Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-333



लौकिक दृष्टि से देखो तो भी वह कुष्ण की माखन चोरी  नहीं है
क्योंकि जिसके घर वह चोरी करने जाते है उस घर का बेटा भी लाला के साथ है।
यह चोरी नहीं है। ये दिव्य प्रेमलीला है। गोपियों को परमानन्द का दान करने  की यह लीला है।
गंगा किनारे शुकदेवजी यह गोपी गीत की बात करते है।

लाला ने आज मंडल की स्थापना की है और उसके अध्यक्ष बने है। मित्रों ने पूछा कि -हमें  क्या करना है ?
लाला ने कहा कि-तुम्हे  बस इतना ध्यान रखने का कि कब गोपी घर से बाहर जाती है और कब वापस लौटती है। बाकी सब मै संभाल लूँगा।

गोपियाँ चाहती है कि कन्हैया उनके घर रोज़ आता रहे। लाला की झलक पाने के लिए गोपियाँ किसी-किसी बहाने प्रातःकाल यशोदा के घर पहुँच जाती है और उन्हें लाला की शिकायत करती है-
यशोदा,गायों को दोहने का समय होने से पहले ही तुम्हारा कन्हैया बछड़ों को छोड़ देता है।
दही-दूध-माखन चुरा जाता है और अपने मित्रों में बाँट देता है।
हम दूध-दही-माखन चाहे कहीं भी रखे,वह ऊपर चढ़ कर भी चुरा लेता है।

उसे अँधेरा भी नहीं असर नहीं करता। वह जहाँ जाता है वहाँ प्रकाश हो जाता है।
हम जब उसे माखन चोर कहते है तो वह हमे कहता है,तू चोर,तेरा बाप चोर,तेरे घर के सब चोर। मै तो घर का मालिक हूँ। गोपियों की यह शिकायत और यशोदा के उत्तर नरसिंह मेहताने एक सुन्दर भजन में लिखा है।

माता,क्या बताऊ तुम्हे? गायों के दुहने के समय के पहले ही कन्हैया बछड़ों को छोड़ देता है।
बछड़ों का अर्थ है विषयासक्त जिव। वत्स (बछड़ा) अर्थात विषयासक्त जीव।
परमात्मा की विशिष्ट कृपा हो-तो फिर,बंधन में से मुक्त होने का समय नहीं हुआ हो
तो भी परमात्मा जीवात्मा को बंधनमें से छुड़ाते है।

शास्त्र में मुक्ति के दो प्रकार बताए है। (१) क्रम मुक्ति (२) सद्यो मुक्ति।
समय होने पर जीवको जो मुक्त करते है वह है मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
किन्तु कन्हैया तो है पुष्टि पुरुषोत्तम।
कन्हैया क्रमशः मुक्ति देने की अपेक्षा,जीव यदि पात्र हो तो समय के पहले मुक्ति देता है। जिस जीव पर कन्हैया का आग्रह होता है,उसे मुक्ति पाने के लिए क्रम की प्रतीक्षा करनी नहीं पड़ती। यह पुष्टिमार्ग -कृपामार्ग है।

क्रम-मुक्ति - ८४ लाख योनि में भ्रमण करने के बाद जब पाप और पुण्य समान हो -फिर जिव को मनुष्य अवतार मिलता है। मनुष्य अवतार में भी कर्मानुसार अलग अलग वर्ण धर्म और ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करके -ब्रह्मनिष्ठ योगी रूप में जन्म लेता है।
योगी सदा सावधान रहते है। नया प्रारब्ध उत्पन्न नहीं करते। जो प्रारब्ध लेकर आते है उसे भुगतने के बाद परमात्मा के साथ मन से योग सिध्ध करते है।
सदा योग साधना करे,ब्रह्मचिन्तन करे,ध्यान-धारणा करे,उसे भी तिन जन्म लेने पड़ते है। और इस प्रकार उसके क्रियमाण,संचित तथा प्रारब्ध कर्म निः शेष हो जाने पर जीव जब  शुध्ध होगा
और ऐसे शुध्ध होने पर ही जीवकी मुक्ति होगी। यह है क्रम-मुक्ति का मार्ग।

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