Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-335



यशोदाजी गोपी से पूछती है -कन्हैया तेरे यहाँ चोरी करने आता है उसकी खबर तुझे होती है?
गोपी कहती है- हाँ, माँ जब वह चोरी  करने आता है उसके अगले दिन स्वप्न में आता है।
माँ,घर का सब काम करके जब में बिस्तर में लेटती हूँ तब मुझे कन्हैया याद आता है।
उसका चिन्तन करते-करते सो जाती हूँ तो स्वप्न में दिखता है कि
वह मेरे घर आया है और मित्रों को माखन खिला रहा है।

सुबह जागने के बाद हुआ कि आज जरूर मेरे घर कन्हैया आएगा। सुबह से ही उसके पीछे पागल सी हो गई। तन(शरीर) काम करता है पर मन श्रीकृष्ण का स्मरण करता है।
आनन्द में इतनी तन्मय हो गई कि चूल्हा  जलाया और  लकड़ी के साथ बेलन भी जला दिया।  

दूसरी गोपी कहती है -माँ,आज घर में मेरे जेठजी को खाना परोस रही थी। जेठजी ने मुझसे मुरब्बा माँगा।
छीके पर से  मुरब्बे की हांड़ी उतारकर परोसने लगी। मन कन्हैया की मीठी यादों में खोया हुआ था।
छीके में मुरब्बे की हांडी वापस रखने के बदले में मैंने अपने मुन्ने को ही ऊपर रख दिया।
वह रोने लगा तब मेरे जेठजी ने मुझे कहा कि  क्या तुम पागल हो गई हो?

लोग कहते है कि गोपियाँ पागल हो गई है। पर पागल हुए बिना परमात्मा नहीं मिलते।
जैसे,पैसे के पीछे लोग पागल होते है तब उन्हें भूख-प्यास नहीं लगती,और तब उन्हें धन मिलाता है।
ये गोपियाँ परमात्मा के पीछे पागल बनी है।
संसार के विषयों के पीछे जो पागल बने वह सचमुच पागल है।
परमात्मा के पीछे जो पागल बने वह ज्ञानी है-भक्त है।

एक गोपी बोली - माँ,आज कन्हैया ने मेरी लाज रख ली। इसलिए वह मुझे प्राणों से प्यारा है।
यशोदा -तेरे घर में क्या हुआ था?
गोपी- मेरी आदत है कि  रसोई बनाते समय श्रीकृष्ण का जाप जपती रहती हूँ। कभी इतनी तन्मयता आ जाती है नमक डालना भूल जाती हूँ,तो कभी ज्यादा डाल देती हूँ। आज मेरे घर महेमानआये हुए थे। मेरे ससुरजी ने कहा कि  ध्यान रखकर रसोई बनाना। इसलिए निश्चय किया था कि कृष्ण का स्मरण नहीं करुँगी।

यहाँ देखो...योगी नाक पकड़कर श्रीकृष्ण का स्मरण करते है और जगत को भूलने का प्रयत्न करते है।
जब यहाँ गोपी श्रीकृष्ण को भूलने का प्रयत्न करती है।

गोपी कहती है-माँ मैंने सारी रसोई तो बराबर बनाई पर जब अंत में जब मोहनभोग बनाने लगी तब विचार आया कि कन्हैया को यह बहुत पसंद है। ह्रदय में कन्हैया को मोहनभोग खिलाने की इच्छा हो आई।
मेरा दिल मानो हाथ से जाने लगा। मुझे भास होने लगा,कन्हैया आँगन में आया है।
लाला को देखने बाहर गई और वापस आई तो तन्मयता में मोहनभोग में चीनी के बदले नमक डाल दिया।

भगवान का भोग लगाकर महेमान को परोसा। वैसे तो मोहनभोग नमकीन हो गया था किन्तु उसमे भक्ति का पुट  लगा हुआ था,अतः महेमान ने तो उसकी प्रशंसा करते हुए खाया। यह भोजन नहीं अमृत है ऐसा कहा।
भगवान् के नामामृत से नमकका स्वाद मीठा हो गया था।

गोपी कहती है-माँ आज मुझे मार पड़ने वाला था पर कन्हैया ने आकर मुझे बचा लिया।

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