Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-348


कन्हैया तो जीव से मिलने के लिए स्वयं आतुर है किन्तु जीव ही उनकी उपेक्षा करता रहता है। साधना ऐसी तन्मयता से करो कि देहभान न  रहे और साध्य स्वयं तुम्हारे पीछे दौड़ने लगे-
जिस तरह कन्हैया यशोदा की साड़ी का आँचल पकड़ता है। यह पुष्टि भक्ति है।

शरीर  से भक्ति करते समय आँखों में और मन में श्रीकृष्ण को बसाये रखो।
शरीर से सेवा करोगे,वाणी से कीर्तन करोगे और मन में  श्रीकृष्ण को रखोगे तो तुम्हारे ह्रदय में भी
कन्हैया जागेगा। श्रीकृष्ण का कीर्तन करते तन्मयता आये तो आँखे खुली होने पर भी जगत भुलाता है।

कन्हैया घुटनों के बल माँ के पास आया  और आँचल पकड़ कर कहने लगा,मुझे भूख लगी है,मुझे खाना दो।
यशोदा का मन माखन उतार कर लाला को खिलाने का था। वह अधूरा काम छोड़ना नहीं चाहती।

माँ कन्हैया को गोद में नहीं लेती इसलिए कन्हैया रोने लगा। माँ का ह्रदय पिघल गया। सब काम छोड़ कन्हैया को गोद में लेकर दूध पिलाने लगी। दूध की धारा बह चली।
भक्ति में ह्रदय द्रवित हो जाए तो आनंद अवश्य मिलता है और यह आनन्द ही ईश्वर है।

श्रीधर स्वामी कहते है कि यह बालक को दूध पिलाने जैसी सामान्य कथा नहीं है। यह ब्रह्मसम्बन्ध की कथा है। यशोदा जीव और कन्हैया परमात्मा। जीव -ईश्वर के मिलन की कथा है,अद्वैत की कथा है।

यह तो जीव और ब्रह्म का मिलन है। ऐसे मिलन के समय बाहर के संसार को मन में घुसने न दो।
स्तनपान करते समय  कन्हैया ने सोचा,आज माँ की कसौटी भी करू कि उसे मै अधिक प्यारा हूँ या यह संसार। परमात्मा कसौटी किये बिना किसी भी जीव को अपना नहीं बनाते।

मनुष्य दो-चार पैसो के लिए पाप  करता है। पाप न करना ही सबसे बड़ा पुण्य है।
मनुष्य का प्रेम चारों ओर फैला हुआ है। पर परमात्मा अपेक्षा रखते है कि जीव उनसे सबसे अधिक प्रेम करे।
ईश्वर की माला पहन लेने के बाद यदि दूसरों से प्रेम करने लगे तो ईश्वर को यह मान्य नहीं है।
प्रेम करने लायक एक परमात्मा ही है। जगत के पदार्थो से किया प्रेम एक दिन रुलाता है।

कन्हैया ने मत की परीक्षा लेने की  सोची।
"मै अग्नि को हवा दूँगा। वह प्रज्वलित होगी तो चूल्हे पर रख दूध उफन कर बहार बहने लगेगा।
अब अगर माँ मुझे छोड़कर दूध को बचाने दौड़ेगी तो मै मान लूँगा कि उसे मै नहीं,पर संसार प्यारा है।"

कई लोग सोचते है कि  सांसारिक व्यव्हार के सब काम अच्छी तरह से पुरे होने पर भक्ति करेंगे।
अरे,संसार का व्यवहार न तो कभी अच्छी तरह से समाप्त हुआ है और न कभी होगा।

महात्माओं में कहा है-
इस जगत में हर तरह से सुखी न कोई हुआ है और न कभी होगा और अगर हुआ तो वह अपना गौरव गँवा देगा। संसार में कठिनाइयाँ तो आती ही रहेगी किन्तु निश्चय करो कि मै एक क्षण भी ईश्वर का चिंतन नहीं छोडूंगा।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE