Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-350



लाला को छोड़कर यशोदाजी सांसारिक काम करने गई। लाला ने सोचा कि- माँ को मैं  नहीं,
पर संसार अधिक प्यारा है। इसलिए माँ को सीख देने हेतु लालाने पत्थर मार कर दहीकी मटकी फोड़ दी।

श्रीमहाप्रभुजी ने आज्ञा की है कि श्रीकृष्णकी सेवा लौकिक  भाव से कभी मत करो।
अलौकिक सेवा छोड़कर लौकिक कार्य सुधरने जाओगे तो भगवान उसे (लौकिक कार्यको) और बिगाड़ेंगे।
प्रभु को अलौकिक और लौकिक दोनों की चिंता है। "मै असमर्थ हूँ और मेरा स्वामी सर्वसमर्थ,सर्वशक्तिमान है"
ऐसा मानकर,निश्चिन्त होकर भगवानका स्मरण,मनन,चिंतन करते रहो।
भगवत-स्मरण,सेवा करते समय घर में कुछ नुकशान हो तो होने दो।
तन ठाकुरजी के पास हो और मन रसोईघर में हो -तो- वह सेवा नहीं है।

श्रीकृष्ण ने विषयासक्तिरूपी घड़ा फोड़ दिया। संसारकी आसक्तिके जाने के बाद ही भगवद भक्ति हो सकती है। मनुष्य का स्वभाव है कि जो मिला है उसकी उपेक्षा करता है और जो नहीं मिला है उसकी अपेक्षा रखता  है।

हरि  पर विश्वास रखकर ईश्वर सेवा,ईश्वर भक्ति करनी चाहिए। प्रभु-सेवा करने वालेकी लाज प्रभु हमेशा रखते है। जब तक संसारकी आसक्ति  नहीं जाती तब तक भगवद भक्ति सिध्द नहीं होती।
संसार के विषयभोगों से कभी तृप्ति नहीं मिलती। लोग सब्जी और आचार में तेल की धार करते है।
तेल से सराबोर होने पर वे उसे चावसे खाते है।
अब जरा सोचो,आज तक हमारे पेट में तेल के न जाने कितने डिब्बे पहुँच गये
और अनाज की बोरियाँ  भी अनगिनत गई,फिर भी क्या हम तृप्त हुए?

लाला ने दही की मटकी फोड़ी,उसी समय उसके बाल मित्र वहाँ आये है और पूछा -
लाला आज किसके घर जाना है? लाला ने कहा -आज मेरे ही घर में चोरी करेंगे,मेरे ही घर का माखन खाएंगे।
आज भगवान अपने ही घर का माखन मित्रोंको खिला रहे है।
यशोदाजी ने वापस आकर देखा तो मटकी फूटी हुई थी,दही इधर-उधर बिखरा हुआ था और कन्हैया गायब था। लाला छीके पर से माखन उतारकर मित्रों और वानर  को खिला रहा था।
आज माँ ने खुद लाला को चोरी करते हुए देखा है।

यशोदाजी को आश्चर्य हुआ है। गोपियाँ ठीक कहती थी,लाला को चोरी करने की आदत पड़ गई है। आज मै लाला को पकड़कर शिक्षा दूँगी। जिस ओखली पर वह खड़ा है,उसके साथ ही उसे बांध दूँगी।
यशोदजी हाथ में लकड़ी लेकर लाला के पीछे दौड़ी है।

शुकदेवजी ने पहली बार यहाँ -यशोदाजी के लिए-”साधारण ग्वालन” शब्द का उपयोग किया है।
लालाजी की माँ है इसलिए ग्वालन शब्दका उपयोग करना ठीक नहीं है।
पर आज माँ लाला को बांधने निकली है वह शुकदेवजी को अच्छा नहीं लगा।
इसलिए -माँ यशोदाजी के लिए-"ग्वालन" शब्द का उपयोग किया है।

मित्रों ने लाला से कहा -माँ आई भागो। आगे लाला भाग रहा है और पीछे यशोदाजी।
जिस ईश्वर को योगी नहीं पकड़ पाए,उन्हें पकड़ने के लिए यशोदा दौड़ रही है।
यशोदा दौड़ते-दौड़ते थक गई पर फिर भी कन्हैया हाथ नहीं आया। ऐसा क्यों हुआ?

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