Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-346



अब आगे दामोदर लीला का वर्णन आता है।
पहले दामोदर लीला का तत्वज्ञान देखते है। परम-प्रेम से परमात्मा वश में होते है।
श्रीकृष्ण परम प्रेम का स्वरुप है। प्रेम और परम प्रेम में अंतर है।
पुत्र,पत्नी,माता-पिता आदि के साथ जो प्रेम है,वह सामान्य है।
थोड़ा स्वार्थ रखकर प्रेम करे उसे प्रेम कहते है,पर सर्व जीवों के साथ निस्वार्थ प्रेम करे वह परम-प्रेम है।

मानव स्वार्थ रखकर प्रेम करता है। परमात्मा को कोई अपेक्षा नहीं है फिर भी जीव  के साथ प्रेम करता है।
जीव बड़ा अयोग्य है,अपात्र है। वह मन से,आँखों से हमेशा पाप करता रहता है। फिर भी ईश्वर उससे प्रेम करते है। ईश्वर जीव  से प्रेम करते है और उससे एक प्रेम ही  मांगते है,धन या पैसा नहीं मांगते।
परमात्मा तो लक्ष्मीपति है। उन्हें पैसे से प्रसन्न नहीं किया जाता।

जब शारीरिक बल,द्रव्यबल,ज्ञानबल आदि सब हार जाते है,तब प्रेमबल ही जीतता है। प्रेमबल सर्वश्रेष्ठ है।
प्रेमबल परमात्मा को वश करने का साधन है।
कई लोग पूछते है -परमात्मा से प्रेम किस प्रकार किया जा सकता है? उसका क्या उपाय है?

जरा सोचो  तो समझोगे कि घर के लोग हमे सुख-सुविधा देते है,अतः हम उनसे प्रेम करते है।
पति मानता है कि पत्नी के कारण वह सुखी हे और पत्नी मानती है कि  वह पति के कारण सुखी है।
पर अगर कोई ऐसी कल्पना करे कि दोनों एक दूसरे से दुःखी है तो प्रेम नहीं जागेगा।

वास्तव में कोई स्त्री के पुरुष सुख नहीं देता। आनंद का दान मात्र परमात्मा करते है।
अपनी इच्छा का त्याग करो और भगवान् की इच्छा को ही अपनी इच्छा बना लो।
वैष्णव अपनी इच्छा को भगवान् की इच्छा के साथ एकरूप करके उसमे लीन  हो जाता है।
महात्मा प्रभु को प्रेम से जीतते है। जीव  पूर्णतः प्रेम करने लगे तो भगवान  वश में हो जाते है।
यशोदाजी ने प्रेम से परमात्मा को बांधा है।  ऐसी प्रेम कथा का ही इस दामोदर लीला में वर्णन है।

परीक्षितजी कहते है कि कृष्णकथा  सुनने से तृप्ति नहीं होती इसलिए विस्तारपूर्वक कथा सुनाओ।
शुकदेवजी कहते है -राजन श्रवण करो।

गोपियों ने कन्हैया का नाम रखा है माखनचोर। यशोदाजी को यह अच्छा नहीं लगता कि कोई कन्हैया को माखनचोर से बुलाए। वे लाला को समझाते है कि तू घर का माखन क्यों नहीं खाता?
कन्हैया कहता है कि अगर मै घर का खाऊ तो घर में कम हो जायेगा। मै तो बाहर से कमाकर ही खाना चाहता हूँ। गोपियों के माखन में मिठास नहीं है पर उनके प्रेम में मिठास है।

यशोदाजी ने सोचा,घर का काम-काज नौकर सँभालते है।
रसोइया रसोई करता है इसलिए शायद लाला को घर का माखन पसंद नहीं है और चोरी करता है।
आज मै स्वयं दधिमंथन करके माखन बनाकर उसे खिलाऊँगी और लाला को  तृप्ति होगी।

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