Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-336



गोपियाँ मानती है-  कि जब कुछ अच्छा हो तो लाला ने किया और बुरा हुआ तो मेरे से हुआ।

दूसरी गोपी कहने लगी -माँ तुमसे क्या कहु ?मै दूध-दही बेचने निकली। न जाने रास्ते मुझे ऐसा लगा कि मेरी मटुकी में कन्हैया छिपा हुआ है। मटुकी उतार कर देखा तो उसमे लाला के दर्शन हुए।
अब कन्हैया को भी कहीं बेचा जा सकता है? कुछ भी बेचे बिना घर वापस लौटी तो घरमें मेरी फजीयत हुई।

अपनी बुध्धिरूपी मटुकी में जो कन्हैया समाया हुआ होगा तो हर कहीं उसके दर्शन होते रहेंगे।
गोपियाँ अपनी बुध्धि में,मन में ठाकुरजी को बिराजमान रखती थी।
गोपियाँ भले घर में है,परन्तु उनके मन में घर नहीं है। उनके मन में श्रीकृष्ण है।
वे सदा श्रीकृष्ण का स्मरण करती है।

गोपियाँ गेरू वस्त्र नहीं पहनती फिर भी उनका मन कृष्ण-प्रेम में रंगा रहता है।
यह तो गोपियों के प्रेमसन्यास की कथा है।
यही है गोपियों के मन की तन्मयता और निरोध।

कृष्ण में तन्मयता हो जाने के कारण गोपियाँ संसार-व्यवहार के कार्य कर नहीं पाती थी।
कृष्णप्रेम में सुधबुध खोकर न करने योग्य काम कर बैठती थी। फिर भी कन्हैया उनका काम संवारता था.
शुकदेवजी सन्यासी,परमहंस है। गोपियों की कथा करते है। गोपियाँ भी परमहंस है।

सभी कामकाज से निवृति होने के बाद भक्ति करना मर्यादा भक्ति है।
मर्यादा  भक्ति में व्यवहार और भक्ति अलग होते है।
पर पुष्टि भक्ति में ऐसा नहीं है। उसमे व्यवहार और भक्ति एक है।
हरेक कार्य में ईश्वर का अनुसंधान वह पुष्टि भक्ति है। गोपियाँ तो हर कार्य में ईश्वर का अनुसंधान रखती है।

यह सिध्धांत महाप्रभुजी ने आगे बढ़ाया है। महाप्रभुजीने सुबोधिनिजीमें गोपियों को प्रेम सन्यासिनी कहा है। गोपिया के पास केवल निःस्वार्थ प्रेम है। वस्त्र-सन्यास की अपेक्षा प्रेम-सन्यास उत्तम है।
कृष्णप्रेम में ह्रदय पिघलने पर संन्यास हो पाता है और तभी वह उजागर होता है।
सर्व कर्म का न्यास-त्याग सन्यास है। ईश्वर के लिए जो जीता है,वही सन्यासी है।
गोपियाँ ईश्वर के लिए जीती थी अतः उन्हें प्रेम-सन्यासिनी कहा गया है।

माखनचोरी लीला का यही रहस्य है। मन माखनसा मृदु है। मन की चोरी ही तो माखनचोरी है।
कृष्ण औरो के चित चोर लेते है,फिर भी वे पकडे नहीं जाए। पकड़ा जाने वाला चोर तो सामान्य चोर होता है
किन्तु कन्हैया तो अनोखा चोर है। उन्हें तो गोपियोंके मनका निरोध करना था।
मनको -किसी भी अन्य विषयों में जाने से बचाना था।

गोपियाँ अर्थात इंद्रिय।
सभी इन्द्रियाँ हमेशा ईश्वर ही का चिंतन करती रहे,इसी हेतु से इन सब लीलाओं की रचना की गई है।

यशोदाजी ने गोपियों से कहा-अरी सखी,कन्हैया आता है उसकी खबर तुम्हे होती है तो फिर तुम उस दिन घर में माखन न रखो। दो-चार बार आएगा और माखन न मिलने पर,फिर वापस नहीं आएगा।
गोपी बोली -माँ,तुम हमे क्या सीख दोगे?आपने सीख दी वह भी हम कर चुके है पर काम नहीं आई।


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE