Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-327



नारायण के समान श्रीकृष्ण है. इसका अर्थ होगा नारायण वरिष्ठ है,
श्रीकृष्ण के समान नारायण ऐ,ऐसा कहने से नारायण नहीं,श्रीकृष्ण वरिष्ठ हो जायेंगे।
वैसे तो नारायण और श्रीकृष्ण में कोई अंतर नहीं है।
नारायण के साठ और मुरली-मनोहर श्रीकृष्ण के चौसठ गुण बताये गए है।
अर्थात नारायण की अपेक्षा श्रीकृष्ण  गुण अधिक है। वे गुण इस प्रकार है। -(१) रूपमाधुरी (२) लीलामाधुरी
(३) वेणुमाधुरी (४) प्रिया माधुरी। श्रीकृष्ण के ये चार गुण नारायण में नहीं है।

नारायण के चार हाथ होने के कारण वे कुछ कुरूप से लगते है,अतः दो हाथों  वाले श्रीकृष्ण श्रेष्ठ है।
वैकुंठवासी नारायण राजा की भांति अक्कड़ कर खड़े रहते है सो वे कुछ अभिमानी से लगते है।
वे हमारे साथ बोलते भी नहीं है। कन्हैया में कोई अक्कड़ नहीं है। वह सब के साथ बोलता,खेलता,घूमता है।
अतः हमारा कन्हैया ही श्रेष्ठ है।

अतिशय आतुरता होने पर परमात्मा दौड़ते हुए आते है। लाला की माधुरी कैसी है? उसका वर्णन कुछ ऐसा है - गोकुल में एक नववधू (नई गोपी) आई थी जो कन्हैया के दर्शन पाने के लिए आतुर थी
किन्तु उसकी सास उसे वहाँ जाने नहीं देती थी।

एक दिन जब वह जल भरने जा रही थी,तब हररोज कि तरह, रास्ते में श्रीकृष्ण का ही चिंतन कर रही थी।
परमात्मा को मिलने की जब तीव्र आतुरता होती है तो परमात्मा दौड़ते हुए आते है।
तीन सालका कन्हैया सोच रहा है-कि-एक जीव (गोपी) मेरे लिए तरस रही है।

बाँकी जुल्फो वाले मनमोहन,मस्तक पर मोर-पंख,होठों पर बाँसुरी,कानो में कुंडल और कटि पर पीताम्बर धारण किया हुआ था। आज,वे छुम -छुम करते हुए गोपी के पीछे चलते है।
बाल कन्हैया ने पीछे से जाकर ज़टकेसे-गोपीका हाथ  पकड़ लिया।
गोपीने मुडके देखा -तो - कन्हैया उसका हाथ  पकडे हुए खड़ा है।
तीन साल के कन्हैया को गोपी ने प्यार से अपनी छाती से लगा दिया। आँखों में आँसू है।
(इस दृश्य की कल्पना करो -तीन  साल का कन्हैया और गोपी)

लाला ने उसके गले में हाथ डाला और कहा -”अरी सखी,तू बहुत सुन्दर है।”
गोपी बोली- लाला तुझे संकोच नहीं होता?
कन्हैया बोला -मुझे कैसा संकोच? तू मेरी है और मै तेरा हूँ। मै ही तेरा बालक और मै ही तेरा स्वामी।
जरा सोचो। ऐसा कोई देव है जो चलती हुई स्त्री के गले में हाथ डाल सके। परस्त्रीसे तो देव भी डरते है।
पर कन्हैया कहता है कि मै सबका बालक हूँ। मुझे कोई स्त्री का डर नहीं लगता।

कन्हैया जैसी लीला मनुष्य तो क्या कोई देव भी नहीं कर सकता। श्रीकृष्ण तो देवाधिदेव है।

एक गोपी दहीं,दूध और माखन बेचने निकली है। कृष्ण-प्रेम में उसकी सुध-बुध बिसर गई है।
वह बोलना तो चाहती है दही लो,माखन लो,
किन्तु उसके अंतर में माधव छिपा है,सो बोलने लगी,माधव लो,कोई माधव।
भोली गोपी हरि को बेचने चली। चौदह भुवन के नाथ को मटकी में लेकर चली।
कृष्ण-प्रेम में ऐसी तन्मय हो गई थी कि उसे ज्ञात ही नहीं हुआ कि वह क्या बोल रही थी।

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