दि के लिए संस्कार आवश्यक है। आजकल सभी धार्मिक विधियोंको गौण माना गया है। केवल लौकिक आचारोको ही महत्त्व दिया जाने लगा है।

गर्गाचार्य ने कहा-यदि नामकरण संस्कार ठीक करना है तो आधा दिन लग जायेगा। बाबा,तुम सारे गाँव को बुलाओगे तो वे लोग आकर मुझे जल्दी करने को कहेंगे। तो विधि ठीक ढंग से नहीं हो पायेगी।
नंदबाबा कहते है-  धार्मिक विधि तो ठीक से होनी चाहिए। यदि आप चाहे तो मै किसी को भी नहीं बुलाऊँगा।

लाला का जन्म -रोहिणी नक्षत्र है। रोहिणी नक्षत्र की स्थापना की गई है।
गर्गाचार्य ने कहा - नंदजी,तुम्हारा लाला तो हमेशा रंग (वर्ण) बदलता आया है।  
सतयुग में शुक्ल वर्ण (सफ़ेद रंग) धारण किया,त्रेता युग में रक्तवर्ण (लाल रंग),
द्वापर युग में उसने श्याम वर्ण धारण किया है।
लाला के नाम अनन्त,गुण अनन्त और लीला भी अनन्त है।
वह सभीके मन को आकर्षित करेगा और सभी को आनंद देगा।  इसलिए उसका नाम कृष्ण रखा जाए।
यह बालक महाज्ञानी होगा। इसके जन्माक्षर बहुत अच्छा है। इसके पाँच ग्रह उच्च क्षेत्र में है।
आठ ग्रह अच्छे है,मात्र एक राहु ही बुरे स्थान में है।

नंदबाबा घबरा गए। "राहु बुरे स्थान में है तो मेरे लाला का क्या होगा?
महाराज-आप आज्ञा करो तो  मै ब्राह्मणों को राहु के जप करने बैठा दू।"
गर्गाचार्य कहते है-उसमे कोई डरने जैसी बात नहीं है।
जिसके सप्प्तम स्थान में,नीच क्षेत्र में राहु हो,वह पुरुष कई स्त्रियों का पति होता है।
नंदबाबा बोले- आपकी बात सच है। लाला को एक ब्राह्मण ने आशीर्वाद दिए थे कि
वह सोलह हज़ार रानियों का पति होगा।
गर्गाचार्य बोले-बाबा,और तो मै क्या कहू? यह कन्हैया,नारायण जैसा ही है। नारायण मेरे इष्टदेव है।

सनातन गोस्वामी कहते है कि नारायण के समान श्रीकृष्ण है। ऐसा कहने से नारायण श्रेष्ठ माने जायेंगे।
सो ऐसा कहना चाहिए कि नारायण के समान श्रीकृष्ण नहीं,श्रीकृष्ण के समान नारायण है।
वृंदावन के साधु कहते है कि- नारायण के समान कृष्ण  नहीं किन्तु नारायण श्रीकृष्ण जैसे है।

प्रेम के कारण पक्षपात हो जाने का डर रहता है। प्रेम में पक्षपात वह दोष नहीं पर गुण है।
यह मेरा कन्हैया है,ये मेरा लाला है,यह मेरा कन्हैया है… यह अति प्रेम है।
और अति प्रेम में लालाजी से कोई श्रेष्ठ हो ऐसा भक्तजन नहीं मानते।

एक समय चार व्यक्ति भोजन कर रहे थे। किसी ने पूछा कि इनमे से दामाद कौन सा होगा। एक ने कहा,जो शर्मीला होगा वही दामाद हो सकता है। दूसरे ने कहा वह जो अक्कडकर बैठा है वह होगा,तीसरे ने कहा,जब सासजी परोसने आये तब मालुम हो जायेगा। सासजी जब घी परोसने आई तो उन चारों में से एक को ज्यादा घी परोसा। वही  दामाद था। अति प्रेम में पक्षपात होता ही है।

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