Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-331



कन्हैया ने गर्गाचार्य के मुँह में कौर रखा। आज गंगाचार्य का जीवन सफल हो गया।
साक्षात् नारायण उन्हें खिला रहे है।
उस दृश्य की कल्पना करने जैसी है। अब तक वैश्यके लड़केके (कृष्णके) खीर को छूने से
उन्हें नई खीर बनानी पड़ती थी। वही ब्राह्मण अब लालाके हाथ से खा रहे है।

दूसरी तरफ यशोदाजी ने जागकर देखा तो लाला गोद में नहीं था। घबराकर इधर-उधर देखने लगी।
देखा तो लाला गंगाचार्य की गोद में बैठा है। महाराज हाथ जोड़ कर बैठे है और कन्हैया उन्हें खिला रहा है।
यशोदाजी को आश्चर्य हुआ कि अब तक महाराज लाला के छूने से खीर खाते नहीं थे
और अब उसके हाथ से ही खा रहे है। वे कन्हैया को लेने महाराज के पास गए तो दूसरा आश्चर्य हुआ।

महाराज खड़े होकर यशोदाजी को प्रणाम कर रहे है।
यशोदाजी ने कहा -महाराज मै तो साधारण गोवालन हूँ। आप पवित्र ब्राह्मण है।
आप मुझे वंदन करो तो मुझे पाप लगेगा। मै आपको वंदन करती हूँ।
गर्गाचार्य ने कहा - माँ,आपने बहुत पुण्य किये है। आप बहुत भाग्यशाली है। परमात्मा आपकी गोद में खेल रहे है। मेरे नारायण पुत्ररूप में आपके यहाँ आये है।

लाला ने सोचा कि गर्गाचार्य ने सब भण्डा फोड़ दिया। यशोदा का भाव तो वात्सल्य भाव है।
वात्सल्य भाव,ऐश्वर्य विरोधी है।
कन्हैया ने सोचा कि गर्गाचार्य की बात अगर माँ के मन में जम गई तो वे मुझे लाड-प्यार नहीं करेगी।
मै तो प्रेमदान करने और प्रेमरस का पान करने के हेतु ही गोकुल में आया हूँ।
उन्होंने माया को आज्ञा दी,माता को मेरे वास्तविक रूप का ज्ञान होने न पाए।
यशोदा को भुलावे में रखने के लिए कृष्ण ने माया का आवरण ओढ़ लिया।

महात्माओं ने  माया के तीन  प्रकार बताते है।
(१) स्व-मोहिका
(२) स्वजन्मोहिका (ऐश्वर्य का ज्ञान न होने के लिए)
(३) विमुखजनमोहिका- जो हम सबको फंसाती है,जो ईश्वर के स्वरुप को भुला देती है।

माया को मानना पड़ता है। माया के बिना व्यवहार नहीं होता। ज्ञानी पुरुष भी माया में रहते है पर उसे मिथ्या मानते है। श्रीकृष्ण ईश्वर है,पर यशोदाजी के बालक है। यह माया है।

बालकृष्ण धीरे-धीरे बड़े हो होते जा रहे है। मनसुख,मधुमंगल,श्रीदामा-वगेरे मित्र खेलने आते थे।
उनमे से कुछ दुर्बल थे। कन्हैया ने कहा -मनसुख,तू बहुत  दुर्बल है। खा-पीकर मेरे जैसा तगड़ा बन जा।
मनसुख रोने लगा। हम तो गरीब है। हम रोज दूध-माखन कैसे खा सकते है? लाला-हमे तो दूध ध भी नहीं मिलता। मुझे कोई माखन खिलाए तो तेरे जैसा तगड़ा होऊं।
श्रीकृष्ण ने पूछा -तेरे घर में गायें है ? माखन नहीं बनता?
मनसुख ने कहा - गाय भी है और माखन भी है पर कंस राजा को कर में सब माखन देना पड़ता है।

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