Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-349



महात्माओं कन्हैया की लीलाके पीछे पागल से बने है-एक एक लीला का  विचार करते है,
और जैसे-जैसे विचार करते है उसके नए अर्थ प्रगट होते है। ये महात्मा चौबीस घण्टे मे एक बार स्वाद बिनाका
अन्न लेकर राधे-कृष्ण का चिंतन करते है। इस दूध के उफान के पीछे कई कारण बताए गए है।

(१) वह दूध ऋषिरुपा गाय का था। ऋषि तप और साधना करते हुए थक गए,फिर भी उनके मनमें बसे  हुए
काम का नाश नहीं हो पाया। उस बुध्धिवासी काम का नाश करने के लिए ऋषि गायों का रूप लेकर गोकुल में आकर बसे थे। दूध कन्हैया के उदर में जाना चाहता था। यदि कृष्ण मेरा आहार करेंगे तो मेरा कल्याण होगा।
मुझे कोई कामी  के उदरमें जाना नहीं है,यशोदाजी का ध्यान खेंचने,और यदि यशोदाजी थोड़ा कम स्तन-पान
कराये-कि  जिससे जब लाला को भूख लगे तो -बाहरके दूधका (अपना) पान करे-इसलिए दूध में उफान आया।

(२) दूसरे महात्मा कहते है कि दूध यशोदाजीके घर का था। यशोदाजी के घर में कृष्ण-कीर्तन, कृष्ण-कथा होती है इसलिए दूध को भी सत्संग लगा है। दूध को लाला के दर्शन हुए इसलिए वह भी लाला की मिलने के लिए आतुर हुआ। पर लाला उसके सामने नहीं देखता इसलिए दूध में  उफान आकर मिलने आया।

(३) तीसरे महात्मा कहते है-दूध ने सोचा कि यशोदाजी लाला को अपना दूध पिलाकर तृप्त करती है। इसलिए लाला को अब भूख नहीं लगेगी और मुझे नहीं पियेगा। अगर मेरा उपयोग कृष्ण सेवा में न हो तो फिर मेरा जीव किस काम का? अतः मै अग्नि में गिर कर मर जाऊ। यह सोचकर दूध में उफान आया।

ऐसी लीला तो सभी के घर में रोज-रोज होती है। विषय-सुख का छलकना ही तो दूध  का छलकना है।
संसार के सुखो का उपभोग इस प्रकार करो कि मन उनसे चिपक ना जाए। ठाकुरजी की सेवा करते समय विषय-सुखों की याद आना दूध के छलकने जैसा ही है  और ऐसा होने से भक्ति मिट जाती हे।

दशम स्कन्धमें टीकाकार पागल से बने है। जैसे जैसे विचारों में अंदर डूबे है वैसे-वैसे नए-नए अर्थ सामने आये है। वे कहते है कि यशोदाजीको वैसे तो कन्हैया ही अद्धिक प्यारा था किन्तु चूल्हे पर जो दूध  था वह गंगी गाय का था। कन्हैया इस गंगी गाय का ही दूध पीता था। सो यशोदाजी ने सोचा कि  यदि दूध उफन जाए और कन्हैया दूध मांगे तो मै उसे क्या  पिलाऊँगी? इस प्रकार यशोदा दूध को बचाने के लिए नहीं,किन्तु कन्हैया के लिए दौड़ी है।

दूधका उफान आया वह माँ ने देखा है। यह भूल यशोदाजी से हुई है। लालाको दूध पिलाते  समय उन्होंने
दूधकी ओर क्यों देखा? मन को स्थिर करना बहुत कठिन है,पर आँख को स्थिर करना कठिन नहीं है।
लालासे ब्रह्म सम्बन्ध हुआ हो और उसी समय संसार का स्मरण हो वही दूध का उफान है।

वियोग में अपेक्षाका जागना (अच्छा) गुणदर्शन है । संयोगमें उपेक्षाका भाव (बुरा) दोष-दर्शन है।
कन्हैया दूर था तो यशोदा उसे गोद में उठाने  के लिए लालायित थी (अपेक्षा)
और अब गोद में आया तो उसकी उपेक्षा करके दूध के पीछे भागने लगी। (उपेक्षा)
सुलभ वस्तु  की उपेक्षा करना जीवका स्वभाव है।
लाला ने सोचा कि कितने व्रत-तप करने के बाद मै मिला और अब सेर,दो सेर दूध के लिए मेरी उपेक्षा करती है।

ऐसी लीला हरेक के घर में होती है।
घर में काम करते समय कुछ याद नहीं आता,पर जैसे ही हाथमें माला ली कि रिश्तेदार याद आते है।
“मेरी कमला का एक महीने से पत्र नहीं आया है।”
कई लोगो को तो माला करते समय -बजार से कौन सी सब्जी लानी है वह याद आता है।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE