अगले दिन तेरे घर आऊँगा। मैंने सारा माखन अपने मायके भेज दिया। कन्हैया ने दूसरे दिन आकर देखा तो माखन नहीं था। वह गुस्से हुआ और पलने में सोए हुए मेरे बेटे को चुटकी भरते हुए कहने लगा कि -
"तेरी माँ बड़ी कंजूस है। घर में कुछ रखती नहीं है।"
माँ,अगर घर में कुछ नहीं मिलता है तो वह गुस्से से लाल-पिला हो जाता है
और हमारे सोए हुए बच्चों को चुटकी देकर रुलाता है।
ईश्वर अपने आगमन के समय सोए हुए को जगाते है। ईश्वर कौन से रूप में आयेंगे यह कोई बता नहीं सकता।
वे तो बालक,वृध्द,ब्राह्मण,चमार-किसि भी रूप में आ सकते है। सो घर पर आये हुए सभी का सन्मान करना चाहिए। वेदांत के अनुसार ईश्वर अरूप है और वैष्णावानुसार अनन्तरूप।
ईश्वर का कोई एक रूप नहीं है। वे अनेक रूप धारण करते है। वे अरूप भी है और अनेकरूपधारी भी।
वे तो किसी भी स्वरुप में आते है। जीव प्रमादवश सोया रहता है,सो उसे खबर नहीं होती।
यशोदाजी अब दूसरा सूचन करती है - माखन की तरह तुम्हारे बच्चों को भी मैके छोड़ आओ तो?
एक गोपी बोली -मै माखन और बच्चों को मैके छोड़ आई थी।
कन्हैया ने मेरे घर में कुछ न पाया तो मित्रों कहा-जिस घर में में मेरे लिए कुछ न हो वह श्मशान के जैसा है।
मित्रों ने पूछा-लाला अब क्या करे? कन्हैया ने मित्रों से कहा -यह घर स्मशान जैसा ही है
सो चूल्हा,कमरे,आँगन सब बिगाड़ दो। मित्रों ने पूरा घर गन्दा कर दिया है।
गोपी बोली -लाला रास्ते में मिला सो मैंने पूछा -लाला घर में तूफ़ान तो नहीं किया ने?
उसने कहा -तेरे घर जाकर देख,फिर पूछना। घर में संभाल कर पाँव रखना।
यशोदाजी बोली- तुम कह रही हो कि लाला शरारती है किन्तु वह तो मुझसे कहता है कि उसने कुछ नहीं किया है। तुम उसे रंगे-हाथ पकड़ लाओगी,तभी मै मानूंगी कि वह चोरी करता है और तभी सज़ा दूँगी।
प्रभावती नाम एक गोपी ने कहा,इसमें क्या बड़ी बात है? मै ही उसे रेंज हाथ पकड़ लाऊँगी। वह गोपी थोड़ी अभिमानी था। प्रभावती ने सोचा कि देखू कन्हैया कैसे चोरी करता है? वह पलंग के नीच छिप कर बैठी है।
मित्रों के साथ कन्हैया घर में धीरे-धीरे दाखिल हुआ। उसने मित्रो से कहा मुझे मनुष्य की बास आ रही है।
सभी मित्र कफलम् -कफलम् बोलने लगे। कन्हैया ने चिके से माखन उतार कर स्वयं खाया और मित्रों को भी खिलाया और वानरों को भी दावत दी। श्रीकृष्ण का मित्र प्रेम दिव्य है। मित्रों के लिए वे माखनचोर बने है।
जीव का स्वभाव है कि किसी के किए हुए उपकार को भूल जाता है और अपकार याद रखता है।
पर ईश्वर थोड़े भी किये हुए उपकार को नहीं भूलते। कृष्ण सोचते है कि-
"रामवतार में वानरों ने वृक्षोंके पत्ते खाकर मेरी सेवा की थी। उस अवतार में तो मै तपस्वी था,
अतः इन्हे कुछ दे नहीं पाया था। सो इस अवतार में उन्हें दही-माखन खिलाऊँगा।"
सभी ने भरपेट माखन खाया। इतने में धीरे से प्रभावती बाहर निकली। मित्रों ने देखा तो कहने लगे-
अरे कन्हैया भाग,वह आ गई है किन्तु कन्हैया ने कहा-आने दो। वह क्या कर लेगी?
प्रभावती ने कन्हैया को पकड़ लिया। वह उससे कहने लगा,अरे छोड़ दे मुझे, नहीं तो मेरी माँ तुम्हे पिटेगी।
मुझे छोड़ दे,तुम्हे अपने ससुर की कसम,अपने पति की कसम।