Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-339



परमात्मा की प्राप्ति होने पर भी भक्ति चालु रखनी चाहिए। लालाको पकड़ने के बाद उसका चिंतन करना चाहिए। अपना चिंतन मत करो। प्रभावती ने अपना चिंतन किया।
ईश्वर हाथ में आने के बाद अभिमान आता है कि ईश्वर मेरे हाथ में है,तो ईश्वर हाथ से निकल जाते है।

परमात्मा मिलते ही साधक के मन में अकड़ पैदा होती है। ऐसी अकड़ और अभिमाना होते ही साधना उपेक्षित होने लगती है। साधना की उपेक्षा के कारण भगवान् अप्रसन्न होकर वापस चले जाते है। साधना करो पर उसका अभिमान कभी मत करो। निष्काम बुध्धि में गर्व उत्पन्न होते ही भगवान  निकल  जाते है।

गोकुल में एक ललिता नाम की एक गोपी थी। वह सोचती लाला कभी मेरे घर नहीं आता।
अगर एक बार आये तो उसे बंद कर दू और फिर  सबको बताऊ।
एक बार वह जल भरने  बहार गई। उसका पति घर में सो रहा था। लाला ने उसे बाहर जाते देखा और सभी मित्रों को बुलाया। वे सब माखन खा रहे थे तभी ललिता ने आकर बहार से दरवाजा बंद कर दिया।  

उसने लाला को कहा आज मै यशोदाजी को बताउंगी कि मैंने तुझे रंगे हाथ पकड़ा है। वह दौड़ती हुई यशोदाजी को कहने गई। वह भूल गई कि  घर में उसके पति भी सो रहे है। इधर लाला ने सोचा कि अब क्या करे? रसोईघर की खिड़की खुल्ली थी। वह खिड़की से बाहर आया और दौड़ता हुआ यशोदाजी के पास आया और माँ से कहा -आज घर पर कोई आए और पूछे  तो कहना कि  लाला घर में नहीं है।
तू खुद जाकर देखना कि कौन तूफान करता है और कौन सच्चा है।

इस तरफ ललिता का पति जब नींद से जागा तो देखा कि दरवाज़ा बहार से बंद है तो वह खूब गुस्से हुआ। ललिता जब सबको बुलाकर आई और दरवाजा खोला तो देखा कि उसके  पति ने लकड़ी लेकर उसका स्वागत किया।

कन्हैया के इन सब शरारतों को देख गोपियों ने यशोदाजी से कहा -माँ,आप गणेशजी का व्रत करो और मन्नत मांगो। वे बुध्धि सिध्धि के स्वामी है सो कन्हैया की बुध्धि सुधारेंगे।
यशोदा ने गोपियों की बात मानी।
कन्हैया गणेशजी की महिमा बढ़ाना चाहता था। सो सभी  मित्रों से कहा ,हम कुछ दिन के लिए शान्त रहेंगे।
सब  प्रवृत्ति थोड़े दिन के लिए बंद कर दे।
लाला अब घर में रहता है। यशोदाजी ने सोचा कि गणेशजी ने मेरे लाला की बुध्धि सुधार दी।

एक बार गोपालों ने यशोदाजी से शिकायत की  कि कन्हैया ने मिट्टी  खाई है।
कन्हैया बोला -माँ,ये सब झूठ बोलते है।
कन्हैया ने मिट्टी नहीं,व्रजरज खाई है। व्रजरज मिट्टी नहीं है।
तुलसीजी सामान्य वृक्ष-वनस्पति नहीं है,गंगाजी सामान्य नदी नहीं है,व्रजरज सामान्य मिट्टी नहीं है।

यशोदाजी ने कन्हैया से कहा-अपना मुँह खोल,मैं देखू तो सही कि तूने मिट्टी खाई है या नहीं।
कन्हैया में मुँह खोला तो  यशोदा ने बेटे के मुँह में देखा और  पाया कि उसमे तो सारा ब्रह्मांड समाया हुआ है।
मुखदर्शन के बहाने कन्हैया ने माता को अपना विश्वरूप दिखलाया।
लालाजी ने योगमाया को आज्ञा दी और वापस अपना ऐश्वर्य छुपाया है।


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