Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-330



यशोदाजी कन्हैया को डाँटने लगी। घर में तुझे खाने को नहीं मिलता है क्या? महाराज की खीर क्यों खाई?
कन्हैया बोले--तू मुझे डाँट रही है,किन्तु मै क्या करू? महाराजने ही तो मुझे खीर खाने बुलाया था।
गर्गाचार्य बोले- मैंने तो वैकुंठवासी नारायण को बुलाया था।
कन्हैया कहता है--मै ही तो हूँ वह वैकुंठवासी नारायण।

यशोदाजी कहती है-ऐसा नहीं बोलते। तू कहाँ का नारायण हो गया? वैंकुंठ के नारायण के तो चार हाथ है,
तेरे कहाँ चार हाथ है?
कन्हैया कहता है-माँ यदि तू कहे तो मै चतुर्भुज हो जाऊँ।
यशोदाजी ने सोचा कि यदि इसने चतुर्भुज का रूप धारण कर दिया तो लोग मानेंगे कि
यह लड़का यशोदा का नहीं है। कोई जादूगर है। सो उन्होंने कहा -नहीं,नहीं।
चार हाथो वाले नारायण की अपेक्षा मेरा दो हाथों वाला मुरलीधर अच्छा है। तू जो है वही रहना।

फिर यशोदाजी ने गर्गाचार्य से कहा -यह लड़का नादान है इसकी बातों में न आना।
कृपा करके आप फिर से खीर बना लीजिए।
महाराज फिर स्नान करने यमुना की ओर चल दिए।
लाला यशोदा की गोद में बैठकर कहने लगा,माँ,मै कोयल जैसा बोल सकता हूँ। और कुहू कुहू करने लगा।
उसका कंठ इतना मीठा है कि मोर भी आकर नाचने लगा।
कन्हैया माँ से कहने लगा,माँ, मै भी मोर की तरह नाच सकता हूँ और वह ठुमक-ठुमक नाचने लगा।

यशोदा -बेटा तूने यह नाचना किससे सीखा है?
कन्हैया -माँ,मै तो तेरे पेट में से सीख कर आया हूँ।
यह कन्हैया का गुरु कोई नहीं हो सकता। वह सबका गुरु है। “कृष्ण वन्दे जगदगुरुम!”

महाराज ने फिरसे खीर बनाकर ठंडी की है। इस तरफ लाला ने मज़ाक किया। जाकर माँ की गोद में सो गया।
यशोदाजी सोचती है कि अब लाला सो गया है तो महाराज आराम से भोजन कर सकेंगे।
गर्गाचार्य ने खीर पर तुलसीदल बिखेरा और प्रार्थना करने लगे -
"नाथ,आपका सेवक हूँ।हे नारायण,लक्ष्मीपति आप शीघ्र पधारिये और मेरी खीर का प्राशन कीजिये।"

कन्हैया ने यह सुना तो जाने के लिए अधीर हो गया। उसने योगमायाको यशोदा की आँखोंमें जा बसनेकी आज्ञा दी। यशोदा की आँखे नींद से भरी नहीं कि -कन्हैया दौड़ता हुआ गंगाचार्य के पास आया और खीर खाने लगा।
गर्गाचार्य ने देखा। अरे! यह वैश्य बालक ने तो फिर से मेरी खीर झूठी कर दी।
कन्हैया ने सोचा कि -बेचारे इस ब्राह्मण को मै कब तक भरमाता रहू। उसने अपना चतुर्भुज स्वरुप प्रकट किया। महाराज,आप जिस नारायण की आराधना कर रहे हो,वह मै ही हूँ और गोकुल में कन्हैया का रूप लेकर अवतरित हुआ हूँ। आपकी तपश्चर्या सफल हुई।

गर्गाचार्य ने सानन्द दर्शन किया और अति-प्रेम से स्तब्ध से हो गए। आंखोमे आंसू भर आये है.
वे सोचने लगे,कितना अच्छा हो यदि प्रभु मेरी गोद में आ बैठे। कन्हैया गर्गाचार्य की गोद में बैठ गया और कहने लगा,महाराज अब आप भोजन कीजिए।
गर्गाचार्य- जब मेरे इष्टदेव ही मेरे मुँह में कौर रखेंगे,तभी मै खाऊँगा।

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