Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-347



रामायण में लिखा है कि  राजा दशरथ चक्रवती सम्राट थे और सेवकों की उनके यहाँ कोई कमी नहीं थी
फिर भी महारानी कौशल्या अपने हाथों से भोजन बनाती थी।
अन्न में से मन बनता है। अन्न पेट में जाए फिर उसके  तीन विभाग होते है।
स्थूल भाग से मल बनता है,मध्यम  भाग से रुधिर और माँस बनते है,और सूक्ष्म भाग से मन और बुध्धि का संस्कार बनते है। इसलिए अन्न को किसी अपवित्र हाथो से दूषित न होने दो।

यशोदाजी प्रातःकाल में स्नानादि कार्यो से निवृत होकर,रेशमी वस्त्र पहनकर दधिमंथन में लग गयी।
वे आज  लाला के लिए कर रही थी सो उसमे प्रेम और भक्ति मिली हुई  थी।

घर ले लोग के लिए काम करो तो व्यवहार है,पर परमात्मा के लिए करो तो भक्ति है।
यशोदाजी लाला के लिए कर रही थी इसलिए भक्ति थी।
यशोदाजी पुष्टि भक्ति का स्वरुप है। उनके दर्शन पाओगे तो कृष्ण के दर्शन होंगे। यशोदा के दर्शन अर्थात मुक्ति की आराधना। यशोदाजी शुध्ध भक्ति का स्वरुप है और ऐसी शुध्ध भक्ति ही प्रभु को बांध सकती है।

दधिमंथन संसार का मंथन है। संसार सागर है और सांसारिक विषय दही।
आरम्भ में विषय मधुर होते है,अंत में कटु। सांसारिक विषयों का विवेक से मंथन करने वाला भक्तिरूपी माखन पाता है। ऐसा प्रेमरूप,भक्तिरुप माखन परमात्मा को अर्पण करो। परमात्मा प्रेम के सिवाय और कुछ नहीं माँगते।

आज लाला को जगाने की जरुरत नहीं हुई। आज माँ के ह्रदय में प्रेम भरा है इसलिए लाला अपने आप जागा है। अनन्य भक्ति प्रभु को जगाती है।
ईश्वर को जगाना है। श्रीकृष्ण तो सर्वव्यापक है। सभी के ह्रदय में उनका वास है किन्तु सुषुप्तात्वष्ठा में है।
उनको जगाना है। यशोदा जैसी भक्ति करोगे तो सुषुप्त कन्हैया अवश्य जागेगा।

श्रीकृष्ण अर्थात आनन्द। आनन्द ह्रदय में है। उसे जगाना है। जिव संसार के जड़ पदार्थो में आनन्द की खोज करता रहता है,सो वह मिल नहीं पाता। ईश्वर के साथ जीव  को तन्मय करना है। ईश्वर को किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। अंदर सोये हुए ईश्वर को जगाना है। ईश्वर जागे तो आनन्द ही आनन्द हो जायेगा।

लालाजी जागे है -”माँ भूख  लगी है,तुम कहाँ हो? उसने पीछे से माँ की साड़ी का आँचल खींचा।
यशोदाजी अपने काम में इतनी लीन थी कि  उन्हें खबर एक नहीं हुई कि कब कन्हैया आकर खड़ा था।
कन्हैया कहने लगा -माँ,मुझे भूख लगी है,पहले मुझे दूध पिला।

यशोदा साधक है,दधिमंथन साधन है,श्रीकृष्ण साध्य है। “साधक” “साधन”  ऐसा करे- कि साध्य अपने आप मिले। साधन में साधक तन्मय हो जाए -तो- साध्य (इश्वर) स्वयं जगाता है।

मनुष्य,साधारणतः सच्चे हृदय से साधना करता नहीं है,अतः वह भगवन को देख नहीं पाता।
यदि तुम कन्हैया के पीछे लग जाओ तो वह अवश्य मिलता है।

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