Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-328



लाला ने सुना,माधव लो,कोई माधव लो। तो उसने सोचा कि-अरे वाह,यह तो मुझे ही बेचने चली है।
रास्ते में श्रीकृष्ण प्रकट हुए और सखी से कहने लगे -अरी दूधवाली,मै गोकुल का राजा हूँ,जरा माखन तो दे।

प्रेम का बाहुल्य होने पर सताने में बड़ा मज़ा आता है। गोपी के ह्रदय में प्रेम है। वह कन्हैया को सताने लगी।
"अरे-तू कैसे गोकुल का राजा? गोकुल के राजा तो बलराम भैया है। मै तुझे नहीं उन्ही को माखन दूँगी। न जाने नंदबाबा इस काले कलूटे कन्हैया  को कहाँ से उठा लाए। नंदबाबा तो गोरे  है और तू काला। तू कहाँ से आया?"

कन्हैया ने गोपीकी साड़ीका आँचल पकड़ लिया। गोपी कहने लगी-अरे लाल,छोड़ दे मेरी साड़ी।
मेरे दूध,दही,मिट्टी में मिल जायेंगे और मेरी सास मेरी चमड़ी उधेर देगी।
गोपी ने बलपूर्वक साडीका  आँचल छुड़ा लिया और आगे बढ़ने लगी।
पर जरा पीछे मुड़कर देखा तो कन्हैया मुँह फुलाकर  बैठा था। गोपी वापस आकर कान्हा को मनाने लगी।
"कान्हा माखन ले,मिस्री भी ले। तुझे जो चाहे सो दू। मेरी भूल हो गई। अब मान भी जा।"

कन्हैया ने कहा - अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। तब गोपी आगे चलने लगी।
तो पीछे से कन्हैया ने पत्थर उठाकर ऐसा निशाना लगाया कि गोपी की मटकी चूर-चूर हो गई।
ऐसी लीला श्रीकृष्ण के सिवा अन्य कोई देव नहीं कर सकते।

कन्हैया घर आकर चुपचाप माँ की गोद  में बैठ गया। वह ऐसा सयाना होकर बैठ गया मानो कुछ नहीं हुआ।
तभी,उस गोपी ने यशोदाजी के पास आकर कान्हाकी शरारतकी  शिकायत करने लगी।
"माँ,तुम लाल को मुँह लगा रही हो किन्तु वह बहुत शरारती हो गया है।
उसने मेरी मटकी फोड़ दी,मेरा नुकसान हुआ,और मेरे कपडे बिगाड़ दिए।

लाला कहने लगा-मैया मुझे इससे बड़ा डर लगता है। इसके चले जाने के बाद मै सारी बात बताऊँगा।
यशोदाजी कहती है-नहीं,तुम अभी मुझे बताओ.
कन्हैया मैया से कहने लगा - यह गोपी बड़ी कंजूस है। वह तीन  चार दिन पहले का दूध बेच रही थी।
मैंने सोचा कि बिगड़ा हुआ दूध-दहीं बेचने ठीक नहीं है। यदि कोई गरीब इसे खाकर बीमार हो जाये तो?
और ऐसा सोचकर मैंने उसकी मटकी फोड़ी।
यशोदाजी ने गोपी से पूछा- क्या यह बात सच है?
गोपी ने कहा -तीन  दिन तो नहीं पर दो दिन जरूर हुए है और फिर कन्हैया को देखकर हँसने लगी।

यह कन्हैया बोलने में बहुत चतुर है। कन्हैया मटकी फोड़ता है पर फिर भी प्यारा लगता है।
श्रीकृष्ण की लीला-माधुरी दिव्य है। उनका अनुकरण और कोई देव नहीं कर सकते।
भगवान नारायण हाथ में शंख रखते है। शंख फूंकने वाला श्रेष्ठ है या बांसुरी बजाने वाला?

अन्य देव तो हाथ में शस्त्रास्त्र लिए हुए है। किसी के हाथ में सुदर्शन है तो किसी के हाथ में धनुष-बाण,
तो किसी के हाथ में त्रिशूल है। मानो इन सबको संसार का डर है।
कन्हैया हाथ में शस्त्र नहीं रखता।
लाला के एक हाथ में बांसुरी है तो दूसरे हाथ में मिस्री।
शस्त्रधारी देव श्रेष्ठ है या कन्हैया? हमारा कन्हैया श्रेष्ठ है।

कन्हैया रोज बांसुरी बजाता है। लाला की बांसुरी जिसने सुनी हो,संसार के प्रति उदास हो जाता है। लाला की बांसुरी सुनने के बाद बड़े-बड़े योगी भी समाधि में से जागे है और ब्रह्मानन्द को छोड़ लालाके पास दौड़े है।

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