Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-329



एक गोपी प्रेम-भरा उलाहना देती है -
हे मुरारे! भोजन बनाते समय,कृपा करके,बाँसुरी की तान मत छेड़ो।
तुम्हारी मुरली की धुन सुनकर चूल्हे में रखी सूखी लकड़ियाँ रसमयी होकर रस  बहाने लगती है
सो अग्नि बुझ जाती है। अग्नि बुझने से मै रसोई कैसे बना सकूंगी?

लाला की बंसी की धुन जिसके भी कानों में जाती है,वह उनका सेवक बन जाता है।
तो मैंने मान लिया कि कन्हैया ही सर्वश्रेष्ठ है।

कन्हैया की रूपमाधुरी ने भी अनेकों को आकर्षित किया है।
निर्गुण ब्रह्म के उपासक स्वामी मधुसुदन भी श्रीकृष्ण की रूपमाधुरी के पीछे पागल हो गए थे।
उन्होंने कहा है -अद्वैत मार्ग के अनुयायीके द्वारा पूजनीय तथा स्वराज्य-रूपी सिंहासन पर प्रतिष्ठित होने के अधिकार से युक्त हमको,गोपियों के पीछे-पीछे फिरने वाले किसी शठ ने अपनी इच्छा न होने पर भी
हमको,उनके चरणों का दास बना दिया है।

श्रीकृष्ण की रूपमाधुरी के पीछे कवि  रसखान भी पागल हो गए थे। उन्होंने कहा -
या लकुटी अरु कामरिया पर,राज तिन्हु पुरको तजि डारौ।
आठहु सिध्धि नवो निधिको सुख,नन्द की गाय चरी बिसारौं।

(रसखान १५ सदी में हुए थे। उनका रियल नाम सैयद इब्राहिम था। गोस्वामी विठ्ठलनाथके पास हिन्दु  धर्म सिखने के बाद वृंदावन में ही रहे थे। हिंदी और पर्सियन भाषा पर काबू होने के कारण उन्होंने भागवत का अनुवाद पर्सियन में किया था। गोकुल के पास यमुना नदी के तट पर उनकी कबर है। वे प्रख्यात कवि थे। ज्यादातर सभी कविता कृष्णलीला पर है। “सूजन रसखान” “प्रेम वाटिका” “रसखान रचनावली”उनकी कविता संग्रह है। )

गर्गाचार्य ने लाला की नामकरण की विधि की और उनका नाम रखा “कृष्ण”
यशोदाजी ने गंगाचार्य से कहा -महाराज अब देर हो गई है। भोजन का समय भी हुआ है। आपको भूख लगी होगी। पहले आप भोजन कर लीजिए,फिर आगे बात।
गर्गाचार्य -मै दूसरों की बनाई हुई रसोई नहीं खा सकता। अपना भोजन अपने हाथों से बनाऊँगा।
पहले मै यमुनामें स्नान करके  जल ले आऊँ।

गर्गाचार्य यमुना में स्नान करके जल ले आये। उनके इष्टदेव है चतुर्भुज द्वारिकानाथ। गर्गाचार्यने अपने ठाकुरजी  के लिए खीर बनाई। यशोदाजी ने सोचा कि ये भगवान का भोग लगाए बिना नहीं खायेंगे इसलिए खीर ठंडी करने के लिए सोने की थाली दी। खीर ठंडी हुई तो गर्गाचार्य ने तुलसीदल रखकर,आँख बंध करके- भगवान् की स्तुति आरम्भ की। "हे नारायण! हे लक्ष्मीपति! खीर आरोगीए।"

लाला ने सुना और सोचने लगा कि लक्ष्मी का पति तो मै हूँ । गुरूजी शायद मुझे पुकार रहे है।
अतः खाने के लिए मुझे जाना पड़ेगा। लाला दौड़ता हुआ आ पहुँचा और खीर खाने लगा।

बारह माला पूरी होने के बाद गर्गाचार्य ने आँखे खोली तो देखा कि लाला आराम से खीर खा रहा है।
गर्गाचार्य ने कहा -यह वैश्य के लड़के ने मेरी खीर को छू लिया।अरे यशोदा -देख तेरा कन्हैया मेरी खीर खा रहा है। कन्हैया घबरा गया,एक पल माँ को देखता है तो दूसरी पल गुरूजी को।

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